Saturday, November 21, 2009

तरेगन - जगदीश प्रसाद मण्डल - भाग-२



तरेगन
जगदीश प्रसाद मण्डल

भाग-२ 
आत्मबल- १

फ्रान्सक कथा थिक। रास्ता बगलक पहाड़ीपर बैस एक गोटे अपन जुत्ता मरम्मत करबैत रहथि। एकटा ढेरबा बच्चा जुत्ता मरम्मत करैत छल। ओइ बच्चाक बगए-बानिसँ गरीबी झलकैत रहए। मुदा आत्मबल आ लगन मजगूत छलैक। जुत्ता मरम्मत करा ओ आदमी एक रुपैया पारिश्रमिक दऽ चलए लगल। मुदा माएक वि‍चार ओहिना ओइ बच्चाक हृदेमे जीबैत छल। बच्चा अपन उचित पाइ काटि बाकी घुमबए लगल। ओ महानुभाव जूत्ता मरम्मत करौनिहार सभ पाइ रखि लैले कहलक। बच्चा कहलक- हमर जतबे उचित मजूरी हएत, ओतबे लेब। माए कहने छथि जे जतबे श्रम करी ओतबे मजूरी ली।
बच्चाक बात सुनि ओ गुम्म भऽ, आेहि बच्चाकेँ ऊपरसँ निच्चाँ घरि नि‍ङहारए लगल। वएह बच्चा फ्रान्सक राष्ट्रपति दगाल भेलाह।



स्वाभिमान

स्कूलक पढ़ाइ समाप्त क सुभाष चन्द्र बोस कओलेजमे नाओं लिखाओल। ओइ कओलेजमे अंग्रेजीक शिक्षक अंग्रेज छल। नाओं छलनि सी.एफ. ओटन। ओहुना सत्तामे रहनिहारक बोली जनताक बोलीसँ भिन्न होइत। मुदा ओटनमे आरो बेसी रोब छलैक। बात-बातमे ओ भारतीय जिनगीक मजाक उड़बैत। भारतवासीक जिनगीक प्रति घृणा पैदा करब ओ अपन बहादुरी बुझैत छल।
सुभाष बाबूकेँ ओटनक व्यवहार पसिन्न नै होइन। मुदा विद्यार्थी रहने मन भसोसि क रहि जाथि। एक दिन वर्गेमे सुभाष बैसल रहथि। ओटन भारतवासीक प्रति व्यंग्य करए लगल। व्यंग्य सुनि सुभाषक हृदेमे आगि धधकए लगलनि। क्रोधे ओ बेकाबू भऽ गेलाह। अपन जगहसँ उठि, आगू बाढ़ि ओटनक गालमे कसि कऽ दू थापर लगबैत कहलखिन- भारतवासीमे अखनो स्वाभिमान जीबैत छै। जँ कि‍यो ऐ बातकेँ बिसरि चुनौती देत तँ एहिना मारि खाएत।




कलंक

गामक कोन लेखा जे पचकोसीक लोक किसुन भायकेँ इमानदार बुझै छन्‍हि। ओना ओ एकचलिया लोक छथि जबकि गामो आ परोपट्टाक लोक बहुचलिया। तँए किसुन भायकेँ जत्ते प्रशंसा होइत ओतबे निन्दो। ओना ज्ञान-अज्ञानक बीच, सुख-दुखक बीच, धरम-पापक बीच, उत्थान-पतनक बीच, प्रशंसा-निन्दाक बीच तँ पहिनहिसँ संघर्ष होइत आएल अछि। मुदा किसुन भाय अनकर प्रशंसा-निन्दाकेँ ओते महत्व नै दैत जत्ते अपन सैद्धान्ति जिनगीकेँ। अपन जिनगीक रास्तापर सदिखन सचेत रहै छलथि। कएक दिन एहेन होइत जे किसुन भायक वि‍चारसँ अलग सौंसे गामक लोकक विचार होइत। मुदा तेकर एक्को पाइ गम हुनका नै। अपन रास्तापर ओ असकरो निर्भीकसँ ठाढ़ रहैत छलाह। मुदा वि‍चार बदलैक लेल तैयार नै होथि।
जिनगीक आरंभे किसुन भाय खेतीसँ केलनि। खेत तँ बहुत नै छलनि मुदा जतबे छलनि तइमे मेहनतक बले परिवार चला लथि। बाढ़ि, रौदी आ आरो-आरो प्राकृतिक आफत तथा उपद्रव जकाँ मानवीय आफतक मुकावला करैक लूरि सीख नेने छथि। तँए आन परिवार जकाँ परिवारमे चिन्तो नै होइन। खानदानी खेतीकेँ कतौ बदलि तँ कतौ सुधारि क करथि‍। जइसँ गामोक खेतिहर अचता-पचता क हुनके अनुकरण करैत।
तेसर साल टहलैले पंजाब गेल रहथि। टहलैले की जइतथि, खेती देखैले गेल रहथि‍। पंजाबक खेती अगुआएल तँए देखब जरुरी बुझि पड़लनि। पंजाबमे झिमनिक खेती देखलखिन। मिथिला क्षेत्रमे जत्ते-जत्ते घेड़ा, होइत तत्ते-तत्ते झिंगुनी देखलखिन। फड़ो अटूट। झिंगुनी देख किसुन भायक मनमे गड़ि गेलनि‍। मने-मन सोचलनि जे जै पंजाबक माटि गोंग अछि तखन जब एहेन अछि तँ अपन माटि (मिथिलाक माटि) मे केहन हएत, तत्काल ओ नै सोचि सकलथि। मुदा बीआ नेने एलाह। समैपर बीआ रोपलनि। ओइ चारि कट्ठा झिंगुनिक खेतीसँ किसुन भाय एकटा जरसी गाए किनलनि। अपना लेल ओते बीआ शुरुहेक फड़ रखि लेलनि जे छः कट्ठा खेती अगिला साल करब। धुर-झाड़ जखन झिंगुनी बेचए लगलथि तखन गामोक लोक बीआ मंगलकनि। पचता फड़क बीआ लोक सभले रखि देलखिन अगता फड़क समए तँ निकलि गेल छल।
ऐबेर गाममे, झिंगुनिक अनधुन खेती भेल। किसुन भायक उपजा तँ पैछले साल जकाँ भेल मुदा गामक लोकक दब भ गेलै। दब होइक कारण छलैक उपजबैक ढंग आ पचता बीआ। सौंसे गामक लोक हुनका ठक कहि कलंकित करए लगलनि। कतेक गोटे सोझहोमे कहलकनि। ठकक कलंकसँ किसुन भाय सोगाए लगलथि। जेना कते भारी कुकर्म क नेने होथि। मनमे सदिखन यएह नचैत रहनि जे- एना भेलै किएक?”
ऐ प्रश्नक उत्तर मनमे जगबे ने करनि। अनायास एक दिन हृदेसँ आवाज उठलनि- किसुन! तोहर दोख एक्कोपाइ नै छह। अनेरे सोगाइल छह। तोहर कलंकक कारण बीआक मुरहन आ दौजी गुने भेल छह।
हृदेक आवाज सुनि किसुन भाय पूछलखिन- अगर हम ऐ बातकेँ मानि अपनाकेँ निरदोस बुझिये लेब तैयो आन केना बुझत?”
- हँ, तोरा ओइ दिन तक कलंकक मोटरी कपारपर रखै पड़तह जै दिन तक ओहो सभ मुरहन आ दौजीक भेद बुझि नै जाएत



बुलकी

एकटा खेत बोनिहारक घरवाली नाकक बुलकी लेल रुसि रहलि। बुलकी कीनैक उपाए पतिकेँ नै। हर जोति क जखन ओ बोनिहार आएल तँ घरबालीकेँ रुसल देखलक। मुँह-तुँह फुलौने ओसारपर बैसलि‍। धिया-पूता खाइले कनैत। बोनिहार अपन तामसकेँ घोटि घरबाली लग जा कहलकै- किअए रुसल छी? भूखे बच्चो सभ लहालोट होइए। आबो भानस करु।
अपन रोष झाड़ैत पत्नी बाजलि- जाबे बुलकी नै आनि देब ताबे ने खाएब आ ने किछु करब।
खुशामद करैत पति कहलकै- आइये साँझमे हाटसँ कीन क आनि देब। अखन भानस करु।
पतिक बात पत्नी मानि गेलि। बोनिहार कर्ज रुपैया अनैले विदा भेल। दश रुपैया अना दर सूदपर अनलक। रुपैया घरवालीक हाथमे द देलक। भानस भेलै। सभ खेलक। बेरु पहर दुनू परानी हाटसँ बुलकी कीन अनलक।
दोसरि साँझमे बुलकी पहिर सुगिया-दादीकेँ गोड़ लगैले बोनिहारिन गेलि। सुगिया दादी ओसारपर बैस पोता-पोतीकेँ नल-दमयत्नीक खिस्सा सुनबैत रहथि। दादीकेँ गोड़ लागि बोनिहारिन बुलकी देखैले कहलक। बुलकी देख दादी कहए लगलखिन- कनियाँ। सोन-चानी गरीब-गुरबा घरमे नै रहै छै। जै घरमे पेटेक भूख नै मेटाइ छै ओइ घरमे सिंगारक चीज केना रहतै। अनेरे अपन सख करै छह। कहुना-कहुना बच्चा सभकेँ पालह जे कुल-खानदान जीबैत रहतह।
दादीक बात सुनि बोनिहारिन आंगन आबि पतिकेँ कहलक- गलती भेल जे हम रुसि क अहाँसँ बुलकी किनेलौं। अखैन रखि दै छिऐ, काल्हि घुमा क कर्जाबलाक रुपैया द एबै।

भद्रपुरुष

एक दिन एकटा वृद्धा कोठीसँ निकलैत एकटा भद्र-पुरुषकेँ कहलखिन- अहाँ, ऐ कोठीक मालिकसँ कनी भेँट करा दिअ?”
ओ भद्र-पुरुष कहलखिन- कोन काज अछि कहू?”
वृद्धा- हमरा बेटीक वियाह छी। तीन साए रुपैयाक जरुरत अछि। अगर रुपैया नै हएत तँ वियाह रुकि जाएत
चलू।
ओ भद्र-पुरुष अपन कारमे वृद्धाकेँ बैसाए ल गेलखिन। थोड़े दूर गेलापर कारसँ उतरि सामनेक मकानमे प्रवेश केलनि। वृद्धोकेँ संगे नेने गेलखिन। भीतर गेलापर वृद्धाकेँ ओसारपर बैसाए अपने कोठरीमे गेलाह। कोठरीमे जा पाँच साए रुपैया नोकरकेँ दऽ, ओइ वृद्धाकेँ द अबैले कहलखिन। पाँचो सौ रुपैया नेने आबि नोकर वृद्धाकेँ दैत कहलक-  भाय! पाँच सौ रुपैया अछि। तीन साएमे बेटीक वियाह सम्हारि लेब आ दू साएसँ कोनो धंधा शुरु क लेब। जइसँ आगूक जिनगी आसानीसँ चलत।
रुपैया हाथमे ल वृद्धा ओइ नोकरक मुँह दिस देखैत कहलक- भाय! कोठीक मालिक कहाँ भेटलथि?”
नोकर- जनिका संग अहाँ कारमे एलौं वएह ऐ कोठिक मालिक- बाबू चितरंजन दास छथि।
जै आदमीक लेल सौंसे समाज परिवार होइत, जे अनको दुखकेँ अपन दुख बुझि जीबैक प्रेरणा दैत वएह तँ भद्र-पुरुष होइत।



झूठ नै बाजब

बंगालक पूर्व मुख्यमंत्री डाॅक्टर विधानचन्द्र राय बच्चेसँ मानवीय गुणक अंगीकार करैत रहथि। जे गुण हुनक पितासँ भेटैत रहनि। सत्यक प्रति निष्ठा आ साहस दिनानुदिन बढ़ैत गेलनि। जखन विधानचन्द्र डाॅक्टरी पढ़ैत रहथि तखने अध्यापक मोटर एक्सिडैंटक संबंधमे झूठ गबाही दइले कहलकनि। अध्यापकक इच्छा रहनि जे विधानचन्द्र छात्र छी तँए जे कहबै से करत। मुदा झूठ नै बाजैक संकल्प विधानचन्द्र केने रहथि। अध्यापकक कहलापर विधानचन्द झूठ बजैसँ इनकार करैत कहलकनि- हम जे देखलि‍ऐ सएह कहबै। मुदा झूठ नै बाजब।
जेकर परिणाम विधानचन्द्रकेँ भोगए पड़लनि‍। परीक्षामे फेल कऽ देल गेलाह। मुदा फेल होइसँ ओ ओते दुखी नै भेलाह जते खुशी अपन संकल्प निमाहैसँ भेलाह।



आर्दश माए

आर्मेनियाक सर्वोच्च सेनापति सीरोज ग्रिथक व्यक्तित्व हुनक माइयेक बनाओल छलनि। जखन ग्रिथ बच्चे रहथि तखने पिता मरि गेलखिन। विधवा नार्विन ग्रिड कपड़ा सीब-सीबि‍ गुजरो करथि‍‍ आ बेटोकेँ पढ़बथि‍। गरीब परिवारक ग्रिथ अछि, ई बात स्कूलोक शिक्षक सभ जनैत। फीस माफ होइले ग्रिथ आवेदन देलक। फीस माफो भ गेलै। फीस माफक समाचार ग्रिथ माएकेँ कहलक। माए बिगड़ि क बाजलि- हम मेहनत कए कऽ गुजर करै छी, तखन फीस किएक ने देबै। हम मेहनती छी नै कि‍ गरीब। हमर अपन स्वाभिमान कहैत अछि जे गरीब नै छी।
स्वाभिमानी माए अपन बच्चाक एहेन चरित्र बनौलक जे देशक सर्वोच्च सेनापति भेल।



नारी सम्मान

नेपोलियन बोनापार्ट अपन टुइ-लेरिस नाओंक महलमे स्नान घरक मरम्मत करबैले सचिवकेँ कहलखिन। सचिव महलक अधिकारीकेँ फ्रान्सक कुशल कारीगरकेँ बजा मरम्मत करैले कहलखिन। कारीगर आबि मरम्मत करए लगल। जखन मरम्मत भ गेलै तखन नारीक नग्न चित्र सभ सेहो बना देलकै।
नेपोलियन नहाइले गेलाह। नहाइसँ पहिने चित्र सभ देखलखिन। चित्र देख नेपोलियन चोट्टे घुरि क आबि अधिकारीकेँ बजौलखिन। अधिकारी आएल। हृृदएक क्रोधकेँ दबैत नेपोलियन अधि‍कारीकेँ कहलखि‍न- नारीकेँ प्रति‍ष्‍ठा देब सीखू। स्‍नान घरमे जे नारीक नग्‍न चि‍त्र बनबौने छी ओ नि‍न्‍दनीय अछि‍। जै देशमे नारीकेँ वि‍लासक साधन बनाओल जाएत ओइ‍ देशक बि‍नाश नि‍श्‍चि‍त हेतै।
नेपोलि‍यनक आदेश सुनि‍ अधि‍कारी कारीगरकेँ बजा सभ चि‍त्र मेटौलक।






