Monday, April 28, 2014

प्रकृति

प्रकृति अहाँक कोरामे
की-की नुकाएल अछि नै जानि
देखी नजरि उठा कए जतए
नव-नव रंग-विरंगकेँ पानि

नुकाएल अनन्त ब्रम्हान्ड अहाँमे
कोटी-कोटी ग्रह नक्षत्र धेने छी
हमर मोनकेँ अछि जे हरखैत
एहन जीव चौरासी लाख धेने छी

श्यामल सुन्नर साँझक रूप
रौद्ररूप धारण अधपहरमे कएने
नव यौवन केर सभटा सुन्नरता
भोरक छविमे अहाँकेँ पएने

जाड़ गर्मी बरखा वसन्त
चारि अवश्था वरखक अहाँकेँ
माए जकाँ हमरा लोड़ी सुनबैत अछि
अन्न-धन दैत सभकेँ ई रूप अहाँकेँ
*****
जगदानन्द झा 'मनु'