Tuesday, October 16, 2012

माटिक बासन


केदार प्रसाद गामक एकटा कुशल कुम्हार । माटिक बासन जेना  घैलढाकनमटकुरी बना अपन जीवन यापन करै छलाह । माटिक बासन बनेनाइ मात्र हुनक आजीवकाक साधन नहि भहुनका लेल  एकटा सुन्नर कारीगरी छल । अपन काज करैकाल ओ ऐना तनमय भजाइ छलाह जेना एकटा भक्त अपन अराध्य देवताक ध्यानमे अपन तन-मनक सुधि बिसैर जाइत छैक । ओ अपन स्वं साधनासँ धिरे-धिरे छठि मैयाक सुन्नर व आकर्षित हाथी सेहो बनबए लगला । हुनकर बनाएल माटिक बासन आ छठिक हाथीक बड्ड प्रशंसा होइत छल ।
धिरे-धिरे गामक परिवेश बदलए लागल । माटिक बासनक जगह स्टील आ आन-आन धातु लेबए लागल । केदार प्रसादजीक आमदनी कम होबए लगलन्हि मुदा ओ अपन काजक प्रति  निष्ठा आ समर्पणकेँ दुवारे कुम्हारक काज नहि छोरि पएला ।
हुनक सुन्नर सुशिल बेटा बिभू नेन्नेसँ अपन पुस्तैनी काजमे माँजल । ई कहैमे कोनो संकोच नहि जे ओ अपन बाबूओ सँ बीसे । केदार प्रसादजी एहि गपकेँ नीकसँ  बुझैत अपन होनहार पुतकेँ गुणसँ मोने-मोन खुस छलाह आ चिंतीत सेहो । चिंतीत एहि दुवारे की कुम्हारक काजक कि बर्तमान छैक आ कि भबिष्य हेतै से हुनका बुझल मुदा बिभूक हस्तकौशल देखि ओकरा एहि काजसँ बाहर केनाइ उचित नहि बुझलाह । बिभू सेहो इस्कूल पढ़ाइक संगे-संग अपन बाबूक सभटा गुणकेँ  अंगीकार केने गेल ।  अपन  बाबूक छठिक हाथीसँ आगू बढ़ि ओ मूर्तिकलामे अपन हस्तकौशलक उपयोग करै लागल । ओकर बनाएल मूर्तिक चर्चा गाम  भरिमे होबए लगलै । जतए ओकर बाबूक बनाएल छठिक हाथीकेँ एगारह टाका भेटन्हि ओतए ओकर बनाएल छोट-छोट कनियाँ- पुतड़ा सभकेँ सय-सबासय टाका भेटअ लगलै । बिभू अपन बाबूक देख-रेखमे मूर्तिकलामे दिनो- दिन आगू बढ़ए लागल । आब ओकर बनाएल माए सरोस्वतीकृष्णास्टमीविश्वकर्मा पूजाक मूर्तिक माँग चारूकातक बीस गाम तक होबए लगलै मुदा बिभूक बाबू तैयो ओकर बनाएल मूर्तिमे कोनो ने कोनो दोख निकालि आ ओकरा अओर बेसी नीक मूर्ति बनाबैक प्रेरणा देथिन । बिभू सेहो हुनक गपकेँ मन्त्र मानि आगू आरो नीक मूर्ति बनाबएमे लागि जे ।    
बिभू दसम वर्गकेँ बाद इस्कूली पढ़ाइ छोड़ि पूर्णतः मूर्तिकलामे अपनाकेँ समर्पित कए लेलक । अठारहम बरखक पूर्ण बुझनूक भगेल आब ओकरा नीक बेजएकेँ ज्ञान भगेलै । ओकर मूर्तिक प्रशंषा आब गाम नहिजिला नहि राज स्तरपर होबै लगलै । आब  तँ ओकर बनाएल एक-एकटा मूर्तिकेँ दू-दू तिन-तिन हजार टाका भेटए लगलै । मुदा ओकर बाबू एखनो ओकर मूर्तिमे कोनो ने कोनो दोख निकाइल ओकरा आर सुन्नर मूर्ति बनाबैक निर्देश देथिन । पहिले बिभू हुनक गपकेँ मन्त्र मानि कमी दूर करैक चेष्टामे लागि  जाइ छल मुदा आब हुनक गपसँ ओकर मोन कतौ-ने कतौ आहत होइत छलै । मुदा बिरोध करैक सहाश नहि तेँ मोनकेँ मारि हुनक बताएल निर्देशमे लागि जाइ छल  