अनुशासन

अंग्रेजी शासनक खिलाप आन्दोलन उग्र रुप धेने जा रहल छल। आन्दोलन चलबैले क्रान्तिकारी दलकेँ डकैतियो करए पड़ै। एक दिन, राम प्रसाद विस्मिलक नेनृत्वमे, एकटा गाममे डकैती करैक लेल पहुँचल। एकटा परिवारमे सभ घुसल। जतए जे किछु दलकेँ भेटलै लऽ कऽ निकलल। सभ एकत्रित हुअए लगल कि अपन साथीक गिनती करए लगल। गिनतीमे एक गोटे कमैत रहए। घरेमे चन्द्रशेखर एकटा बुढ़ियाक कैदमे पड़ल छल। ओ बुढ़िया अपन जेबर आ नगदीबला बक्सापर बैस चन्द्रशेखरक गट्टा पकड़ने छलि। चन्द्रशेखर चुपचाप आगूमे ठाढ़। ने बाँहि झमारैत आ ने किछु बजैत। सभ कि‍यो घर पैस देखलक जे चन्द्रशेखर बुढ़ियाक पालामे पड़ल छथि।
क्रान्तिकारी पार्टीक बीच अनुशासन छल जे ने महिलापर हाथ उठाओल जएत आ ने ओकर जेबर लेल जएत। आजाद बुढ़ियाकेँ बुझबैत कहथिन- माता जी! अहाँ बक्सापर सँ हटि जाउ। हम सिर्फ नगद लेब। जेबर नै लेब।
आजादक विनम्र बातसँ बुढ़ियाक साहस बढ़ि गेल छलैक। जखन चन्द्रशेखरसँ संगी सभ पूछल तखन ओ सभ बात कहलखिन। आजादक बात सुनि सभ ठाहाका द हँसए लगल। गट्टा छोड़बैले एक गोटे बढ़ए लगलथि आकि चन्द्रशेखर कहलखिन- माताजीक सभ सम्पत्ति घुमा दियौन।
सम्पत्तिक नाओं सुनि भावुक बुढ़िया चन्द्रशेखरक गट्टा छोड़ि देलकनि। तखन ओ घरसँ संगी सबहक संगे निकललाह।




सादा जि‍नगी

सन १९४९ई.क बात थिक। ओइ समए स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश सरकारमे गृहमंत्री रहथि। एक दिन लोक निर्माण विभागक किछु कर्मचारी हुनका डेरामे कूलर लगबैले आएल। शास्त्री जी डेरामे नै रहथि। परिवारक बच्चो आ पत्नियोकेँ कूलर देख खुशी होइत।
साँझमे लालबहादुर शास्त्री डेरा एलाह। डेरा अबि‍ते देखलखिन जे कूलर लगबैले लोक निर्माणक कर्मचारी सभ छथि। कूलरसँ शास्त्री जीकेँ खुशी नै भेलनि। ओ कूलर लगबैसँ मना कऽ देलखिन। परिवारक सभ स्तब्ध भऽ गेल। पत्नी कहलकनि- जे सुविधा सरकार द रहल अछि ओकरा मना किएक करै छी?”
गंभीर स्वरमे शास्त्री जी उत्तर देलखिन- ई जरुरी नै अछि जे हम सभ दिन मंत्रिये रहब। कूलरसँ सबहक आदति बिगड़ि जाएत। परिवारमे बेटियो अछि, जेकर बिआह हेतै। दोसर घर जाएत। अगर जँ ओकरा ओइ परिवारमे एहेन सुविधा नै होय तखन तँ कष्ट हेतै।






विचारक उदय

गाँधीजी बच्चे रहथि। हुनक बड़का भाय हुनका मारलकनि। गाँधीजी कनैत माए लग आबि कहलखिन। गाँधीक बात सुनि माए कहलखिन- तहूँ किएक ने मारलह?”
माएक बात सुनि गाँधीजी कानब छोड़ि कहलखिन- जे गलती भैया केलनि सएह करैले हमरो कहै छी। आकि‍ हुनका मनाही करबनि।
बेटाक बात सुनि माए कहलखिन- बौआ, हम तोहर परीछा लेलिअह। अगर तोरामे एहेन विचारक विकास हेतह तँ आगू चलि क सौंसे दुनियाँक प्रति सिनेह आ प्रेम पौबह।
बच्चाक समुचित विकासक आरंभ परिवारेसँ शुरु होइत अछि।




पुष्ट इकाइसँ समर्थ राष्ट बनैत

फ्रान्स हालैंडपर आक्रमण क देलक। फ्रन्स नमहर देशो आ सम्पन्नो। जबकि होलैंड छोटो आ पछुआएलो। मुदा फ्रान्स हालैंडसँ जीत नै पबैत। ई देख, फ्रन्सक राजा लुइ-चैदहम बिगड़ि मंत्री कालवर्टकेँ बजा पूछल- हमर देश एत्ते पैघ आ सामरिक सम्पन्न रहितो पछड़ि किअए रहल अछि?”
राजाक बात सुनि कालवर्ट नम्र भ उत्तर देलकनि- महत्ता आ समर्थता। कोनो देशक विस्तार आ बैभवपर निर्भर नै करैत। ओ निर्भर करैत ओइ देशक देश-भक्त आ बहादुर नागरिकपर। जे अपना देशक अपेक्षा हालैंडमे मजगूत अछि।
मंत्रीक बात सुनि राजा अपन सेना वापस बजा लेलक। हालैंडमे बच्चा-बच्चाकेँ राष्ट्रक सशक्त इकाईक रुपमे ढालल जाइत। जइसँ ओ शक्तिशाली बनि ठाढ़ अछि।




डर नै करी

उगैत सुरुज जकाँ जिनगी अपन दिशामे, अपना ढंगसँ बढ़ैत जा रहल छल। एक विरामपर जा जिनगी पाछू मुँहे घुरि क तकलक तँ चौंक गेल। चंडालिनी सन कारी आ कुरुप छाया पाछू-पाछू अबैत छल। छायाकेँ देख जिनगी ललकारि कऽ पूछलक- अभागिनी! तोँ के छेँ? हमरा पाछू-पाछू किएक अबैछेँ? तोहर कारी आ कुरुप काया देख हमरा डर होइए। जो भाग। हमरासँ हटि कऽ रह।
छाया छिप गेल। मुदा जिनगी घिंघयाइत बढ़ल। पुनः छाया आबि कहलकै- वहिन! हम तोहर सहचरी छियौ। तोरे संग हमहूँ चलि रहल छी। आ अंतमे दुनू गोटे संगे रहब। तँए डरैक कोनो बात नै। तोँ हमरा नै चिन्हैछेँ, हमरे नाओं मृत्यु थिक।
मृत्युकेँ पाछु लगल अबैत देख जिनगी डरि गेल। सकपका क गिर पड़ल।




असिरवाद उलटि गेल

एक गोटेकेँ दूटा बेटा छलै। दुनूक बीच तीन बर्खक जेठाइ-छोटाइ छलै। गामेक स्कूलमे दुनू भाँइ पढ़बो केलक। अपर प्राइमरी स्कूल रहने दुनू-भाँइ पचमे तक पढ़लक। दुनू बेटाक वियाह बाप-माए क देलक। जाबे धरि छोटका बेटाक दुरागमन नै भेल छलै ताबे धरि तँ परिवार शान्त रहलै, मुदा छोटकाक दुरागमन होइते परिवारमे खटपट शुरु हुअए लगलै। एक्को दिन एहेन नै होय जै दिन दुनूक बीच झगड़ा नै होइत। सभ दिन दुनू दियादनीकेँ झगड़ा करैत देख बापकेँ बरदास नै भेलै। दुनू बेटाकेँ बजा बाप कहलकै- बौआ, सभ दिन झगड़ा केने घरसँ लछमी पड़ा जेथुन तँए अखन हमहूँ जीबते छी दुनू भाँइ भीन भ जाह। जे चीज छह दुनूकेँ बाँटि दै छिऐ।
जेठका बेटाकेँ नगद आ जेवर-जात हिस्सा भेलै आ छोटकाकेँ दू बीघा खेत, आ बड़द भेलै। दुनू भाँइ खुशीसँ भीन भऽ गेल। नगद आ गहना-गुरिया पाबि जेठका खूब एश-मौज करए लगल।
दुनू परानी छोटका दिन-राति मेहनत करए। गामक लोक जेठकाकेँ करमगर आ छोटकाकेँ करमघटू कहए लगलैक।
समए बीतए लगलै। दुइये सालक बाद पाशा पलटए लगलै। जेठका बेटाक रुपैओ आ गहनो सठि गेलै मुदा छोटकाक उन्नति हुअए लगलै। नगद आ जेबर सठने जेठका चोरि करए लगल। एक दिन चोरि करए गेल तँ घरेमे पकड़ा गेल। जइसँ मारिओ खूब खेलक आ जहलो गेल।
गामक लोकक असिरवाद उनटए लगल। जही मँुहसँ जेठकाकेँ करमगर आ छोटकाकेँ करमघटू कहैत छलै ओही मँुहसँ लोक जेठकाकेँ करमघटू आ छोटकाकेँ करमगर कहए लगलैक।


रत्न गमेवाक दुख

एकटा गोताखोर, कएक दिनसँ असफल होइत आएल छल। भरि-भरि दिन परिश्रम करैत छल मुदा किछु हाथ नै लगैत छलै। जइसँ परिवार चलब कठिन भऽ गेलै। आन काज करैक लूरि रहबे ने करै, जे करैत। भोरे घरसँ नदीक महारपर बैस रत्नक आशामे टक-टक पानि‍ दिस तकैत रहैत छल। निराश भ गोताखोर मनमे विचारलक जे आइ ऐ काजक आखि‍री दिन छी। जँ आइ किछु नै भेटत तँ काल्हिसँ छोड़ि देब। जाल ल नदीक महारपर बैस, मने-मन भगवानसँ कहए लगलनि- अगर अहाँ मदति नै करब तँ हम जीब केना?”
भगवानसँ प्रार्थना क गोताखोर पानिमे पैस डूबकी लगौलक। एकटा पोटरी भेटलै। पोटरी नेने गोताखोर ऊपर भेल। किनछरिमे बैस पोटरी खोललक। छोट-छोट पाथर ओइ पोटरीमे। पाथर देख गोताखोर निराश भ गेल। मनमे क्रोधो उठलै। एकाएकी ओइ पाथरकेँ पानिमे फेकए लगल। पाथरो फेके आ मने-मन अपना भागोकेँ कोसै। फेकैत-फेकैत एकटा पाथर बँचलै। ओइ पाथरकेँ जखन फेकए लगल कि ओइपर नजरि पड़लै। पाथर चमकैत रहए। ओ नीलम पत्थर रहए। गोताखोर चीन्हि गेल। मुदा ताघरि तँ सभटा फेक देने छल। अपसोच करए लगल मुदा सभ तँ पानिमे चलि गेल छलै तँए अपसोच कइये कऽ की हेतै। अपसोच करैत देख भगवान चिड़ै बनि आबि कहए लगलखिन- ऐ गोताखोर! सिर्फ तोँहींटा एहेन अभागल नै छेँ, ढेरो अछि जे जीवन रुपी रत्न राशिकेँ एहिना गमबैत अछि। जो, जएह बँचल छौ ओकरे बेच क गुजर कर। मुदा ज्ञान बढ़ा। जइसँ धनो पबैक लूरि भऽ जेतौ आ मनुक्खो बनि जीमे।


नशा

एकटा व्यापारी अफीम खाइत छल। ओ अपना नोकरोकेँ अफीमक चहटि लगा देलक। एक दिन दुनू गोटे बाजार जाइक विचार केलक। जे सामान सभ दोकानमे सठल रहए ओकर पुरजी बनौलक। रुपैया गनलक। दुरस्त बाजार रहने दुनू गोटे घरेपर भरि पेट खा लेलक। बाजार विदा भेल। किछु दूर गेलापर दुनू गोटे खेनाइ बिसरि गेल। रास्तामे होटल छलै, दुनू गोटे घोड़ासँ उतड़ि खाइले गेल। घोड़ाकेँ छानि क चरैले छोड़ि देलक। दोकानमे दुनू गोटे खा सोझे बजार विदा भेल। बजारक कात जखन पहुँचल तँ व्यापारीकेँ मन पड़लै जे घोड़ा ओतै छूटि गेल। मनहूस भऽ दुनू गोटे माथपर हाथ द बैस रहल। थोड़े काल गुनधुन करैत घोड़ा आनए दुनू गोटे घुरि गेल। घुरि कऽ दोकान लग आएल तँ घोड़ाकेँ चरैत देखलक। लगाम लगा दुनू गोटे चढ़ि बजार दिस विदा भेल। बाजार पहुँच दोकानमे सौदा-बारी कीनलक। सामान समेट, मोटरी बान्हि जखन रुपैया देमए लगलै तँ रुपैयाक झोरे नै। दुनू गोटे मन पाड़ए लगल जे रुपैयाक झोरा की भेल? किछु कालक बाद मन पड़लै जे झोरा तँ ओतै छूटि गेल जेतए बैसल छलौं। दुनू गोटे बपहारि काटए लगल। कनैत देख, एकटा ग्रामीण महिला सामान कीनैत छलि, व्यापारीकेँ कहलक- ई गति सिर्फ अहीं दुनू गोटे टाकेँ नै, सभ नसेरीकेँ होइ छै।



सामना

एकटा बन छल। ओइ बनमे अनेको सुगर परिवार छल आ एकटा सिंह सेहो रहैत छलैक। जखन कखनो सिंहकेँ भूख लगै तखन टहलि सुगरकेँ पकड़ि खा जाइत। दोसर-तेसर सुगर सिंहकेँ देखते पड़ा जाइत। एक दिन सभ सुगर मिल बैसार केलक। बैसारमे तँइ केलक- जखन एका-एकी मरिये रहल छी तखन लड़ि कऽ किएक ने मरब।
ऐ विचारसँ सभ सुगरमे साहस जगलै। सभ मिल लड़ैले विदा भेल। सभ हल्लो करै आ चिकड़ि-चिकड़ि सिंहकेँ गरियेबो करै। जत्ते जोरगर सुगर छल ओ आगू-आगू आ अबलाहा सभ पाछू-पाछू विदा भेल। सिंहकेँ देखते सभ जोरसँ हल्ला करैत दौड़ल। आइ धरि सिंहकेँ एहेन मुकाबलासँ भेँट नै भेल छल। सिंह डरा गेल। अपन जान बँचबैले पड़ाएल। सिंहकेँ पड़ाइत देख सुगर पाछुसँ खेहारलक। सिंह बनसँ बाहर भऽ गेलै। बन खाली भऽ गेलै। सभ सुगर निचेनसँ रहए लगल।




