Saturday, May 8, 2010

तरेगन - जगदीश प्रसाद मण्डल - भाग-१


तरेगन- भाग-१  - जगदीश प्रसाद मण्डल  

भूमि‍का

अपने लोकनि‍क बीच छोट-छीन विहनि-कथाक संग्रह उपस्‍थि‍त अछि‍। प्रस्‍तुत संग्रह एक-लगाति‍ नै लि‍ख‍ डेढ़-दू सालक बीच लि‍खल कथा-संग्रह थि‍क, जइमे मौलि‍क कथाक संग वि‍श्व-भरि‍क साहि‍त्‍यक सार संक्षेप नेना आ बढ़ैत नेना सभ लेल जुटाओल गेल अछि‍, सबहक प्रति‍ आभार जइसँ रंग-वि‍रंगक वि‍षए-वस्‍तुक ई जमघट भऽ गेल अछि‍‍।

आजुक भाग-दौड़क जि‍नगीमे दीर्घ कथा पढ़ैक पलखति‍ नै रहने विहनि-कथाक महत्‍व स्‍वत: बढ़ि‍ गेल अछि‍।

कथा-लेखनमे डॉ. श्रीनि‍वास जीक सहयोग आ प्रेरणाक चर्च करब केना बि‍सरि‍ सकै छि‍यनि‍

समए-समए गजेन्‍द्र जीक आग्रह आ सुझाव आ संगहि‍ श्रुति‍ प्रकाशनक श्री नागेन्‍द्र कुमार झा आ श्रीमती नीतू कुमारीक भरपुर सहयोग भेटलासँ लि‍खैक नव उत्‍साहो आ अशो मनकेँ सक्कत बना देने अछि‍।

ऐ पोथीक नाम “तरेगन” श्री धीरेन्द्र कुमार जीक देल अछि।

अंतमे, कथा-प्रेमी सभसँ आग्रह जे अपन अमूल्‍य सुझावसँ अवगति‍ करा आगूक लेल उत्‍साहि‍त करथि‍।

- जगदीश प्रसाद मंडल



अनुक्रम

 उत्थान-पतन
प्रतिभा
मर्म
अधखड़ुआ
समैक बरबादी
पहिने तप तखन ढलिहेँ
खलीफा उमरक सि‍नेह
जखने जागी तखने परात
अस्तित्वक समाप्ति
खजाना
उग्रघारा
व्यवहारिक
समर्पण
स्रष्टाक समग्र रचना
देवता
पाप आ पुण्य
परख
आलसी
प्रेम
हैरियट स्टो
बुझैक ढंग
श्रमिकक इज्जत
वंश
तियाग
सद्वि‍चार
साहस
बरदास्त
भूल
धैर्य
मनुष्यक मूल्य
मदति नै चाही
मेहनतक दरद
मैक्सिम गोर्की
मूलधन
कपटी दोस्त
भीख
भगवान
एकाग्रचित
सीखैक जिज्ञासा
अनुभव
असिरवादक विरोध
धर्मक असल रुप
सौन्दर्य
स्तब्ध
एकता
विधवा विवाह
देश सेवाक व्रत
आत्मबल- १
स्वाभिमान
कलंक
बुलकी
भद्रपुरुष
झूठ नै बाजब
आर्दश माए
नारी सम्मान
अनुशासन
सादा जि‍नगी
विचारक उदय
पुष्ट इकाइसँ समर्थ राष्ट बनैत
डर नै करी
असिरवाद उलटि गेल
रत्न गमेवाक दुख
नशा
सामना
शिष्टाचार
ठक
पत्नीक अधिकार
शिनीची सि‍नेह
सिखबैक उपाए
कर्तव्यपराएन तोता
तस्वीर
दोस्तक जरुरत
स्वार्थपूर्ण विचार
संगीक महत्व
उपहास
महादान
भाग्यवाद
सद्वृति‍
आश्रम नै स्वभाव बदली
पुरुषार्थ
नैष्ठिक सुधन्वा
सद्गृहस्त
सद्भाव
आलस्य वनाम पिशाच
स्वर्ग आ नर्क
यथार्थक बोध
विद्वताक मद
अनंत
हँसैत लहास
अनगढ़ चेतना
सत्‍य विद्या
समता
जते चोट तते सक्कत
परिष्कार
कथनी नै करनी
शालीनता
मजूरी
जीवन यात्रा
ज्योति‍
पवनक विवेक
आत्मबल-२
खुदीराम बोस
शिष्यकेँ शिक्षेटा नै परीक्षो
लौह पुरुष
जंग लागल
जीवकक परीक्षा
तप
उल्टा अर्थ
जाति नै पानि
ऊँच-नीच
पागलखाना


