Wednesday, August 8, 2012

गजल

बाल गजल-८

आमक गाछपर झूला लगाएब ना
अपनों झूलब सभके झुलाएब ना

केरा डम्फोरि आ लत्ती मोटका आनब
सउन बाँऽटि कऽ जउड़ बनाएब ना

कखनहुं ऊंचगर निच्चा कखनहुं
झूले संग हमहुँ आएब-जाएब ना

खसतय गोपी धऽपर -धऽपर- धप
झूला के बहन्ने ठाईढ डोलाएब ना

कियो बीछय
गोपी हेतै नहि झगड़ा
हम सभ संगी मिल-जुलि खाएब ना

कसि-कसि कऽ आर झूलाबय हमरा
ऊँचगर जा हम चान के पाएब ना

ठाढ़ि ओदर
तय झूला जों टूटतय
"नवल" चट सभ दौड़ पड़ाएब ना

***आखर-१४
सरल वार्णिक बहर
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-१४.०७.२०१२)

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