शिष्टाचार

एकटा इनारपर चारिटा पनि-भरनी पानि‍ भरैले आएल छलि। एक्केटा डोल छलै तँए एक गोटे पानि भरैत छलि आ तीन गोटे गप-सप्‍प करैत छलि। सभ अपन-अपन बेटाक बड़ाइ करैत। पहिल औरत बाजलि- हमर बेटाक आवाज एत्ते मधुर अछि जे रजो-रजवारमे ओकरा सम्मान भेटतै।
दोसर कहलकै- हमरा बेटाक शरीरमे एत्ते तागत अछि जे नमहर भेलापर बड़का-बड़का पहलमानकेँ पटकत।
तेसर बाजलि- हमर बेटा एहेन तेजगर अछि जे सभ साल इस्कूलमे फस्ट करैए।
मूड़ि निच्चाँ केने चारिम कहलक- आने बच्चा जकाँ हमर बेटा साधारण अछि।
पनि-भरनी सभ इनारपर गप-सप्‍प करिते छलि कि स्कूलमे छुट्टी भेलै। अबैत-अबैत चारुक बेटा इनार लग देने गुजरैत रहए। एकटा गीत गबैत दोसर कूदैत-फनैत, तेसर किताब खोलि किछु पढ़ैत छल। चारिम पाछू-पाछू चुपचाप अबैत छल। इनार लग अबिते चारिम अपन माएक भरल घैल माथपर ल लेलक आ माएक हाथमे अपन बस्ता द देलक। आगू-पाछू दुनू माए-बेटा आंगन विदा भेल।
इनारे लग एकटा बुढ़िया बैसल सभ बात सुनैत छलि। ओ चारु पनिभरनीकेँ रोकि, कहलक- ई चारिम लड़का जे अछि ओ सभसँ नीक अछि। एकर शिष्टाचार सभसँ नीक छै




ठक

एकटा ठक लोमड़ी गाछक निच्चाँमे छल। गाछपर बैसल मुर्गाकेँ पट्टी द रहल छलै जे भाय तूँ नै सुनलहक जे सभ पशु-पक्षी आ जानवरक बीच सभा भेल। जइमे सर्वसम्मतिसँ निर्णए भेल जे अपनामे कोइ ककरो अधला नै करै तोँ किएक गाछपर छह, निच्चाँ आबह आ दुनू गोटे अपन जिनगीक दुख-सुखक गप-सप्‍प करह। लोमड़ीक चालाकी मुर्गा बुझैत छल तँए गाछेपर सँ हूँ-कारी दैत मुदा निच्चाँ नै उतड़ै। ताबे दूटा आवारा कुकूड़केँ दौड़ल अबैत लोमड़ी देखलक। कुत्ताकेँ देखते पड़ाएल। लोमड़ीकेँ पड़ाइत देख गाछेपर सँ मुर्गा कहलकै- भाय, भगै किएक छह? जखन सबहक बीच समझौता भ गेलै तखन तोरा किएक डर होइ छह?”
लोमड़ी भगबो करै आ उत्तरो दै- सकैए जे तोरे जकाँ ओकरो नै बूझल होय।





पत्नीक अधिकार

गृहस्ताश्रम ओहन आश्रम होइत जइमे आत्मसंयम, पारस्परिक सद्भाव आ सद्प्रवृत्ति‍क अभ्यास आसानीसँ कएल जा सकैत अछि। एक दिन हजरत उमरसँ भेँट करए एक आदमी आएल। थोड़े काल बैसल तँ उमरक पत्नीकेँ जोर-जोरसँ उमरपर बजैत सुनलक। उमर चुपचाप सुनैत। किछु उत्तर नै दैत। ओइ आदमीकेँ बड़ छगुन्ता लगलै जे पत्नी यत्र-कुत्र कहि रहल छन्‍हि मुदा किछुुुु उत्तर उमर नै दैत छथिन। ओइ आदमीकेँ नै रहल गेलै। ओ उमरकेँ पूछल- अपनेक पत्नी यत्र-कुत्र कहि रहल छथि मुदा अहाँ मुड़िओ उठा क ओमहर नै तकै छी?”
गंभीर स्वरमे उमर जबाब देलखिन- भाय! ओ हमर मैल-कुचैल कपड़ा खिंचैत छथि, खाना बनबै छथि, सेवा करैत छथि आ सभसँ पैघ बात जे हमरा पाप करैसँ सेहो बँचबै छथि। तखन जँ ओ बिगड़ि क दू-चारिटा बाते कहै छथि तँ कि हुनका एतबो अधिकार नै छन्‍हि।




शिनीची सि‍नेह

तीन दिनसँ चुल्हि नै पजरने, दुनू परानी सियान तँ बरदास केने रहथि, मुदा बच्चा सभ भूखे ओसारपर ओंघरनियो दैत आ हिचुकि-हिचुकि कनबो करैत। अनेको प्रयास सियान केलक मुदा कोनो गर खेनाइक नै लगलै। अंतमे निराश भ सियान, अपन जिनगीकेँ बेकार बुझि, आत्महत्या करैक विचार मनमे ठानि लेलक। आत्महत्या करैले विदा भेल। निराश मन दुखक अथाह सागरमे डूबए लगलै आकि पाछूसँ एक आदमी कान्हपर हाथ दऽ कहलकै- मित्र! ऐ अमूल्य जिनगीकेँ गमौलासँ की हएत? हम मानै छी जे अहाँक विपत्ति अहाँकेँ आत्महत्या करैले बेबस कऽ देलक। मुदा की अहाँ ऐ बि‍पति‍केँ हँसैत-हँसैत पाछू नै धकेल सकै छी?”
आत्मीयताक शब्द सुनि सियान बोम फाँड़ि कनए लगल। कनबो करैत आ अपन सभ मजबूरी ओइ आदमीकेँ कहबो करैत। मजबूरी सुनि शिनीचिओकेँ आॅखिमे नोर आबि गेलै। तत्काल ओ सियानकेँ भोजनक जोगार करैक लेल किछु रुपैया दऽ देलखिन। सियान घुरि कऽ घर आबि भोजनक व्यवस्था केलक।
वएह शिनीची जापानक प्रसिद्ध कवि छथि। आहीठाम ओ संकल्प केलनि जे अप्पन कमाइक तीन-चैथाइ भाग ओहन व्यक्तिक सेवामे लगाएब जे कष्टमय जिनगीमे पड़ल अछि।
घरपर आबि शिनीची एकटा गुप्तदानक पेटी बना मुख्य चौराहापर रखि देलनि‍। ओइ पेटीक उपरमे लि‍ख देलखिन- जै सज्जनकेँ सचमुच पाइक जरुरत होइन ओ ऐ पेटीसँ अपना काज जोकर निकालि लथि
सभ दिन साँझकेँ शिनीची आबि पेटी खोलि देख लथि। जँ पाइ नै रहै तँ दऽ दथि।

सिखबैक उपाए

एकटा गरुड़ छल। ओकरा एकटा बच्चा छलै। बच्चाकेँ पीठपर लऽ गरुड़ एकठामसँ दोसर ठाम चराओर करैत छल। साँझू पहरकेँ बच्चाकेँ पीठपर लदने घर अबैत छल। उड़ै जोकर बच्चा भऽ गेल छलै मुदा पीठपर बैसैक जे आदति लागि गेल छलै से छोड़बे ने करैत। कएक दिन गरुड़ बुझौलकै मुदा ओ अपन बानि‍ छोड़बे ने करैत। मने-मन गरुड़ सोचलक जे सोझे कहनेसँ नै मानत तँए रास्ता धड़बए पड़त।
दोसर दिन बच्चाकेँ पीठपर नेने गरुड़ उड़ैत विदा भेल। जखन खूब ऊपर गेल तखन आस्तेसँ अपन पाँखि समेट बच्चाकेँ छोड़ि देलक। बच्चा निच्चाँ गिरए लगल। अपनाकेँ निच्चाँ गिरैत देख बच्चा पाँखि फड़फड़बए लगल। आस्तेसँ निच्चाँ उतड़ल। आँखि उठा-उठा गरुड़ देखबो करैत आ बँचबैक उपायो सोचैत। निच्चाँमे आबि बच्चा पाँखि चलबैक प्रयास करए लगल, जइसँ उड़ब सीख लेलक। सायंकाल जखन सभ एकठाम भेल तखन बच्चा बापक शिकाइत करैत माएकेँ कहलक- माए! आइ जँ पाँखि नै फड़फड़ेने रहितौं तँ बाबू बिच्‍चे रास्तामे मारि दैताए।
माए बुझि गेलि। हँसैत बेटाकेँ कहलक- बौआ! जे अपनेसँ नै सिखत, स्वावलंवी बनत, ओकरा सिखबैक एकटा इहो रास्ता छिऐक।



कर्तव्यपराएन तोता

एकटा जमीनदार रहथि। हुनका बहुत खेत रहनि। धानक खेती केने रहथि। खेतक चारु कोणपर रखवार खोपड़ी बना ओगरबाहि करैत छल। रखवारकेँ रहितो तोता सभ उड़ैत आबि, धानो खाइत आ सीस काटि-काटि लैयो जाइत। एकटा एहेन तोता छल जे अपने खेतेेमे खा लैत आ उड़ै काल छहटा सीस काटि लोलमे लऽ उड़ि जाइत। एक दिन रखवार ओकरा जालमे फँसा लेलक। तोताकेँ नेने जमीनदार लग रखवार लऽ गेल।
तोताकेँ देख जमीनदार पूछलकै- धानक सीस काटि कतए जमा करैछेँ
निर्भीक भऽ तोता उत्तर देलकनि- दूटा सीस कर्ज सठबैले दूटा कर्ज लगबैले आ दूटा परमार्थले लऽ जाइ छी। कुल छह-टा सीस, अपन पेट भरलापर, उड़ि‍ जाइ छी।
अचंभित होइत जमीनदार पूछलकै- की मतलब?”
तोता- बृद्ध माए-बाप छथि जनिका उड़ि नै होइत छन्‍हि‍, तनिकाले दूटा सीस। दूटा बच्चा अछि तकराले दूटा सीस आ पड़ोसिया दुखित अछि दूटा सीस तकराले।
तोताक बात धि‍यानसँ सुनि जमीनदार गुम्म भऽ गेलाह। किछु समए मने-मन विचारि रखवारकेँ कहलखिन- ऐ तोताकेँ चीन्हि लहक। जँ कहियो धोखासँ पकड़ाइयो जा तँ छोड़ि दिहक।



तस्वीर

एकटा चित्रकार तीनटा तस्वीर बनौलक। एकटा सोचमे, दोसर हाथ मलैत आ तेसर माथ धुनैत। एक गोटे तीनू तस्वीरकेँ देख चित्रकारसँ पूछलक- तीनू तीन रंगक बुझि पड़ैए।
उत्तर दैत चित्रकार कहलक- ई तीनू एक्के आदमीक तीन अवस्थाक छी।
कोन-कोन अवस्थाक छी
पहिल वियाहसँ पहिलुका छी। जखन युवक कल्पनामे उड़ैत अछि। सोचैत अछि जे कत्ते सुन्नर कनियाँ भेटत। दोसर वियाहक बादक छी। जखन पारिवारिक जिनगी शुरु होइ छै आ जिम्मेवारी बढ़ैत छै। जिम्मेवारी बढ़लाक बादे समस्यासँ टकराए पड़ै छै। तखन बुझि पड़ै छै जे कोन जंजालमे पड़ि गेलौं तँए हाथ मलैत अछि। तेसर तस्वीर ओ छी जखन स्त्रीक वियोग आकि‍ विरोध होइत छै। तखन माथ घुनैत सोचए पड़ै छै जे हमर कपार फूटि गेल। अपने किरदानीसँ अपन, परिवारक आ खानदनक नाक कटा देलिऐक। जँ हमहूँ सही रास्तापर आबि चलैत रहितौं तँ एहेन दिन नै देखए ‍पड़ैत।


दोस्तक जरुरत

एकटा पैध पोखरि छल। ओकर उत्तरबरिया महारमे मोर रहैत छल आ दछिनबरियामे मोरनी। दुनू असकरे-असकरे रहैत। एक दिन मोर मोरनी ऐठाम जा वियाहक प्रस्ताव रखलक। मोरक प्रस्ताव सुनि मोरनी पूछलकै- अहाँकेँ कएटा दोस अछि?”
नजरि दौड़बैत‍ मोर उत्तर देलक- एकोटा नै।
मोरक जबाब सुनि मोरनी वियाह करैसँ इनकार क देलक। तखन मोरक मनमे एलै जे सुखसँ जीबैक लेल दोस जरुरी अछि। ओतएसँ विदा भ मोर पूबरिया महार होइत चलल। पूबरिया महारमे सिंह रहैत छल। आ पछबरियामे कौछु। सिंह बैसल-बैसल झपकी लैत छल। मोर सिंहक आगूमे ठाढ़ भ गेल। मोरकेँ बजैक साहसे ने होय। बड़ी खान धरि मोरकेँ ठाढ़ भेल देख सिंह पूछलकै। निराश मने मोर कहलकै- भैया! हम अहाँसँ दोस्ती करए एलौंहेँ। किएक तँ जिनगीक लेल दोस्तक जरुरत होइत छै सिंह मानि दोस्ती कऽ लेलक। सिंहसँ दोस्ती भेलाक बाद मोर पछबरिया महार आबि कौछुसँ सेहो दोस्ती केलक। पछबरिये महारक गाछपर टिटही सेहो रहैत छल। जे अपन काज इमानदारीसँ करैत छल। जखन कखनो शिकारीक आगमन होय आकि‍ कोनो आफत अबैबला होय तँ टिटही सभकेँ जानकारी द दैत।
दोस्ती केलाक बाद मोर मोरनी लग आबि सभ बात कहलक। मोरनी वियाह करैले राजी भऽ गेलि। दुनूक बीच वियाह भ गेलै। दुनू एक्के ठाम रहए लगल।
एक दिन एकटा शिकारी शिकारक भाँजमे पहुँचल। भरि दिन शिकारी शिकारक पाछू हरान भेल रहए मुदा कतौ किछु नै भेलै। थाकियो गेल रहै आ भूखो लागि गेल रहए। गाछक निच्चाँमे सुसताए लगल। गाछक निच्चाँमे चिड़ैक चट देख गाछपर चढ़ि चिड़ैकेँ पकडै़क विचार केलक। गाछेपर सँ मोर-मोरनी सेहो शिकारीकेँ देखैत। शिकारीकेँ गाछपर चढ़ैत देख दुनू परानी -मोर-मोरनी- सोचए लगल जे आइ दुनूक जान जाएत। मोर उडै़त टिटही लग गेल। टिटही जोर-जोरसँ बोली देमए लगलै। सिंह बुझि गेल। शिकार पकड़ैले सिंह विदा भेल। ताबे कछुआ सेहो पानिसँ निकलि किनछरिमे आबि गेलै। सिंहकेँ देख शिकारी भगैक ओरियान करए लगल आकि कौछुपर नजरि पड़लै। कौछुकेँ पकड़ए शिकारी किनछरिमे गेल कि कौछु ससरि पानिमे चलि गेल। शिकारी पानिमे पैइसए लगल आकि गादि -दलदल- मे लसकि गेल। ने आगू बढ़ि होय आ ने पाछू भऽ होय। ताबे सिंह आबि शिकारीकेँ पकड़ि लेलक। शिकारीकेँ पकड़ल देख मोरनी मोरकेँ कहलक- वियाह करैसँ पहिने जे दोस्तक संख्या पूछने रही से देखलि‍ऐ। आइ जँ दोस्ती नै केने रहितौं तँ की होइत?”