उत्थान-पतन

एकटा शिष्य गुरुसँ पुछल- मनुष्य शक्तिक भंडार छी फेर ओ किएक डूबैत-गिरैत अछि?”
शिष्यक प्रश्न सुनि गुरु कनी-काल सोचि‍ अपन कमंडल पानिमे फेक देलखिन। कमंडल तैरए लगल। कनी कालक बाद कमंडल निकालि पेनमे भूर कऽ देलखिन। भूर केला बाद फेर कमंडलकेँ पानिमे फेकलखिन। कमंडल डूबि गेल। डूबल कमंडलकेँ देखबैत गुरु कहलखिन- जहिना छेद भेल कमंडल पानिमे डूबि गेल मुदा बिनु छेद भेल कमंडल नै डूबल तहिना मनुक्खोक अछि। जै मनुष्यमे संयम छै ओ ऐ संसाररुपी पोखरिमे नै डूबैत अछि मुदा जे असंयमी अछि ओ ओइ‍ छेद भेल कमंडल जकाँ डूबि जाइत अछि। गाएकेँ अगर चालनिमे दूहल जाए तँ दूध धरतीपर गिरत मुदा जँ सौंस बर्तनमे दूहल जाएत तँ बर्तनमे रहत। तहिना इन्द्रिय शक्ति जँ मानसिक शक्तिकेँ कुमार्ग दिस लऽ जाएत तँ ओ ओही चालनि जकाँ भऽ जाएत। मुदा जँ सुमार्ग दिस बढ़त तँ ओ जरुर शक्तिशाली मनुष्य बनत।



प्रतिभा

डाॅक्टर राममनोहर लोहिया जेहने विद्वान तेहने देशभक्त रहथि। देश-प्रेमक विचार पितासँ विरासतमे भेटल रहनि। ततबे नै ओहने मस्त-मौला सेहो रहथि। सदिखन चिन्तन आ आनन्दमे जिनगी बि‍तबैत रहथि। विदेशसँ अबैकाल मद्रास बन्दरगाहपर जहाजसँ उतड़लथि। कलकत्ता जेबाक छलनि। मुदा संगमे टिकटोक पाइ नै। बिना भाड़ा देने केना जैतथि। बंदरगाहसँ उतरि सोझे हिन्दू अखबारक कार्यालयमे जा सम्पादककेँ कहलखिन- अहाँ पत्रिकाले हम दूटा लेख देब।
सम्पादक पूछलखिन- लाउ कहाँ अछि।
लिख कऽ दऽ दै छी।
लेख तँ लिखल छलनि नै, कहलखिन-  कागज-कलम दिअ अखने लि‍ख कऽ दै छी।
लोहिया जीक जबाब सुनि सम्पादक बकर-बकर मुँह देखए लगलनि। तखन डाॅक्टर लोहिया अपन वास्तविक कारण बता देलखिन। कारण बुझलाक बाद सम्पादक जी बैसबोक आ लिखबोक ओरियान कऽ देलखिन। किछु घंटाक उपरान्त दुनू लेख तैयार कऽ लोहिया जी दऽ देलखिन।
दुनू लेख पढ़ि सम्पादक गुम्म भऽ मने-मन हुनक प्रतिभाक प्रशंसा करए लगलखिन। ज्ञानक महत्ता सर्वोपरि अछि। ई बुझि एक्को क्षण व्यर्थ गमेबाक चेष्टा नै करक चाही। सदिखन अपनाकेँ नीक काजमे लगौने रहक चाही।