जेना-तेना काज आगू बढ़ैत रहल आ ओकर बनाएल गेल मूर्तिक चर्चा आब राजक सीमासँ निकैल बाहर दस्तक देबए लगलै । राजसरकारकेँ गृहमंत्रालयसँ बिभूकेँ पत्र एलै जाहिमे ओकर बनाएल गेल मुर्तिकेँ अखिल भारतीय मूर्ति प्रदर्शनीमे राखक व्यवस्था कएल गेल रहैक । सभटा खर्चा राजसरकारक आ विजेताकेँ देशक सर्वश्रेष्ट मूर्तिकारक सम्मानकेँ संगे-संग एक लाख टाकाक नगद इनाम सेहो ।   ई पत्र पाबि बिभूकेँ बड्ड प्रसंता भेलै । सभसँ पहिले दौरल-दौरल अपन बाबूकेँ एहि गपक सुचना देलक । केदार प्रसादजी सेहो बड्ड प्रसन्य भेलाह हुनकर जीवन भरिकेँ मेहनत रंग लाइब रहल छल । बिभू राति-राति भरि जागि-जागि कए अपन मार्गदर्शक गुरु बाबू संगे लागि गेल ।
एकसँ एक नीक-नीक मूर्ति बनेलक मुदा केदार प्रसादजी सभ मूर्तिमे कोनो ने कोनो कमी निकाइले देथिन । केदार प्रसादजीक बताएल कमीकेँ दूर करैकेँ बदला  बिभूक मोनमे आब नकारात्मक प्रवृति घर करए लगले । हुनक बताएल कमीपर आब ओ सबाल-जबाब करए लागल । काइल्ह प्रतियोगता लेल मूर्ति भेजैक अंतिम दिन आ आइ बिभू अपन बनाएल मूर्ति सभमे सँ एकटा सभसँ नीक मूर्तिकेँ अंतिम रूप देबएमे लागि गेल । केदार प्रसादजी बारीकीसँ ओहि मूर्तिकेँ निरीक्षण करैतबिभूक दिमागमे हलचल चलि रहल छल - "हाँ आब तँ ई कोनो ने कोनो गल्ती बतेबे करता ।"
ततबामे केदार प्रसादजी अपन चुप्पीकेँ तोरैत बजलाह -"सुन्नर ! आइ तक बनाएल गेल मूर्ति सभमे सर्बश्रेस्थ ।कनीक काल चुप रहला बाद फेर -"  मुदा ।"
मुदा की आब  तँ  बिभूक मोन बिफैर गेलै - "अबस्य कोनो ने कोनो कमी गनेता ।"
केदार प्रसादजी अपन गपकेँ आगू बढ़ाबैत -ई जँ एना रहितेए तँ  आरो बेसी नीकआ ई रंग जँ फलाँ फलाँ रहथि तँ  जबरदस्त होइते ।"
नैन्हेटासँ जिनक गपकेँ मन्त्र मानि पूरा करैमे जि-जानसँ लागि जाइ छल आइ हुनक गपकेँ नहि पचा पएलक । बिफैर कए बाजि उठल -"रहै दियौ ! अहाँकेँ  तँ एनाहिते दोख निकालए अबैएअपन बनेएल ढाकन बसनी  तँ कियो एको टाकामे नहि किनैए आ हम केतबो नीक मूर्ति बना लि कोनो ने कोनो दोख अबश्य निकाइल देब ।"
बिभूक गप सूनिते मातर केदार प्रसादजीक शांत मुद्रा भंग भए सोचनीए भगेलनि । एकटा नमहर साँस लैत बिभूक पीठ ठोकैत बजलाह -"बस बेटा बस ! जहिया व्यक्तिकेँ अपन पूर्णताकेँ आभाष भजाइ छैक ओकर बाद ओकर जीवनक विकास ओतहिए रुकि जाइ छैक । पूर्णताकेँ आभास दिमागक आगू बढ़ैक चेतनामे लकबा लगादै छैक ।"
किछु छन चुप्प,दुनू गोटे शांत । बिभूक आँखिसँ नोर टघरैत जे आइ ई की कए लेलहुँओकरा अपन गल्तीक ज्ञान भगेलै । केदार प्रसादजी आगू - "हमर सपना छल जे हमर बेटा राजक आ देशक नहि वरण दुनियाँक सर्वश्रेष्ट मूर्तिकार  बनत.....मुदा नहि । कोनो गप नहि हमराकेँ जनै छल कियो नहि । हमर बेटाकेँ पूरा राज जनैत अछि एकटा नीक मूर्तिकारकेँ रूपमे । हमरा लेल बड्ड पैघ गप अछि । मुदा हमर सपना ------- आब नहि पूरा होएत । ई कहि ओ ओहि कक्षसँ बाहर भऽ गेला ।    
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जगदानन्द झा 'मनु'

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