स्वार्थपूर्ण विचार

एकटा बच्चाक मृत्यु भऽ गेलै। अभिभावक संग किछु गोटे ओकरा उठा कऽ असमसान ल गेल। बरखा होइत रहए। असमसानमे सभ विचारए लगल जे एहेन दुरकाल समैमे लाशकेँ की कएल जाय? अपनामे सभ विचारिते छल आकि बिलसँ एकटा सियार निकलि कहलकै- एहेन समैमे लाशकेँ जरौनाइसँ नीक माटिमे गारनाइ हएत। धरती माएक गोदमे समरपित करब सभसँ नीक हएत।
सियारक बात समाप्तो नै भेल छल अाकि कौछु कहए लगलै- धारमे फेक दियौ। ऐ सँ नीक दोसर नै हएत। ताबे एकटा गीध उड़ैत आबि कहए लगकै- सभसँ नीक हएत जे ओहिना फेक दियौ, धारेमे नहा लिअ आ गामपर चलि जाउ।
कठिआरीबला सभ तीनूक चलाकी बुझि गेल। तीनूकेँ धन्यवाद दैत विदा केलक। पानियो छूटि गेलै। सभ मिल चीता खुनि जारन द जरा देलक।



संगीक महत्व

एकटा गाछ लग एकटा फूलक लत्ती जनमि क लटपटाइत बढ़ैत गाछक फुनगी धरि पहुँच गेलि। गाछक आश्रए पाबि ओ लत्ती फुलाए-फड़ए लगल। लत्तीक फड़-फूल देख गाछक मनमे द्वेष जगए लगलै जे हमरे बले ई लत्ती एत्ते बढ़ि, फड़ै-फुलायए। जँ हम सहारा नै दैति‍ऐक तँ कहिया-कतए माल-जाल चरि नष्ट क देने रहितैक। लत्तीपर रोब जमबैत गाछ कहलकै- तोरा हम जे आदेश दियौ से तूँ कर। नै तँ मारि क भगा देबौ।
वृक्ष लत्तीकेँ कहिते छल आकि दूटा बटोही ओइ रस्ते जाइत छल। लत्तीसँ सुशोभित गाछ देख एकटा राही दोसरसँ कहलक- संगी! ऐ वृक्षकेँ दखियौ जे कत्ते सुन्दर लगैए। निच्चाँमे कत्ते-शीतल केने अछि। ऐठाम बैस बीड़ी-तमाकुल कऽ लिय, तखन आगू बढ़ब।
लत्ती संग अपन महत्व सुनि गाछक रोब समाप्त भ गेलै। ओइ दिनसँ दुनू मिल प्रेमसँ रहए लगल।




उपहास

कोनो अधलो प्रचलन माने चलैन आकि‍ ढर्राकेँ तोड़ब अपने-आपमे कठिन कार्य होइत। जखन कखनो कि‍यो समाज आकि‍ परिवारमे गलत कार्यकेँ छोड़ि स्वस्थ आकि‍ तर्कयुक्त कार्य आरंभ करैत तँ सिर्फ परिवारेटा मे नै समाजोमे सभ उपहास करैत अछि। जइसँ धैर्यवान तँ स्थिर रहैत मुदा साधारण मनुष्य अधीर भ जाइत। पहिने इंग्लैंडमे छतरी -छत्ता- ओढ़नाइ गमारपन बुझल जाइत छलै। जै दुआरे लोक बरखोमे भीजैत चलैत मुदा छाता नै ओढ़ैत। ऐ गलत प्रथाक विरोध करैत हेनरी जेम्स छाता ओढ़ब शुरु केलनि। सदिखन ओ छाता संगेमे राखथि। जइसँ जेम्‍हर होइत चलथि‍ व्यंग्यक बौछार हुुअए लगनि। मुदा तेकर एक्को पाइ परवाह नै करथि।
देखा-देखी लोक हुनकर अनुकरण करए लगल। किछु दिनक बाद सभ छाता रखए लगल। जइसँ चलनि बनि गेल। चलैन एत्ते बढ़ि गेलै जे स्त्रीगणो आ राजमहलोक सभ छाता ओढ़ए लगल।
बादमे जएह सभ व्यंग्य करैत वएह सभ हेनरी जेम्सकेँ बधाई देमए लगलनि। बधाई देनिहारकेँ हेनरी जेम्स कहथिन- जे कि‍यो उपहास आ व्यंग्यक विरोधसँ नै डरत, वएह छोटसँ पैध धरि परिवर्तन कऽ सकैत अछि।
चाहे शिक्षा हो आकि‍ खेती आकि‍ आन-आन जिनगीक पहलू, रुढ़िवादी पुरान प्रथाकेँ तोड़ै पड़त। जाबे ओ नै टूटत ताबे नव समाजक निर्माण कल्पना रहत। तँए किछु प्रथाकेँ तोड़ि आ किछुकेँ सुधारि चलए पड़त। ऐ लेल सभमे साहस आनए पड़त।



महादान

अज्ञानक निवारण करब सभसँ पैघ पुण्य परमार्थ थिक। जे स्वध्याय आ ज्ञानार्जनसँ होइत अछि। उत्तराखंडमे एकटा पुरान नगरमे सुबोध नाओंक राजा राज्य करैत छलाह। हुनक माने सुबोधक नियम छलनि जे राजक काज शुरु करैसँ पहिने, आएल याचक सभकेँ दान दैत छलाह। ऐ नियममे कहियो भूल नै भेलनि।
एक दिन सभ याचककेँ दान दऽ देलखिन मुदा विचित्र स्थिति पैदा भऽ गेलनि। एकटा याचक ओहन आएल छल जे दानक लेल तँ हाथ पसारैत छल मुदा मुँहसँ किछु नै बजैत। सभ हेरान होइत जे हिनका की देल जाइन? एतथर्द बुद्धियार सबहक सलाहकार बोर्ड बनौलनि। कि‍यो विचार दन्हि जे वस्त्र देल जाए त कि‍यो अन्न देबाक सलाह देथिन। कि‍यो सोना-चानीक विचार देथिन। मुदा समस्याक यथार्थ समाधान हेबे ने करैत। सुबोधक पत्नी उपवर्गो रहथिन।
उपवर्गा कहलकनि- राजन! जै आदमीक मुँहसँ बोल नै निकलै ओकरा आन कोनो चीज देब उचित नै। तँए एहेन लोककेँ मुँहमे बोल देब सभसँ उत्तम हएत। अर्थात् ज्ञानदान। ज्ञानसँ मनुष्य अपन सभ इच्छा-आकांक्षा पूर्ति क सकैत अछि आ दोसरोकेँ मदति कऽ सकैत अछि।
उपवर्गाक विचार सभकेँ जँचलनि। ओइ आदमीक लेल शिक्षा व्यवस्था कएल गेल। ओइ दिन सुबोध अपन दानक सार्थकता बुझलनि।



भाग्यवाद

भाग्यवाद, शकुन, फलित ज्योतिष जकाँ अनेको प्रकरण अछि जे जनसमुदायकेँ जंजालमे ओझरा शोषणक रास्ता शोषकक लेल खोलि दैत अछि। एकटा ज्योतिषी सुख-दुख, जनम-मरणक बात कहि मनसम्फे धन जमा कऽ ताड़ी-दारु खूब पीबैत। एक दिन एकटा जमीनदारक ऐठाम पहुँच, हुनक हाथ देख कहलखिन जे एक बर्खक अभियनतरे अहाँक मृत्यु भ जाएत। ज्योतिषीक बातक बिसवास कऽ जमीनदार दिन व दिन सोगाए लगलाह। जमीनदारकेँ तीन गोट बेटा। तीनू पिताक आज्ञापालक। पिताकेँ सोगाएत देख मझिला बेटा पूछलकनि- बाबूजी! अपने दिनानुदिन किएक रोगाएल जाइ छी?”
चिन्तित मने जमीनदार उत्तर देलखिन- बौआ! हमर औरदा पूरि गेल। सालक भीतरे मरि जाएब।
ई, अहाँ केना बुझलिऐक?”
ज्योतिषी हाथ देख कहलनि।
मझिला बेटा ज्योतिषीकेँ बजा पूछलखिन। पैछले बातकेँ ज्योतिषी दोहरा देलकनि। मझिला बेटा ज्योतिषीकेँ पुनः पूछल- अहाँ अपने कत्ते दिन जीब?”
हँसैत ज्योतिषी उत्तर देलखिन- तीस बर्ख। ज्योतिषीक बात सुनि ओ घरसँ फरुसा आनि सोझे ज्योतिषीक गरदनिपर लगा देलक। ज्योतिषीक मूड़ी धरसँ अलग भ गेल। तखन ओ पिताकेँ कहलक- हिनकर उमेर तीस बर्ख बचले छलनि तखन आइ किएक मरलाह? ई सभ ठक छी। ठकक बातमे पड़ि अहाँ अनेरे सोगाएल जाइ छी।
जमीनदारक भ्रम टूटि गेल। धीरे-धीरे निरोग हुअए लगलाह।


सद्वृति‍

स्कन्दपुराणक कथा थिक। एकबेर कात्यायन देवर्षि नारदसँ पूछलकनि- भगवान! आत्म-कल्याणक लेल भिन्न-भिन्न शास्त्रमे भिन्न-भिन्न उपाए आ उपचार बताओल गेल अछि। गुरुजन सेहो अपन-अपन विचारानुसार कते तरहक साधन-विधानक महात्म्य बतौने छथि। जना-जप, तप, ति‍याग, बैराग्य, योग, ज्ञान, स्वध्याय, तीर्थ, व्रत, धि‍यान-धारण, समाधि इत्यादि अनेको रास्ता कहने छथि। जे सभ करब असंभवे नै असाध्यो अछि। सामान्यजन तँ निर्णये ने कऽ सकैत अछि जे एहिमे ककरा चुनल जाए? कृपा कऽ अपने एकर समाधान करियौक जे सर्वसुलभ सेहो होय आ सुनिश्चित मार्ग सेहो होय।
      धि‍यानसँ नारद कात्यायनक बात सुनि कहलखिन- हे मुनिश्रेष्ठ! सद्ज्ञान आ भक्तिक एक्के मार्ग अछि। जे थिक मनुष्यकेँ सत्कर्ममे प्रवृत्त करब। स्वयं संयमी बनि अपन सामर्थ्‍यसँ गिरल आदमीकेँ उठबए आ उठलकेँ उछालैमे नियोजित करए। सत्प्रवृत्तिये असल देवी थिक। जकरा जे जत्ते श्रद्धासँ सिंचैत अछि ओ ओते विभूतिकेँ अर्जित करैत अछि। आत्म-कल्याण आ विश्व-कल्याणक समन्वित साधनाक लेल परोपकार-रत रहब श्रेष्ठ अछि। चाहे व्यक्ति कोनो जाति आकि‍ धर्मक किएक ने होथि।



आश्रम नै स्वभाव बदली

एकटा युवक उद्धत स्वभावक छल। बात-बातमे खिसिया कऽ आगि-अंगोड़ा भऽ जाइत। जँ कि‍यो बुझबै-सुझबै छलै तँ ओ घर छोड़ि संयासी बनैक धमकी दै छलै। ओइ युवकसँ परिवारक सभ परेशान रहैत। एक दिन पिता खिसिया कऽ संयासी बनैले कहि देलक।
घरसँ किछुऐ दूर हटि संयासीक आश्रम छलै। जे ओकरा बुझल छलैक। घरसँ निकलि युवक सोझे संयासीक आश्रम पहुँच गेल। आश्रमक संचालक ओइ युवकक उदंडतासँ परिचित छल। युवककेँ आश्रममे पहुँचते, संचालक रास्तापर अनै दुआरे पुचकारि कऽ लगमे बैसाए पूछलक। ओ युवक संयासक दीक्षा लैक विचार व्यक्त केलक। दोसर दिन दीक्षा दैक आश्वासन संचालक दऽ देलखिन।
दीक्षाक विधानमे पहिल कर्म छल गोसाँइ उगैसँ पहिने समीपक धारमे नहा कऽ एनाइ। आलसी प्रवृत्ति आ जाड़सँ डरैबला युवककेँ ई आदेश खूब अखड़लै। मुदा करैत की? नियम पालन तँ करै पड़तै।
कपड़ाकेँ देवालक खूँटीपर टांगि युवक नहाइले गेल। जखन युवक नहाइले गेल कि संचालक कपड़ाकेँ चिरी-चोंट फाड़ि देलक। नहा कऽ थरथराइत युवक आएल तँ देखलक। तामसे आरो थरथराए लगल। मुदा करैत की?
दीक्षाक मुहूर्त्त संचालक सौंझुका बनौलक। ताधरि मात्र किछु फल-फलहरी खाएब छलैक। तँए ओइ युवकक लेल नोन मिलाओल करैला परोसि क थारीमे देल गेलै। एक तँ करैला ओहिना तीत दोसर छुछे। कंठसँ निच्चाँ युवककेँ उतड़बे ने करए।
भोरमे उठब, जाड़मे नहाएब, फाटल-चीटल कपड़ा पहिरब आ तइपर सँ तीत करैला खाएब। युवक खिन्न हुअए लगल। संचालक सभ बुझैत। युवककेँ बजा संचालक कहलक- संयासी बनब कोनो खेल नै छिऐक। ऐ दिशामे बढ़निहारकेँ डेग-डेगपर मनकेँ मारए पड़ैत छै। परिस्थितिसँ ताल-मेल बैसाए, संयम बरैत, अनुशासनक पालन करए पड़ैत छै। तखन संयासी बनैत अछि।
भरि दिन युवक अपन प्रस्तावपर सोचैत-बि‍चारैत रहल। तेसर पहर अबैत-अबैत ओ पुनः घुरि कऽ घर आबि गेल। संयम साधना आ मनोनिग्रहक नामे तँ संयास थिक। जे घरोपर रहि लोक पालन क सकैत अछि।
स्वभाव बदलने वातावरणो बदलि जाइत छै