मर्म

एकटा स्कूल। जइमे हेलब सिखाओल जाइत। नव-नव विद्यार्थी प्रवेश लैत आ हेलैक कला सीख-सीख बाहर निकलैत। स्कूलेक आगूमे खूब नमगर-चौड़गर पोखरि। जकरा कातमे तँ कम पानि मुदा बीचमे अगम पानि।
शिक्षक घाटपर ठाढ़ भऽ देखए लगलथि। विद्यार्थी सभ पानिमे धँसल। विद्यार्थी सभकेँ आगू मुँहे माने अगम पानि दिस बढ़ल जाइत देख शिक्षक कहए लगलखिन- बाउ अखन अहाँ सभ अनजान छी। हेलब नै जनैत छी। तँए अखन अधिक गहीर दिस नै जाउ। नै तँ डूबि जाएब। जखन हेलब सीख लेब तखन पानिक उपरमे रहैक ढंग भऽ जाएत। जखन पानिक उपरमे रहैक ढंग सीख लेब तखन ओकर लाभ अपनो हएत आ दोसरोकेँ डूबैसँ बचा सकब। एहिना संसारमे बैभवोक अछि। अनाड़ी ओइ‍मे डूबि जाइत अछि, जबकि विवेकबान ओइ‍पर शासन करैत अछि। जइसँ अपनो आ दोसरोक भलाइ होइत छै
बैभवक स्थितिमे व्यक्ति अपने कुसंस्कारसँ गहीर खाइ खुनि स्वयं डूबि जाइत अछि।




अधखड़ुवा

दूटा चेलाक संग गुरु घूमैले विदा भेलाह। गामसँ निकलि पाँतरमे प्रवेश करिते बाध दिस नजरि पड़लनि‍। सगरे बाध खेत सभमे माटिक ढि‍मका देखलखिन। तीनू गोटे रस्ते परसँ हियासि-हियासि देखए लगलथि जे एना किएक छै। कनी काल गुनधुन कऽ दुनू चेला गुरुकेँ कहलकनि- अपने एतै, छाहरिमे बैसयौ, हम दुनू भाँइ देखने अबै छी।
बड़बढ़िया कहि गुरु बैस रहलथि। दुनू चेला विदा भेल। कातेक खेतसँ ढि‍मका देखैत दुनू गोटे सौंसे बाधक ढि‍मका देख, घुरि गेल। सभ ढि‍मकाक बगलमे कूप खूनल छलै। मुदा कोनो कूपमे पानि नै छलै। सिर्फ एक्केटा कूपमे पानिओ छलै आ ढेकुलो गारल छलै। ओना तँ सौंसे बाधे खीराक खेती भेल छल मुदा सभ खेतक लत्ती पानिक दुआरे जरि गेल रहए। सिर्फ एक्केटा खेतमे झमटगर लत्तिओ छल आ सोहरी लागल फड़लो छल।
गुरु लग आबि चेला बाजल- सभ ढि‍मकाक बगलमे कूप खुनल छै मुदा पानि नै छै, सिर्फ एक्केटा कूपमे पानियो छै, ढेकुलो गारल छै आ खेतमे सोहरी लागल खीरो फड़ल छै
चेलाक बात धि‍यान सँ सुनि गुरु पूछलखिन- एना किएक छै?”
दुनू चेला चुप्पे रहल। चेलाकेँ चुप देख गुरु कहए लगलखिन- एहेन लोक गामो सभमे ढेरियाएल अछि जे चट मंगनी पट वियाह करए चाहैत अछि। जते उथ्थर कूप छै जइमे पानि नै छै, ओ खुननिहारो सभ ओहने उथ्थर अछि। कोनो काज- चाहे आर्थिक होय आकि‍ बौद्धिक आकि‍ सामाजिक- अगर ढंगसँ नै कएल जेतै तँ ओहने हेतै। बीचमे जे एकटा कूप देखलिऐ, ओ खुननिहार किसान मेहनती अछि। अपन धैर्य आ श्रमसँ माटिक तरक पानि निकालि खीरा उपजौने अछि। तँए ओकरा मेहनतक फल भेटलै। बाकी सभ कामचोर अछि आशापर पानि फेरा गेलै।