पुरुषार्थ

संसारक कुशल-क्षेम बुझैले एक दिन भगवान नारदकेँ पृथ्वीपर पठौलखिन। पृथ्वीपर आबि‍ नारद एकटा दीन-हीन बूढ़ आदमी लग पहुँचला। ओ बेचारे -वृद्ध-आदमी- अन्न-वस्त्रक लेल कलहन्त छल। नारद जीकेँ देखते चीन्हि गेलखिन। कानैत-कलपैत कहए लगलनि- अहाँ घुरि क जब भगवान लग जाएब तखन कहबनि जे हमरा सन-सन लोकक लेल जीबैक जोगार करथि‍।
बूढ़क बात सुनि उदास मने नारद आगू बढ़ला। आगू बढ़िते एकटा धनीक आदमीसँ भेँट भेलनि। ओहो नारदकेँ चीन्हि गेलनि। ओ धनीक नारदकेँ कहलकनि- भगवान हमरा कोन जंजालमे फँसौने छथि जे दिन-राति परेशान-परेशान रहै छी। कम धन दितथि जे गुजरो चलैत आ चैनोसँ रहितौं। तँए भगवानकेँ कहबनि जे जंजाल कम कऽ दथि।
दुनूक बात सुनलापर नारद मने-मन सोचए लगला जे कि‍यो धने तबाह तँ कि‍यो  निर्धने तबाह। सोचैत-बिचारैत नारद आगू बढ़ला। थोड़े आगू बढ़लापर बबाजीक झुण्ड भेटलनि। नारदकेँ देख बाबाजी घेरि कऽ कहए लगलनि- स्वर्गमे तोहीं सभ मौज करबह। हमरो सभले राजसी ठाठ जुटाबह नै तँ चुट्टासँ मारि-मारि भुस्सा बना देबह।
नारद घूमि कऽ भगवान लग पहुँचला। यात्राक वृतान्त भगवान नारदसँ पूछल। तीनू घटनाक वृतान्त नारद सुना देलखिन। हँसैत नारायण कहए लगलखिन- देवर्षि! हम ककरो कर्मक अनुसार किछु दइले विवश छी। जे कर्महीन अछि ओकरा कत्तए सँ किछु देबैक। अहाँ फेर जाउ। ओइ वृद्ध गरीबकेँऽ कहबै जे भाय अपन गरीबी मेटबैले संघर्ष करु। अपन पुरुषार्थकेँ जगाउ। तखन सभ कुछ भेटत। दोसर ओइ धनीककेँ कहबै जे अहाँकेँ धन दोसराक उपकार करैले देलौं। से नै कऽ संग्रही बनि गेलौं तँए अहाँ धनक जंजालमे फँसि गेल छी। आ ओइ बाबाजी सभकेँ कहबै जे परमार्थीक भेष बना कोढ़ि आ स्वार्थी बनि गेल छी, तँए अहाँ सभकेँ नरक हएत।
नैष्ठिक सुधन्वा

महाभारतमे सुधन्वा आ अर्जुनक बीच लड़ाइक कथा आएल अछि। दुनू महाबलि, युद्ध विद्यामे निपुन। दुनूक बीच लड़ाइ छिड़ल। धीरे-धीरे लड़ाइ जोर पकड़ैत गेलै। लड़ाइ एहेन भयंकर रुप लऽ लेलक जे निर्णयक दौड़ आबिये ने रहल छलैक।
अंतिम बाजी ऐ विचारपर अड़ल जे फैसला तीन वाणमे हुअए। या तँ एतबेमे कि‍यो हारि जाए आकि‍ लड़ाइ बन्न क दुनू हारि कबूल क लिअए। जीवन-मरणक प्रश्न दुनूक सामने। कृष्ण सेहो रहथिन। कृष्ण अर्जुनकेँ मदति करैत रहथिन। हाथमे जल लऽ कृष्ण संकल्प केलनि जे गोवरधन उठौला आ ब्रजक रक्षा करैक पुण्य हम अर्जुनक वाणक संग जोडै़त छी।
सुधन्वा संकल्प केलक- पत्नी धर्म पालनक पुण्य अपन अस्त्रक संग जोड़ैत छी
दुनू अस्त्र आकाश मार्गसँ चलल। आकाशेमे दुनू टकराएल। अर्जुनक अस्त्र कटि गेल। सुधन्वाक अस्त्र आगू बढ़ल मुदा निशान चूकि गेलै।

दोसर अस्त्र पुनः उठल। कृष्ण अपन पुण्य अस्त्रक संग जोड़ैत कहलखिन- गोहि -ग्राह- सँ हाथीक जान बचाएब आ द्रौपदीक लाज बँचबैक पुण्य जोड़ैत छी।
अपन अस्त्रक संग जोड़ैत सुधन्वा बाजल- नीतिपूर्वक उपारजन आ दोषरहित चरित्रक पुण्य जोड़ै छी।
दुनू अस्त्र आकाशेमे टकराएल। सुधन्वाक वाण अर्जुनक वाणकेँ काटि धरासायी क देलक। तेसर अस्त्र बाकी रहल। ऐपर निर्णए आबि गेल। अर्जुनक बाणक संग जोड़ैत कृष्ण कहलखिन- बेर-बेर ऐ धरतीपर अवतार लऽ धरतीक भार उताड़ैक पुण्य जोड़ै छी। अपन वाणक संग जोड़ैत सुधन्वा कहलक- अगर स्वार्थक लेल धनकेँ एक्को क्षण सोचने होय आ सदति परमार्थमे लगाओल पुण्य जोड़ैत छी।
दुनू वाण आकाश मार्गसँ चलल। अर्जुनक वाण कटि क निच्चाँ गिरल। दुनू पक्षमे के अधिक समर्थ, ई जानकारी देवलोकमे पहुँचल। देवलोकसँ फूलक वर्षा सुधन्वापर हुअए लगल। लड़ाइ समाप्त भेल। भगवान कृष्ण सुधन्वाक पीठि ठोकि कहलखिन- नरश्रेष्ठ! अहाँ साबित कऽ देलौं जे नैष्ठिक गृहस्थ साधक कोनो तपस्वीसँ कम नै होइत छै



सद्गृहस्त

एकटा गृहस्त छलाह। संयमसँ जीवन-यापन करैत छलाह। परिवारकेँ सुसंस्कारी बनबैमे सदिखन लागल रहथि‍। नीतिपूर्वक आजीविकासँ जिनगी बितबथि‍। परिवारक काज आ खर्चसँ जे समए आ धन बँचैत छलनि ओ परमार्थमे लगबथि‍। ओ गृहस्त कहियो तपोभूमि नै गेलाह मुदा घरेमे तपोवन बना नेने छलाह। देवतो खुशी रहैत छलथिन।
एक दिन, गृहस्तक क्रियासँ खुशी भऽ इन्द्र आबि वर मांगैले कहलखिन। गृहस्त असमंजसमे पड़ि गेलाह जे की मंगबनि। जखन असंतोषे नै तखन अभाबे कथीक? स्वाभिमानी गमौलाक उपरान्ते कि‍यो ककरोसँ किछु पबैत अछि। ई बात सोचि गृहस्त मने-मन विचारए लगलाह जे जइसँ ऋृणो-भार नै हुअए आ देवतो अपमान नै बुझथि‍। बड़ी काल धरि सोचैत-विचारैत गृहस्त मंगलकनि- हमर छाया जतए पड़ै ओतए कल्याणक बरखा होय।
इन्द्र वरदान तँ दऽ देलखिन मुदा अचंभित भऽ गृहस्तसँ पूछलखिन- हाथ  रखलापर कल्याणो होइत आ आनंदो, प्रशंसो आ प्रत्युपकारक संभवनो होइत। मुदा छायासँ कल्याण भेलोपर लाभसँ बंचित रहए पड़ैत। तखन एहेन विचित्र वर किएक मंगलौं?”
मुस्कुराइत गृहस्त कहलखिन- देव! सोझाबलाक कल्याण भेने अपनामे अहंकार पनपैत अछि। जइसँ साधनामे बाधा उपस्थिति होइत। छाया ककरापर पड़ल, के कत्ते लाभान्वित भेल, ई पता नै लगब जीवनक लेल श्रेयस्कर थिक।
साधनाक यएह रुप पैघ होइत। यएह क्रम प्रगतिक रास्तापर चलैत-चलैत व्यक्ति महामानव बनैत अछि।



सद्भाव

अपन शिष्यक संग महात्मा इसा कतौ जाइत रहथि। साँझ पड़ि गेलै। राति बितबैक लेल एकठाम ठहरि गेलाह। संगमे पाँचेटा रोटी खाइले छलनि। रोटीक हिसाबे खेनिहार अधिक तँए सभकेँ पेट भरब कठिन। अपनामे शिष्य सभ यएह गप-सप्‍प करैत। इसो सुनलखिन। मुस्कुराइत इसा कहलखिन- सभ रोटीकेँ टुकड़ी-टुकड़ी तोड़ि एकठाम कऽ लिअ आ चारु भागसँ सभ बैस, खाउ। जइसँ सभकेँ एक रंग भोजन भेट जाएत
महात्मा इसाक विचार मानि सभ सएह केलक। संतोषक जन्म सबहक हृदेमे भऽ गेल। सभ कि‍यो खाएब शुरु केलक। रोटी सठैत-सठैत सबहक पेटो भरि गेल। तखन एकटा शिष्य बाजल- ई गुरुदेवक चमत्कार छियनि।
शिष्यक बात सुनि इसा कहलखिन- ई अहाँ लोकनिक सद्भावक सहकार थिक नै कि‍ चमत्कार। अगर अहाँ सभ अपनामे छीना-झपटी करितौं तँ ई संभव नै होइत। जइठाम सद्भावसँ परिवारक संबंध होइत तइठाम एहि‍ना प्रभुक अयाचित सहयोग भेटैत अछि।




आलस्य वनाम पिशाच

वन विहार करैक लेल वासुदेव, बलदेव आ सात्यकि घोड़ापर चढ़ि निकललाह। घनघोर जंगल रहने तीनू गोटे रास्तामे भटकि गेलाह, जाइत-जाइत एहेन सघन बनमे पहुँच गेलथि, जइठामसँ ने पाछू होएब बननि आ ने आगू बढ़ब। मुन्हारि साँझ भ गेलै। अन्हारमे चलब आरो कठिन भऽ गेलनि। अचताइत-पचताइत तीनू गोटे अटकि गेलाह। एकटा  झमटगर गाछ छलैक जहिक निच्चाँमे घोड़ा बान्हि तीनू गोटे राति बितबैक कार्यक्रम बनौलनि। खाइ-पीबैले किछु रहबे ने करनि तँए गाछेक निच्चाँमे दूबिपर सुतैक ओरियान केलनि। मुदा मनमे शंका होइत रहनि जे जँ तीनू गोटे सुति रहब आ घोड़ा कियो खोलि कऽ ल जाए? तीनू गोटे वि‍चारलनि जे एक-एक पहर जागि अपनो आ घोड़ोक ओगरवाही कऽ लेब आ सुतियो लेब।
पहरा करैक पहिल पारी सात्यकिक भेल। वासुदेव आ बलदेव सुति रहला। सात्यकि जगल रहल। थोड़े खानक बाद गाछपर सँ पिशाच उतड़ि सात्यकिक संग मल्लयुद्ध करैक लेल ललकारलक। ओहने उत्तर सात्यकियो देलक। दुनूक बीच घुस्सा-घुस्सी हुअए लगल। सौंसे पहर दुनूक बीच मल्लयुद्ध होइते रहल। कतेठाम सात्यकिक देहमे चोटो लगलैक। छालो ओदरलै। पहर बीत गेल।
दोसर पारी बलदेवक आएल । सात्यकि सुति रहल। बलदेव पहरा करए लगल। थोड़े कालक बाद पिशाच पुनः आबि चुनौती देलकनि। बलदेवो ओहने उत्तर देलखिन। पिशाचक आकार सेहो नमहर भ गेल छलै। दुनूक बीच मल्लयुद्ध शुरु भेल। बलदेवोकेँ पिशाच दुरगति क देलकनि। दोसरो पहर बीतल। तेसर पहरक पारी वासुदेवक छलनि। पुनः पिशाच आबि हुनको चुनौती देलकनि। मुदा वासुदेव हँसवो करथि‍ आ कहबो करथिन- बड़ मजगर अहाँ छी। निन्न आ आलससँ बँचैक लेल मित्र जकाँ मखौल करै छी।
पिशाचक बल घटए लगलै। आकारो छोट होइत गेलै। भिनसर भेल। नित्यकर्मसँ तीनू गोटे निवृत्ति भ चलैक तैयारी करए लगलथि। तखन सात्यकि आ बलदेव अपन रौतुका चरचा करैत, जतए-जतए चोट लगल रहनि सेहो देखोलखिन। हँसैत वासुदेव कहलखिन- ई पिशाच आरो किछु नै थिक। ई मात्र कुसंस्कार रुपी क्रोध छी। ओकरो ओहने प्रत्युत्तर भेटलै तँए बढ़ैत गेल। मुदा जखन ओकरा उपेक्षाक रुपमे देखलि‍ऐ तखन ओ छोट आ दुर्बल भ गेल।





स्वर्ग आ नर्क

विद्यालयक ओसारपर बैस गुरु आ शिष्य गप-सप्‍प करैत रहथि। एकटा शिष्य गुरुसँ स्वर्ग आ नर्कक संबंधमे पूछलकनि। शिष्यकेँ बुझबैत गुरु कहए लगलखिन- स्वर्ग आ नर्क अही धरतीपर अछि। जे कर्मक अनुसार अही जिनगीमे भेटैत छै
गुरुक उत्तरसँ शिष्य संतुष्ट नै भेल। शंका बनले रहलै। पुनः गुरुसँ अपन शंका व्यक्त केलक। गुरु बुझलनि जे बिना व्यवहारिक जिनगी देखौने शिष्य संतुष्ट नै हएत। ओ उठि शिष्य सभकेँ संग केने गाम दिस विदा भेला।
गाममे एकटा बहेलियाक घर छलै। ओइठाम पहुँचते, सभ देखलक जे पेट-पोसैक लेल बहेलिया जीव-हत्या कऽ रहल अछि। ततबे नै, जीव हत्यो केने ने देहपर वस्त्र छै आ ने भरि पेट भोजन। धीयो-पुतोक देहपर माछी भिनकै छै। एको क्षण ओतए रहैक इच्छा ककरो नै होय। चुपचाप गुरुजी शिष्यक संग ओतएसँ विदा भ गेलाह। दोसर ठाम पहुँचला। ओ बेश्याक घर छलै। युवावस्थामे ओ बेश्या खूब पाइयो कमेने छलि आ भोगो केने छलि। मुदा बुढ़ाढ़ीमे आबि अनेको रोगोसँ ग्रसित भ परिवारो-समाजोसँ तिरस्कृत भेल छलि‍। पेटक दुआरे भीख मंगैत छलि। सभ कि‍यो देख ओतएसँ विदा भ गेलाह।
तेसर परिवार गृहस्तक छल। जइठाम जा सभ देखलखिन जे गृहस्त जेहने संयमी छथि तेहने परिश्रमी। स्वभावसँ उदार आ सद्गुणी सेहो छथि। जइसँ परिवार सुख-समृद्धिसँ भरल-पूरल छलैक। गृहस्तक परिवार देख गुरुजी शिष्यक संग आगू बढ़ि चारिम परिवारमे पहुँचलाह। पोखरिक मोहारपर एकटा संत कुटी बनौने रहथि। शिक्षा आ प्रेरणा पबैक लेल दिन-राति समाजक लोक अबैत-जाइत रहैत छल। संतजी मस्त-मौला जकाँ जिनगी बितबैत रहथि‍। ने मनमे एक्को मिसिया क्रोध आ ने कोनो तरहक चिन्ता।
चारु परिवार देख शिष्यक संग गुरुजी विद्यालय दिस चललाह। रास्तामे शिष्यकेँ कहलखिन- पहिल जे दुनू परिवार देखलि‍ऐ ओ नरकक रुपमे छल आ बादक जे दुनू परिवार देखलि‍ऐ ओ स्वर्गक रुपमे।




यथार्थक बोध

शिखिध्वज ब्रह्मज्ञानी बनए चाहैत रहथि। ओ सुनने रहथि‍ जे तियाग आ बैराग्यसँ मनुष्य ब्रह्मज्ञानी बनैत अछि। तँए शिखिध्वज घर-परिवार छोड़ि जंगलमे कुटी बना रहए लगलथि। ओइ बनमे तपस्वी शतमन्यु सेहो रहै छलथिन। शतमन्युकेँ पता लगलनि जे एकटा नवांगतुक घर-परिवार छोड़ि कुटी बना रहैत अछि।
शतमन्यु आबि शिखिध्वजकेँ कहलखिन- गामक घर-गिरहस्ती उजाड़ि बनमे वएह सभ सरंजाम माने रहैक व्यवस्था जुटबैमे लागि गेलौं, तइसँ की लाभ? बैराग्य तँ अहंता आ लिप्सासँ हेबाक चाही। जँ भऽ सकए तँ घरेमे तपोवन बना सकै छी।
शतमन्युक विचार सुनि शिखिध्वजकेँ वास्तविकताक बोध भऽ गेलनि। ओ घुरि कऽ घर आबि परिवारक बीच रहि सेवा-साधनामे जुटि गेलाह। शिखिघ्वज एकांकी मुक्तिक जगह सामूहिक मुक्तिक मार्ग अपनौलनि। हुनके वंशमे बाल्यखिल्य ऋृषि भेलखिन, जे सौंसे जम्बूद्वीपकेँ देवभूमि बना देलखिन।




विद्वताक मद

एक दिन महाकवि माघ राजा भोजक संग वन-विहार कऽ घुमल अबैत रहथि। रास्तामे एकटा झोपड़ी देखलखिन। ओइ झोपड़ीमे एकटा वृद्धा टोकरी माने तकली कटैत रहथि। ओइ वृद्धासँ माघ पूछलखिन- ई रास्ता कत्तऽ जाइत अछि?” वृद्धा माघकेँ चीन्हि गेलीह। ओ हँसैत उत्तर देलखिन- वत्स! रास्ता तँ कतौ नै जाइत अछि। जाइत अछि ओइपर चलैबला राही। अहाँ सभ के छी?”
माघ- हम सभ यात्री छी।
मुस्कुराइत वृद्धा बाजलि- तात्! यात्री तँ सुरुज आ चान दुइये टा छथि। जे दिन-राति चलैत रहैत छथि। सच-सच कहू जे अहाँ के छी?”
थोड़े चिन्तित होइत माघ कहलखिन- माँ! हम क्षणभंगुर आदमी छी।
थोड़े गंभीर होइत पुनः वृद्धा कहलकनि- बेटा! यौवन आ धने टा क्षणभंगुर होइत। पुराण कहैत अछि जे ऐ दुनूक बिसवास नै करी।
माघक चिन्ता आरो बढ़लनि। रोषमे कहलखिन- हम राजा छी।
हुनका मनमे एलनि जे राजाक नाओं लेलासँ ओ सहमि जेतीह। मुदा ओ वृद्धा निर्भीक भऽ उत्तर देलकनि- नै भाय, अहाँ राजा केना भऽ सकै छी? शास्त्र तँ दुइये टा राजा- यम आ इन्द्र मानने अछि।



अनंत

हरि अनंत हरि कथा अनंता -तुलसी
एक दिन भगवान बुद्ध आनंदक संग एकटा सघन बनसँ गुजरैत रहथि। रास्तामे, दुनू गोटेक बीच ज्ञानक चर्च चलैत रहनि। आनंद पूछलखिन- देव, अपने तँ ज्ञानक भंडार छिऐ। अपने जे जनैत छी ओ हमरा बुझा देलौं?”
आनंदक बात सुनि उलटि कऽ बुद्धदेव पूछलखिन- ऐ जंगलक जमीनपर कते सुखल पत्ता पड़ल छै? हम जै गाछक निच्चाँमे ठाढ़ छी ओइ गाछमे कते सुखल पात लागल छै? आ अपना सबहक पाएरक निच्चाँ कते पड़ल छै। सभ मिला कत्ते हएत?”
बुद्धदेवक प्रश्नसँ आनंद निरुत्तर भऽ गेलाह। आनंद कऽ उत्तर नै दैत देख तथागत कहलखिन- ज्ञानक विस्तार ओते अछि जते ऐ वन प्रदेशमे सुखल पातक परिवार। अखन धरि हमहूँ एतबे बुझलौंहेँ, जे जते वृक्षक ऊपर सुखल पात अछि। मुदा पाएरक निच्चाँ जे अछि ओ हमहूँ ने बुझै छी।




हँसैत लहास

जिनगीकेँ जिनगी बुझि मनुष्यकेँ जीबाक चाहियेक। जँ से नै भेल तँ जिनगीक कोनो महत्व नै जाएत। जे कियो जिनगीकेँ कमेनाइ-खेनाइ धरि रखैत, ओकर संस्कार मरलोपर ओहिना रहि जाइत।
एक दिन दूटा शव एक्के बेर श्मशान पहुँचल। कठिआरीक लोक डाहैक ओरियान करए लगल। एकटा शव दोसरकेँ देख ठहाका मारि हँसए लगल। हँसैत शवकेँ देख दोसर शव पुछलक- बंधु, एहेन कोन बात भऽ गेल जे अहाँ हँसि रहल छी। जबकि दुनू गोटे एक्के स्थितिमे छी?”
हँसैत शव उत्तर देलक- बंधु, अहाँकेँ मन अछि आि‍क नै मुदा हमरा तँ मन अछि। दुनू गोटे संगे गामक स्कूलमे पढ़ने रही। पढ़लाक वाद अहाँ वणिक वृत्तिमे लगि दिन-राति पाइयेक हिसाबो आ भोग-बिलासमे लगि गेलौं। आब अहाँक ओहन स्थिति भऽ गेल अछि जे श्मशानो घाटपर पाइयेक हिसाब आ भोगे-बिलासक गर लगबै छी।
आओर अहाँ?” -दोसर पूछलक।
पहिल- जाधरि जीबैत छलौं मस्त सऽ रहलौं। ने कहियो बेसी पाइक जरुरत भेल आ ने तइले मनमे चिन्ता। जहिना चिन्ता मुक्त पहिने छलौं तहिना अखन छी। अच्छा आब अहूँ जाउ आ हमहूँ जाइ छी। अछिया तैयार भऽ गेल। नमस्कार।
कहि पहिल शव चिता दिस बढ़ि गेल आ दोसर कनगुरिया ओंगरीपर हिसाब जोड़ए लगल।




अनगढ़ चेतना

ज्ञान (विद्या) अनगढ़ चित्तकेँ सुगढ़ बनबैत। जइसँ सोचै आ चलैक दिशा निर्धारित होइत। ओना मनुष्यक अनगढ़ताक प्राप्ति जन्मजात होइत। जहिना शरीरक रक्षाक लेल भोजनक प्रयोजन होइत तहिना मनुष्यता प्राप्त करैक लेल विद्याक।
वशिष्ठ जी रामकेँ, भयंकर वनमे विचरण करैबला उनमत्तक, आँखिक देखल कथा सुनबैत कहलखिन- ओ -उनमत्त- देखैमे तँ स्वस्थ बुझि पड़ैत मुदा ओकर जे क्रिया-कलाप होइत ओ विल्कुल पागलक सदृश्‍य होइत। सदिखन रास्ताक व्यतिक्रम करैत। जहाँ-तहाँ बौआएलो घुमैत आ अन्ट-सन्ट रास्ता सेहो बनबैत। जइसँ अपनो देह-हाथक नोकसान करैत आ काँट-कुशमे ओझराइलो रहैत। मुदा तैयो अपनाकेँ बुद्धियार बुझि दोसराक नीको विचारकेँ मोजर ने दैत। जइसँ सदिखन भय माने डर आ चिन्तासँ मन त्रस्त रहैत। मुदा तैयो ने अधलाह रस्ता छोडै़त आ ने ककरो नीक करैत।
वशिष्ठक विचार सुनि राम पूछलखिन- भगवन! ओ उन्मादी कतए रहैत अछि, ओकर नाओं की थिकैक आ ओकर कोनो उपचार छै की नै?”
वशिष्ठ- वत्स, ओ कियो आन नै, मनुष्यक अनगढ़ चेतना छी। जे जालमे फँसल ओइ चिड़ैक सदृश्य अछि जे मरैक रास्ता देख फड़फड़ाइत तँ अछि मुदा निकलैक रस्ते ने देखैत।



सत्‍य विद्या

विद्याध्ययन साधना छी। जइसँ अन्तः क्षेत्र शुद्ध आ पुरुषार्थक जन्म होइत। जकरा संपादित केने बिना मानव जीवनक सभ उपलब्धि व्यर्थ।
जिनगी भरि भरद्वाज मुनि तपस्या करैत रहलाह। जखन मरैक बेर एलनि तँ देवदूत लेमए एलनि। देवदूतकेँ भारद्वाज मुनि कहलखिन- हमरा अही लोकमे फेर जनमए देल जाउ। स्वर्ग जा कऽ की करब?”
मुनिक बात सुनि, आश्चर्जित होइत देवदूत पूछलकनि- तपक लक्ष्य तँ स्वर्ग प्राप्त करब होइत अछि।
भारद्वाज कहलखिन- ज्ञान संचय आ पूर्ण सत्य तक पहुँचैक लेल। अखन हमर ज्ञान संपदा बहुत कम अछि। तँए ओते जन्म धरि तपस्या करए चाहै छी जाधरि सत्यकेँ लगसँ नै देख सकिऐ। स्वर्गसँ ज्ञान बहुत पैघ होइत अछि। स्वर्गसँ सुविधा भेटैत जबकि ज्ञानसँ आनंद।


समता

गुरुकुलमे जे विद्याध्ययन होइत ओ अमृत सदृष्य होइत। किएक तँ ओ साधनाक नै उच्च स्तरीय आदर्शक निर्माण करैत। ऐ हेतु गुरुकुलक छात्र उपभोगकेँ नै उपयोगक महत्व सत्-प्रयोजनक लेल अपन अगिला माने भावी दिशाधाराकेँ निर्धारित करैत अछि।
एक दिन सम्पन्न घरसँ आएल छात्र गुरुकुल संचालक आत्रेयसँ पूछल- भगवन! जे कियो अपना घरसँ नीक भोजन आ नीक वस्त्र मंगा सकै छथि ओ ओकर उपयोग किअए ने कऽ सकै छथि? ओहो किअए निर्धने परिवारक छात्र जकाँ जीवन-यापन करथि?”
गंभीर मुद्रामे आत्रेय कहलखिन- छात्र, श्रेष्ठ माने उत्तम मनुष्य, जै समाजमे रहैत छथि ओ ओइ समाजक अनुकूल जीवन-यापन करैत छथि। यएह समता अपनो आ दोसरोले सौजन्य उत्पन्न करैत अछि। सम्पन्नता प्रदर्शन इर्ष्‍या आ अहंकारकेँ उत्पन्न करैत अछि। जइसँ विग्रहक जन्म होइत अछि। जे सहयोगक नींवकेँ डोला दैत अछि। विषमतेसँ समाजमे अनेको विग्रह ठाढ़ होइत अछि। अपराध बढ़ैत अि‍छ, जइसँ अनाचारक जन्म सेहो होइत अछि। ऐठाम माने गुरुकुलमे समान जीवन जीबैक रास्ता सिखाओल जाइत अछि। धनिक अपन धन गरीबकेँ उठबैमे लगावह। नै कि निजी सुविधा-संवर्द्धनमे।
समताक दूरगामी सत्-परिणामकेँ छात्र बुझि अधिक उपयोगक विचारकेँ बदलि लिअए।



जते चोट तते सक्कत

कोशाम्बीक राजा शूरसेनसँ मंत्री भद्रक पुछलकनि- राजन, अपने श्रीमंत थिक। राकुमारक शिक्षाक लेल एक से एक विद्वान् रखि सकै छिऐ। तहन अपने ऐ पुष्प सन बच्चाकेँ वन्य प्रदेशमे बनल गुरुकुलमे किएक पठबैत छियनि? जइठाम सुवि‍धाक घोर अभाव छै। एहेन कष्टमय जीवनचार्यामे बच्चाकेँ पठाएब उचित नै?”
मंत्रीक विचार सुनि मुस्कुराइत शूरसेन उत्तर देलखिन- हे भद्रक, जहिना आगिमे तपौलासँ सोना चमकैत तहिना कष्टपूर्ण जीवनचर्यासँ मनुष्य बनैत अछि। कष्टे मनुष्यकेँ धैर्य, साहस आ अनुभव दैत अछि।
वातावरणक प्रभाव सभसँ बेसी नव उमेरक बच्चेपर अधिक पड़ैत अछि। ऋृषि सम्पर्क आ कष्टमय जिनगी राजमहलमे थोड़े भेट सकैत अछि। ऐठाम तँ हम ओकरा भोगिये-बिलासी बना सकै छी। जँ क्षणिक मोहमे पड़ब तँ ओकर भविष्ये चैपट्ट भऽ जेतै। तँए ओकर उज्वल भविष्यक लेल गुरुकुल पठाएब उचित अछि।


परिष्कार

गुरुकुलमे विद्याध्ययन सभ जाति, सभ वर्ण आ सभ समुदायक लेल हितकारी अछि। अगर जँ किनको अपन पैतृक व्यवसाय करैक होनि‍, तिनको पैघ उपलब्धिक लेल संस्कारक शिक्षा देब अत्यन्त अनि‍वार्य अछि।
एक गाममे क्षत्रिय आ वैश्य रहैत छल। ब्राह्मणक बालक तँ गुरुकुल पढ़ैले चलि गेलाह। दुनूक -क्षत्रियो आ वैश्योक- मनमे यएह जे हम योद्धा बनब तँ हम वणिक। अनेरे विद्याध्ययनमे समए किअए लगाएब। मुदा जखन कनी असथिर भऽ सोचलक तँ अपनापर शंका जरुर भेलै। मनमे खुट-खुटी एलै। मने-मन सोचलक जे से नै तँ कुल पुरोहितसँ किअए ने पुछि लिअनि। दुनू जा कऽ पुरोहितसँ पुछलक। कुल पुरोहित उत्तर देलखिन- ब्रह्मविद्याक तात्पर्य संयासी बनि भीख मांगब नै होइत। ओ जीवनक अंतिम भागमे अधिकारी व्यक्तिक द्वारा ग्रहण कएल जाइत छै। ब्रह्विमद्याक प्रयोजन गुण, कर्म, स्वभावक परिष्कार करब होइत छै। जे सभ स्तरक प्रगतिक लेल आवश्यक अछि। क्षत्रि‍य आ वैश्‍य जँ ओइ वि‍द्याकेँ ग्रहण करत तँ अपन-अपन जि‍नगीक कार्य क्षेत्रमे अधि‍क सफल आ सुन्‍दर ढंगसँ सम्‍पादन करत।
प्राचीनकालमे गुरुकुलमे, कठिनसँ कठिन कार्यक भार छात्रकेँ दैल जाइत छल। जइसँ भारीसँ भारी काज करैक अभ्यास बनैत छलैक।
कुल पुरोहितक परामर्श मानि ओहो दुनू -क्षत्रिय और बैश्य- अपन-अपन बालककेँ गुरुकुल भेजब शुरु केलक।
गुरुकुलसँ अध्ययन कऽ लौटलापर ओहो अपन काजकेँ, बिनु अध्ययन केलहाक तुल्‍नामे अधिक सफल भेल।