समैक बरबादी

एकटा व्यवसायी किस्सा सुनलक जे राजा परीक्षित एक्के सप्ताह भागवत सुनि ज्ञानवान भऽ गेल छलाह। तँए हमहूँ किएक ने भऽ सकै छी। ओ कथावाचक भँजियबए लगल। कथावाचक भेटलै। दुनू गोटे माने कथोवाचक आ व्यवसायियो अपन-अपन लाभक फेरमे। कथावाचक सोचैत जे मालदार सुनिनिहार भेटल आ व्यवसायी सोचैत जे जिनगी भरि बइमानी कऽ बहुत धन अरजलौं आबो मरै बेर किछु ज्ञान अरजि ली, जइसँ मुक्ति हएत।
कथा शुरु भेल। सप्ताह भरि कथा चलल। सप्ताह बीतलापर व्यवसायी कथावाचक- व्यास जीकेँ कहलकनि- अहाँ नीक-नहाँति कथा नै सुनेलौं हमरा ज्ञान कहाँ भेल? दछिना नै देब।
व्यवसायीक बात सुनि व्यासजी कहलखिन- अहाँक धि‍यान सदिखन पाइ कमाइ दिस रहैए तँ ज्ञान केना हएत?”
दुनू एक-दोसरकेँ दोख लगबए लगल। कि‍यो अपन गल्ती मानैले तैयारे नै। दुनूक बीच पकड़ा-पकड़ी होइत पटका-पटकी हुअए लगल। तखने एकटा विचारवान व्यक्ति रास्तासँ गुजरैत रहथि। ओ देखलखिन। लगमे जा दुनू गोटेकेँ झगड़ा छोड़बैत पूछलखिन। दुनू गोटे अपन-अपन बात ओइ‍ व्यक्तिकेँ कहलक। दुनूक बात सुनि ओ व्यक्ति दुनूक हाथ-पाएर बान्हि कहलखिन- आब अहाँ दुनू गोटे एक-दोसरक बान्ह खोलू।
बान्हल हाथसँ केना खुजैत, बन्‍हन नै खुजल। तखन ओ निर्णए दैत कहलखिन- दुनू गोटेक मन कतौ आओर छल तँए सफल नै भेलौं। सप्ताह भरिक समए दुनूक गेल तँए अपन-अपन घाटा उठा घर जाउ। एकात्म भेने बिना आध्यात्मिक उद्देश्यक पूर्ति नै होइत छै



पहिने तप तखन ढलिहेँ

एक दिन एकटा कुम्हार माटिक ढेरी लग बैस, माटिसँ लऽ कऽ पकाओल बरतन धरिक विचार मने-मन करैत छल। कुम्हारकेँ चिन्तामग्न देख माटि कहलकै- भाय! तोँ हमर एहेन बरतन बनाबह जइमे शीतल पानि भरि कऽ राखी आ प्रियतमक हृदए जुरा सकी।
माटिक सवाल सुनि, कनी-काल गुम्म भऽ कुम्हार माटिकेँ कहलक- तोहर वि‍चार तखने संभव भऽ सकै छौ जखन तोरा कोदारिक चोट, गधापर चढ़ैक, मुंगरीक मारि खाइक, पाएरसँ गंजन सहैक आ आगिमे पकैक साहस हेतौ। ऐसँ कम गंजन भेने पवित्र पात्र नै बनि सकैछेँ।