कथनी नै करनी

एकटा लोहार वाण -तीर- बनबैक विद्यामे निपुन छल। वाणो अद्भुत बनबैत छल। वाण बनबैक कलाकेँ सीखैले दोसर लोहार अाबि पुछलक- भाय! तोँ केना वाण बनबै छह, से हमरो कहह।
पहिल लोहार जबाब देलक- भाइ!, कहलेटा सँ सभ लूड़ि नै होइ छै। तँए हम वाण बनबै छी, तूँ धि‍यानसँ देखह।
सुनि दोसर लोहार लगमे बैस देखए लगल। तही काल एकटा बरिआती बगलक रस्तासँ गुजरए लगल। बरिआतियो खूब झमटगर। दर्जनो गाड़ी, रंग-बिरंगक बजो, सजाबटो सुन्दर। दोसर लोहार, वाण बनौनाइ देखब छोड़ि, बरिआती देखए लगल। जखन बरिआती आँखिक अढ़ भऽ गेल, तखन ओ लोहार बाजल- बड़ सुन्दर बरिआती छलै।
वाण बनबैबला लोहार कहलक- भाय, ने तखन देखैक फुरसत छल आ ने अखन तोहर बात सुनैक अछि। जाधरि कोनो काजकेँ तत्परतासँ नै कएल जाएत ताधरि काजक सफलताक कोन आश। तँए जे काज तत्परता आ एकाग्रतासँ कएल जाएत, वएह काज सफल हएत।
अफसोस करैत दोसर लोहार सोचए लगल जे एकाग्रताक अभ्यास करब सभसँ जरुरी अछि। जँ से नै करब तँ जीवनमे कहियो कोनो काजमे सफल नै हएब।
ज्ञानक सूत्र कतौसँ भेटए ओकर जरुर अंगीकार करक चाही।





शालीनता

विद्या व्यक्तिकेँ विनम्र बनबैत। ओकर अन्तरंगक स्तरकेँ ऊपर उठबैत। शिक्षा कतौ भेट सकैत अछि मुदा विद्याक सूत्र कतौ-कतौ भेटैत अछि। जै व्यक्तिकेँ विद्याक सूत्र भेट जाइत तँ ओइ व्यक्तिक काया-कल्प भऽ जाइत। छान्दोग्य उपनिषदक छठम प्रपाठमे उद्दालक आ श्वेतकेतुक संवाद अछि।
विद्यालयक परीक्षा पास कऽ श्वेतकेतु आएल। मुदा ने ओकर आत्म परिष्कृत भेल आ ने उदंडता कमल। जइसँ पिता -उद्दालक- केँ दुख भेलनि। खिसिया कऽ कहलखिन- अगर व्यक्तित्वमे शालीनताक समावेश नै भेल तँ अनेरे कियो किअए पढ़ैमे समए नष्ट करत?”
महसूस करैत श्वेतकेतु कहलकनि- अगर ई रहस्य जँ हमर शिक्षक जनितथि तँ जिनगी भरि शिक्षके किएक रहितथि वा तँ ऋृषि बनितथि वा द्रष्टा।
श्वेतकेतुक विचार सुनि पिता मने-मन सोचए लगलथि जे पुत्रक प्रति पितोक दायित्व होइत। एकटा गुलरीक फड़ आनि उद्दालक फोड़लनि। गुलरीक तर माने भीतरमे छोट-छोट अनेको बीआ छलैक। ओइ बीआकेँ देखबैत कहलखिन- ऐ नान्हि-नान्हिटा बीआक भीतर विशाल वृक्ष छिपल अछि। तहिना जकरा आत्म-ज्ञान भऽ जाइत छै ओ वृक्षे सदृश्य विकासो करैत आ फड़बो-फुलेबो करैत। तहूँ ओइ तत्वकेँ चिन्हह।



मजूरी

एक दिन गाड़ीक प्रतीक्षामे लियो टाल्सटाय स्टेशनपर ठाढ़ रहथि। एकटा अमीर परिवारक महिला, साधारण आदमी बुझि, हुनका कहलकनि- हमर पति सामनेबला होटलमे छथि। अहाँ जा क हुनका ई चिट्ठी द अबिअनु। ऐ काजक लेल दू आना पाइ देब।
चिट्ठी नेने टाल्सटाय होटल जा दऽ देलखिन। घुरि क आबि अपन कमेलहा दू आना पाइयो ल लेलनि। कनी कालक बाद एकटा अमीर आदमी आबि, प्रणाम कऽ टाल्सटायसँ गप-सप्‍प करए लगल। ओ आदमी हुनकासँ नम्रतापूर्वक गप्प करैत। गप-सप्‍पक क्रममे ओ आदमी टाल्सटायकेँ आदरसूचक शब्द काउंट सँ सम्बोधित करैत। बगलमे बैसल ओ महिला सभ कुछ देखैत-सुनैत। ओ महिला एक गोटेकेँ पूछलक- ई के छथि?”
ओ आदमी लियो टाल्सटायक नाओं कहलखिन। टाल्सटाइक नाओं सुनि ओ महिला, टाल्सटाय लग आबि क्षमा मांगि अपन दुनू आना पाइ घुमा दइले कहलकनि। हँसैत टाल्सटाय उत्तर देल- वहिन जी! ई हमर मजूरीक पाइ छी। एकरा हम किन्नहु नै घुमाएब।



जीवन यात्रा

गंगोत्रीसँ गंगाजल धरतीसँ बाहर निकलि चलि पड़ल। पहाड़सँ नीचाँ आरो निच्चाँ होइत मैदानमे पहुँचल। एक गोटे ऐ प्रक्रियाकेँ गंभीरतासँ देख रहल छल। आगू मुँहे जल बढ़ैत गेल, बढ़ैत गेल। जइमे अनेको जल-नद आबि-आबि मिलैत गेल। जइसँ एक विशाल नदी बनि गेल। ओ नदी जाइत-जाइत समुद्रमे मिल गेल। जे व्यक्ति देख रहल छल। ओइ व्यक्तिक मनमे भेल जे जलक ई मुरुखपना छी। किएक तँ जे हिमालएक उच्च शिखर छोड़ि, अनेक प्रकारक दुख उठा, नोनगर पानिमे मिलल। एकरा मुरुखपना नै कहबै तँ की कहबै? ओइ व्यक्तिक मनः स्थितिकेँ नदी बुझि गेल। कहलक- अहाँ हमर यात्राक मर्म नै बुझि सकलौं। कतबो ऊँच हिमालय किअए ने हुअए मुदा ओ अपूर्ण अछि। पूर्णता तँ गहराइमे होइत छै, जइठाम पहुँचलापर मनक सभ कामना समाप्त भऽ जाइत छै। हम हिमालए सन महान ऊँचाइक आत्मा छी जे पूर्णता पबैक लेल निरन्तर चलैत समुद्रक गहराइमे पहुँचलौं। तँए, हमरा बेहद खुशी अछि, अप्पन लक्ष्य धरि पहुँच गेलौं।


ज्योति‍

जनक आओर याज्ञवल्क्यक बीच ज्ञानक चरचा चलैत छल। जनक पुछलखिन- सुर्यास्त भेलापर -सुर्य डुबलापर- अन्हारक सघन बनमे रास्ता केना ढ़ूढ़ल जाए?”
जनकक प्रश्न सुनि, मुस्कुराइत याज्ञवल्क्य उत्तर देलखिन- तरेगन रास्ता बता सकैत।
याज्ञवल्क्यक उत्तरसँ असन्तुष्ठ होइत जनक पुछलखिन- अगर मेघौन होय? संगे दीपकक प्रकाश सेहो नै उपलब्धि होय, तखन?”
जनकक प्रश्नक गंभीरताकेँ बुझैत याज्ञवल्क्य कहलखिन- अपना सुझि-बुझिक सहारा लेबाक चाही।
विवेकक प्रकाश हर मनुष्यमे होइत। जे कहियो नै बुझाइत। हे राजन, ओइ सुतल विवेककेँ जगाएबे ऋृषि समुदायिक पवित्र कर्तव्य छी।


पवनक विवेक

चन्द्रमाकेँ दू सन्तान-एक बेटा आ एक बेटी। बेटाक नाओं पवन आ बेटीक आँधी। एक दिन आँधीक मनमे उपकल जे पिता, सांसरिक पिता जकाँ, हमरो दुनू भाए-बहि‍न‍मे भेद करैत छथि। आँधीक व्यथाकेँ चन्द्रमा बुझि गेलखिन। बेटीक आत्मनिरीक्षणक लेल चन्द्रमा एकटा अवसर देबाक विचार केलनि।
दुनू भाए-बहीनकेँ बजा कहलखिन- बाउ, अहाँ सभ, स्वर्गक इन्द्रक काननक परिजात नामक देववृक्षकेँ देखने छी?”
दुनू भाए-बहि‍न- हँ।
पिता- अहाँ दुनू ओतए जाउ आ सात खेप ओकर परिक्रमा कए कऽ आउ।
पिताक आज्ञा मानि दुनू गोटे चलि देलक। आँधी हू-हू-आ कऽ दौड़ल। जइसँ गरदा, खढ़-पात आ कूड़ा-कड़कट उड़बैत लगले पहुँच, सात बेर परिक्रमा क चोट्टे घुरि क आबि गेल। मने-मन आँधी सोचैत जे हम्मर काज देख पिता प्रशंसा करताह।
पवन पाछु घुरि कऽ आएल। ओकरा संग सौंधी-सुगंध सेहो आएल। जइसँ सौंसे घर गमकि उठल।
मुस्कुराइत चन्द्रमा बेटीकेँ कहलखिन- बेटी, अहाँ नीक जकाँ बुझि गेल हेबै जे जे अधिक तेज गतिसँ चलत ओ खाली झोरा लऽ कऽ आओत मुदा जे स्वाभाविक गतिसँ चलत ओ मनकेँ मुग्ध करैबला सुगंध सेहो लाओत। जइसँ सौंसे वातावरण सुगंधित होएत।
वानप्रस्थक यात्रा पवन देवक सदृश्य उद्देश्यपूर्ण होइत।



आत्मबल-२

जै समैमे डाॅक्टर राधाकृष्णन कओलेजमे पढ़ति रहथि, घटना ओइ समैक छी। काॅलेजमे पादरी शिक्षक अधिक।
एक दिन एकटा प्रोफेसर क्लासेमे हिन्दू धर्मक निन्दा खुलायाम केलनि। बालक राधाकृष्णन सेहो क्लासमे रहथि। प्रोफेसरक बातसँ हुनका एते क्रोध भेलनि जे सम्हारि नै सकलाह। उठि कऽ ठाढ़ होइत पुछलखिन- महाशय, की इसाई धर्म आन धर्मक निन्दा केनाइ सिखबैत अछि?
राधाकृष्णन प्रश्न सुनि ओ तमसा कऽ बाजल- आैर की हिन्दुधर्म दोसराक प्रशंसा करैत अछि।
राधाकृष्णन जबाब देलखिन- हँ
हम्मर धर्म कोनो धर्मक अधलाह नै करैत अछि। गीतामे कृष्ण कहने छथिन- कोनो देवताकेँ उपासना केलासँ हमरे उपासना होइत अछि। आब अहीं कहू जे हम्मर धर्म ककर निन्दा करैत अछि।
प्रोफेसर निरुत्तर भऽ गेल।



खुदीराम बोस

स्वतंत्रता संग्रामक प्रखर सिपाही खुदीराम बोसकेँ मुजफ्फरपुर जेलमे फाँसी भेलनि। जै समए फाँसी भेल रहनि ओइ समए खुदीरामक वएस मात्र अट्ठारह बर्ख आठ मासक छलनि। ओना हुनकर जन्म बंगालमे भेल छलनि मुदा ओ अपनाकेँ भारत माताक बेटा बुझैत छलाह। हुनकापर अंग्रेज किंग फोर्डक हत्याक आरोप लगाओल गेल छलनि। ओ जेहने कर्मठ, तेहने हँसमुख छलाह। फाँसीसँ किछु समए पहिने जेलर उदार पूर्वक आम आनि खाइले दैत कहलकनि- चुपचाप खा लिअ। कियो बुझए नै।
खुदीराम आम रखि लेलनि। साँझू पहर जखन दोहरा क जेलर आबि पुछलकनि तँ ओ जबाब देलखिन- जखन आइ फाँसिये होइबला अछि, तँ डरसँ किछु खाइ-पीबैक मन नै होइए। अहाँक आम ओहिना कोनमे राखल अछि।
आमक गुद्दा खा कऽ बोस खोंइचाक खप्‍पामे मुँहसँ हवा भरि ओहिना रखि देने। कोनमे पहुँच जखन जेलर आम उठौलक तँ पचैक गेलै। जइपर जेलर भभा कऽ हँसल। जेलरक हँसी देख खुदीरामो खूब जोरसँ ठहाका मारि हँसल। मृत्युक एक्को पाइ डर  हुनका नै छलनि।
खुदीरामक फाँसीक चरचा, लोकमान्य तिलक अपन पत्रिका केशरीमे देशक दुर्भाग्य शीर्षक नाओंसँ लेख लिखलनि। जइपर हुनका, तिलककेँ छह मासक कारावास भेलनि।



शिष्यकेँ शिक्षेटा नै परीक्षो

गुरुकुलमे ई अनिवार्य नै जे नीक -आलीशान- मकानक बन्द कोठरियेटा मे शिक्षा देल जाए। अनिवार्य ई जे छात्रक मनः स्थितिक अनुरुप प्रकृतिक पाठशालामे व्यवहारिक शिक्षा भेटै। जइसँ व्यक्तित्वमे प्रखरताक समाबेश संवर्धन भऽ सकए।
महर्षि जरत्कारुक गुरुकुलमे छात्र विद्रुध प्रवेश पौलक। किछुए  दिनक उपरान्त विद्रुधक प्रतिभासँ गुरु जरत्कारु प्रभावित होइत कहलखिन- बाउ, पौरुषक पुरुषत्वक परीक्षामे उतीर्ण भेलेपर कियो बरिष्ठ -महान- बनि सकैत अछि। अहाँ पराक्रमक संग-संग पोथियो पढ़ू।
महर्षिक परामर्शसँ सहमत होइत विद्रुध कहलकनि- अपनेक जे आदेश होय, तैयार छी।
विद्रुध कऽ एक सए गाए प्रभुदारण्यमे चरबैक आदेश दैत कहलखिन- जखन हजार गाए भऽ जाए तखन घुरि कऽ आएब।
पोथी सभ सेहो लऽ लेलक।
सए गाए कऽ हजार गाए बनबैमे विद्रुध कऽ बारह बर्ख लगल। बच्चो सभ पुष्ट। किएक तँ कोनो बच्चाकेँ दूध पीबैमे कोताही नै करैत।
ऐ बारह बर्खक बीच विद्रुध अनेको साधक, विद्वानसँ सम्पर्क बना सीखबो केलक आ रास्ताक बाधासँ सेहो निपटल। जइसँ ओकर प्रतिभामे आरो चारि चान लगि गेलै घुरि कऽ एलापर चेहरासँ ब्रहमतेज टपकैत। किएक तँ अपन बुइधिक प्रयोगसँ पढ़बो केलक आ बुझबो आ सीखबो केलक।
विद्रुधक मेहनक आ साहस देख जरत्कारु हृदेसँ आनन्दित होइत अपन आश्रमक भार दऽ नमहर काज करए अपने चलि गेलाह।


लौह पुरुष

ई घटना १९४६क छी। बम्बई बंदरगाहमे नौ-सैनिक विद्रोह केलक। अंग्रेज शासक ओकरा -नौ-सैनिक- गोलिसँ भुजि देबाक धमकी देलक। जकरा जबाबमे भारतक नौ-सेना माटिमे मिला देब कहलक। स्थिति भयानक बनि गेल। पाछु हटैले कियो तैयार नै। ओइ समए सरदार वल्लभ भाय पटेलक हाथमे बम्बईक नेतृत्व छलनि। जनिकापर सभ टकटकी लगौने। मुदा सरदार पटेलक मनमे एक्को मिसिया घबड़ाहट नै। बम्बईक गवर्नर बजा कऽ मारे अन्ट-सन्ट कहलकनि। गवर्नरक बात सुनि, शेरक बोली सदृश्य गरजि कऽ सरदार पटेल उत्तर देलकनि- ओ -गवर्नर- अपना सरकारसँ पुइछ लिअ जे अंग्रेज भारतसँ मित्र जकाँ विदा हएत आकि लाश बनि।
अंगेरज गवर्नर सरदार पटेलक जबाबसँ ठर्रा गेल। आखिर कार ओकरा समझौता करए पड़ल। वएह सरदार पटेल स्वतंत्र भारतक पहिल गृहमंत्री बनलाह।
कोनो आदमीमे साहस ओहिना नै बनैत। पुरुषार्थक बलपर विकसित होइत।


जंग लागल

एकबेर भगवान वुद्धक समक्ष श्रेष्ठि पुत्र सुमंत आ श्रमिक पुत्र तरुण संगे प्रब्रज्या लेलक। दुनू गोटे भावना पूर्वक संघारामक अनुशासनक पालन करए लगल। किछु मासक प्रगतिक जानकारी दैत प्रधान भिक्षु (संघाराम) कहलकनि- तरुणक अपेक्षा सुमंत अघिक स्वस्थ आ पढ़ल-लिखल अछि। भावनो प्रबल छै। मुदा सौंपल गेल काज आ साधनोक उपलब्धि तरुणमे सुमंतक अपेक्षा अधिक अछि। जेकर कारण बुझिमे नै अबैत अछि।
संधारामक विचार सुनि तथागत (बुद्ध) कहलखिन- अखन सुमंत जंग लागल लोहाक औजार सदृश्य अछि। जंग छुटैमे किछु समए लागत।
तथागतक बात संघाराम नीक-नाहाँति नै बुझि सकल। तँए प्रश्न वाचक नजरिसँ नजरि मिला बकर-बकर मुँह दिस तकैत रहलनि।
स्पष्ट करैत बुद्ध कहलखिन- ओकर (सुमंतक नमहर) अधिक समए आलस्य आ प्रमादमे बीतल अछि। जइसँ व्यक्तित्व जंग लागल औजार सदृश्य भऽ गेल अछि। जबकि तरुण एहेन उपकरण अछि जकरामे जंग छूबो ने केलक अछि। तँए, लगले फल पाबि रहल अछि। सुमंतक जंग छोड़बैमे पर्याप्त समए आ साधना लागत। तखन जा कऽ अभीष्ट फल निकलत।





जीवकक परीक्षा

आदर्श शिक्षक सिर्फ अध्ययने नै छात्रकेँ ओइ विद्यामे एहेन पारंगत बना दैत, जइसँ ओ स्वर्ण (सोन) बनि चमकि उठैत। तक्षशिला विश्वविद्यालयमे सात वर्ख आयुर्वेदक शिक्षा पाबि आचार्य वृहस्पति जीवकक परीक्षा लऽ कऽ विदा करैक समए निकाललनि। समए निकालि गुरु (वृहस्पति) जीवककेँ हाथमे खुरपी दैत कहलखिन- एक योजनक बीच एकटा एहेन पौघा उपाड़ि कऽ नेने आउ जेकर औषधि नै बनैत होय।
खुरपी लऽ जीवक विदा भेल। मास दिन घुमैत रहल मुदा एक्कोटा एहेन गाछ नै भेटलै जेकर औषधि नै बनैत होय। मास दिनक उपरान्त जीवक घुमि कऽ आबि कहलकनि- गुरुदेव! हमरा एक्कोटा एहेन गाछ नै भेटल जेकर औषधि नै बनैत होय।
जीवककेँ गरदनि लगबैत वृहस्पति कहलखिन- वत्स! अहाँ सफल भेलौं। आब अहाँ जाउ, आयुर्वेदक प्रचार करु।




तप

श्रमे ओ देवता छी जे सभ सिद्धिक स्वामी छी। आयुष्यकेँ पूर्वाद्धेमे एकर सम्पादनक लेल विधाता मनुष्यकेँ शक्ति सम्पन्न बना दैत छथिन। जखने एकर -श्रमक- उपेक्षा होइत तखने समाज अव्यवस्थित हुअए लगैत।
राजा विड़ाल मुनि बैवस्वतकेँ प्रणाम कऽ चुपचाप बैस गेलाह। सूक्ष्मदर्शी गुरु -बैवस्वत- बुझि गेलखिन जे कोनो गंभीर चिन्तामे विड़ाल पड़ल छथि।
पुछलखिन- विड़ाल, आइ अहाँ अशान्त जकाँ बुझि पड़ै छी। कथीक चिन्ता अछि से हमरो कहू?”
अपन अन्तर्वेदनाकेँ प्रगट करैत विड़ाल कहलखिन- देव, नै जानि किएक प्रजाजन अशान्त छथि। सभ कियो धर्म आ शान्तिसँ विमुख भेल जा रहल छथि। जइसँ धन-धान्यक अभाव आ प्रेम-भाव टुटि रहल अछि। अपराध वृत्ति बढ़ि रहल अछि।
विड़ालक विचार धि‍यानसँ सुनि बैवस्वत कहलखिन- जै देशमे लोक मेहनतसँ देह चोराओत, श्रमकेँ सम्मान जनक स्थान नै देत, ओइठाम केना समृद्धि भऽ सकैत अछि।
श्रम ओहन तप छी जइसँ समाजक सभ दोष मेटा जाइत अछि। तँए, श्रमकेँ साधना बुझि सभकेँ ऐमे लगि जेबाक चाही। जै परिवार समाज आ देशमे श्रमकेँ जते महत्व देल जाएत, ओ ओते उन्नति करत।

उल्टा अर्थ

शिक्षा केहेन देल जाए, की देल जाए-ई गंभीर प्रश्न छी।

एक गोटेकेँ दू संतान। एक बेटा दोसर बेटी। सम्पन्न परिवार। दुनू संतानकेँ बच्चेसँ सुख-सुविधा भेटैत रहल। जइसँ वयस्क होइत-होइत अनेको व्यसनक आदति लगि गेलै
अपन दुनू बच्चाकेँ बिगड़ल देख पिताक मनमे चिन्ता भेलै। भीतरे-भीतर सोगाए लगल। जइसँ रोगी जकाँ खिन्न हुअए लगल। एक दिन एकटा मित्र पुछलक- मित्र, अहाँ दिनानुदिन खिन्न किएक भेल जा रहल छी?”
मित्रक बात सुनि ओ उत्तर देलक- मित्र, सभ कुछ अछैतो दुनू बच्चा बिगड़ि गेल अछि। वएह चिन्ता मनकेँ पकड़ने अछि।
दुनू गोटे विचारि तँइ केलक जे दुनू बच्चाकेँ एक मास महाभारतक कथा, जइमे धर्म, आ सदाचारक सभ तत्व मौजूद अछि, सुनाओल जाए। सएह केलक।
मास दिन महाभारतक कथा सुनलाक बाद दुनू आरो बिगड़ि गेल। बेटा अपना दोस्तकेँ कहलक- भगवान श्री कृष्णकेँ सोलह हजार रानी छलनि तँ दस-बीससँ संबंध राखब केना अधलाह हएत?”
तहिना बेटियो अपन बहिनाकेँ कहलक- कुन्तीकेँ कुमारियेमे बेटा भेलै जे श्रेष्ठ नारीक श्रेणीमे छथि तखन हम कोन अधला काज करै छी।
आब प्रश्न उठैत जे एना किएक भेल?
अखन धरि जे कथा श्रवणक व्यवहार अछि ओ अपूर्ण अछि। दृष्टिकोण बदलैक लेल एहेन प्रभावी वातावरण बनबए पड़त जइमे कथा चर्च आ क्रियामे समुचित समन्वय हेबाक चाहिये। तखने दृष्टिकोण बदलत आ समुचित उपयोगी बनत।


जाति नै पानि

बुद्धदेवक प्रमुख शिष्य आनंद श्रावस्तीमे भिक्षाटन करैत रहथि। गरमी मास तँए रौदो तीख। हुनका पि‍यास लगलनि। लगमे पानिक कोनो जोगार नै देख किछु आगू बढ़लाह। एकटा युवतीकेँ इनारपर पानि भरैत देखलखिन। पानि देख मनमे सवुर भेलनि। इनार लग पहुँच ओइ युवतीकेँ आनंद कहलखिन- दाय, बड़ जोर प्यास लगल अछि, कनी पानि पियाउ?”
पानि नै दऽ ओ युवती कहलकनि- साधुबाबा, हम चंडालक बेटी छी, हम्मर छुबल पानि केना पीब‍?”
कनी काल गुम्म रहि आनंद कहलखिन- बुच्ची, हम तोरा तँ जाति नै पुछलिअ। पानि मंगलियह।
पियाससँ तरसैत आनंदकेँ देख ओइ युवतीकेँ दया लगल। मुदा मनमे विचित्र द्वन्द्व उपैक गेलै। अंतमे ओ पानि भरि आनंदकेँ देलकनि पानि पीब आनंद तृप्त भऽ गेलाह।
महात्मा नारायण स्वामी कहने छथि जे जाति-पाति आ अस्पृश्यताक बंधन हिन्दू जातिक लेल कलंक छी। यएह बंधन सभ जातिकेँ छिन्न-भिन्न केने अछि। एकरे चलैत सभ जातिक बीच घृणा आ द्वेष पसरल अछि।


ऊँच-नीच

एक राति, जखन पुजेगरी मंदिरक केबाड़ बन्न कऽ चलि गेल, स्तम्भक माने खूटाक पाथर देवमूर्ति बनल पाथरसँ पुछलक- की भाय, हम सभ तँ एक्के पहाड़क पाथर छी। फेर अहाँक पूजा होइए आ हम जे मकानक -मंदिरक- भार उठैने छी से हम्मर कोनो मोजरे नै?”
देवताक आसनपर बैसल पाथर मने मन विचार करए लगल। मुदा प्रश्नक जबाब नै बुझि कहलक- भाय, हम ऐ रहस्यकेँ नै जनैत छी। पुजेगरी विद्वान छथि, हुनकासँ बुझि काल्हि कहबह।
प्रातःकाल पुजेगरी आबि पूजा करए लगल। फूल-पात चढ़ा, दुनू हाथ जोड़ि पुजेगरी धि‍यान केलनि कि देव पाथर पुछलखिन- मंदिरमे जते पाथर अछि सभ तँ गुण-जातिसँ एक्के अछि। फेर हम किएक पूजनीए छी?”
पुजेगरी- हे देव! अपने बड़ पैघ बात पुछलौं। एक गुण, घर्म आ जातिक सभ वस्तुक उपयोग एक्के पदक लेल होय, ई सर्वथा असंभव अछि। प्रकृति ककरो एक रंग नै रहए दैत अछि। जे मनुष्योमे अछि। बहुतो मनुष्यमे एक तरहक प्रतिभा आ गुण-घर्म होइत। मुदा ओहूमे अपन श्रेष्ठ कर्मक कारणे कियो सभसँ आगू बढ़ि जाइत आ कियो पाछू पड़ि जाइत। तँए एकर अर्थ ई नै जे ओ -पाछु पड़ल- अपनाकेँ हेय बुझए। किएक तँ परिवर्तन सृष्टिक नियम छिऐ। आइ जे ऊपर अछि ओ काल्हियो ऊपरे रहत, एकर कोनो गारंटी नै छै। तहिना जे निच्चाँ अछि ओ सभ दिन निच्चेँ रहत, सेहो बात नै।


पागलखाना

एकटा छोट-छीन देश आनन्‍द लोक। देशमे लोकक संख्‍या जमीने अनुकूल। उर्वर माटि‍ मीठ पानि‍, मधुर हवाक मि‍लान तँए मनुक्‍खसँ लऽ कऽ गाछ-वि‍रि‍छ, फल-फूल, जीव-जन्‍तु धरि‍ आनंदसँ रहैत। दुनि‍याँक आन देशमे तँ ढेरो सम्‍प्रदाय अछि‍ मुदा ओइ देशमे दुइयेटा। दू सम्‍प्रदाय रहनौं कहि‍यो अपनामे झगड़ा-झंझट नै होइत। एक्के इनारक पानि‍ पीबैत, एक्के पोखरि‍मे नहाइत। एक्के स्‍कूलमे पढ़ैत आ मौका-कुमौका एक्के जहलोमे रहैत। ततबे नै बाढ़ि‍, रौदी, बि‍हाड़ि‍, शीतलहरी सेहो संगे झेलैत।
एक दि‍न दुनू सम्‍प्रदाइक बीच, एकटा गाममे झगड़ा ऐ लेल भऽ गेलै जे दुनू अपन-अपन सम्‍प्रदायकेँ दोसरसँ पैघ कहए लगलै। एक ठामसँ झगड़ा शुरू भेल आ सगरे देश पसरि‍ गेल। झगड़ोक रूप बदलए लगलै। गारि‍-गरोबलि‍सँ पटका-पटकी होइत खून-खच्‍चर हुअए लगलै। अंतमे दुनू सम्‍प्रदाय दू देश बना लेलक।
दुनू देशक सि‍पाही सीमापर बाँसक खूटा गारि‍-गारि‍ सीमान काइम करए लगल। अधासँ जखन आगू बढ़ल तँ सीमापर एकटा पागलखाना पड़ैत रहए।
दुनू देशक सि‍पाही पगलखन्नाक बगलमे बैस बि‍चारए लगल जे ऐठाम कोना सीमा काइम करब? दुनूमे सँ कि‍यो अपना दि‍स पगलखन्ना लेमए नै चाहैत। दुनूक बीच वि‍वाद शुरू भेल। दुनू अपन काज रोकि‍ अपना-अपना सरकारकेँ खबरि‍ देलक। सरकार पागलक संख्‍या पता लगबए चाहलक जे दुनू सम्‍प्रदायक कते-कते पागल अछि। तै लेल आदेश देलक। दुनू देशक सि‍पाही मि‍ल कऽ पागलखाना जा पूछलक- अपन-अपन सम्‍प्रदाइक नाओं कहू?”
सभ पागल हल्‍ला करैत कहए लगलै- अरे बेकूफ, भाग एतऽ सँ हम सभ एक छी आ एक रहब।