खलीफा उमरक सि‍नेह

खलीफा उमर गुलामक संग घूमैले देहात दिस जाइत रहथि। किछु दूर गेलापर देखलखिन जे एकटा बुढ़िया जोर-जोरसँ अंगनमे बैस कानि रहल अछि। रास्तासँ ससरि ओ डेढ़ियापर जा ओइ‍ बुढ़ियासँ कनैक कारण पूछलखिन। हिचुकैत बुढ़िया कहए लगलनि- हमर जुआन बेटा लड़ाइमे मारल गेल। हम भूखे मरै छी मुदा एकोदिन खलीफा उमर खोजो-खबरि लैले नै आएल।
बुढ़ियाक बात सुनि उमर चोट्टे घुरि‍ घरपर आबि, एक बोरी गहूम अपने माथपर लऽ बुढ़िया ओइठाम विदा भेला। माथपर गहूमक बोरी देख गुलाम कहलकनि- अपने बोरी नै उठबयो। हमरा दिअ नेने चलै छी।
गुलामकेँ उमर जबाब देलखिन- हम अपन पापक बोझ उठा खुदाक घर नै जाएब तँ पाप केना कटत? अहाँ तँ हमरा पापक भागी नै हएब।
गहूमक बोरी बुढ़ियाक घर उमर पहुँचा देलखिन। गहूम देख बुढ़िया नाओं पूछलकनि। मुस्कुराइत उमर जबाब देलखिन- हमरे नाओं उमर छी
असिरवाद दैत बुढ़िया कहलकनि- अपन परजाक दुख-दरदकेँ अपन परिवारक दुख-दरद जकाँ बुझि कऽ चलब तखने आदर्श बनि सकब। जखन आदर्श बनब तखने हजारो-लाखो लोकक दुआ भेटत आ अमर हएब


जखने जागी तखने परात

प्रसिद्ध उपनयासकार डाॅक्टर क्रोनिन बड़ गरीब रहथि। मुदा जखन पी.एच.डी. केलनि आ किताब सभ बिकए लगलनि तखन धीरे-धीरे सुभ्यस्त होअए लगलथि। धनकेँ अबैत देख मनो बढ़ए लगलनि। क्रिया-कलाप सेहो बदलए लगलनि। क्रिया-कलापकेँ बदलैत देख पत्नी कहलकनि- जखन हम सभ गरीब छलौं तखने नीक छलौं जे कमसँ कम हृदेमे दयो तँ छल। मुदा आब दया समाप्त भेल जा रहल अछि
पत्नीक बात सुनि क्रोनिन महसूस करैत कहलखिन- ठीके कहलौं। धनीक धनसँ नै होइत बल्कि मन हृदेसँ होइत अछि। हम अपन रास्तासँ भटैक गेल छी। जँ अहाँ नै चेतैबतौं तँ हम आरो आगू बढ़ि ओइ‍ जगहपर पहुँच जैतौं जतए एक्कोटा मनुक्खक बास नै होइत छै।


अस्तित्वक समाप्ति

एक ठाम कनी हटि-हटि कऽ तीनटा पहाड़ छलै। पहाड़क पजरेमे नमगर आ गँहीर खाधियो छलै। जइसँ लोकक आवाजाही नै छलै। एक दिन एकटा देवता ओइ‍ दिशासँ होइत गुजरैत रहथि। तीनू पहाड़केँ देख पूछलखिन- ऐ क्षेत्रक नामकरण करैक अछि से ककरा नाओंसँ करी? संगहि अपन कल्याणक लेल की चहैत छी?”
पहिल पहाड़ कहलकनि- हम सभसँ ऊँच भऽ जाइ जइसँ दूर-दूर देख पड़िऐक
दोसर बाजल- हमरा खूब हरियर-हरियर प्रकृतिक सम्पदासँ भरि दिअ। जइसँ लोक हमरा दिस आकर्षित हुअए
तेसर कहलक- हमर उँचाइकेँ छील ऐ खादिकेँ भरि दियौ जइसँ ई सौंसे क्षेत्र उपजाउ बनि जाए। लोकोक आबाजाही भऽ जेतैक
तीनूक जोगार लगा देवता विदा भऽ गेलाह। एक बर्खक उपरान्त तीनूक परिणाम देखैले पुनः एलाह। पहिल पहाड़ खूब उँचगर भऽ गेल छल। मुदा कि‍यो ओमहर जेबे ने करैत। पानि-पाथर, बिहाड़ि, रौद आ जाड़क मारि सभसँ बेसी ओकरे सहए पड़ै। दोसर तत्ते प्रकृतिक सम्पदासँ भरि गेल जे बोनाह भऽ गेल। बोनैया जानवरक डरे कि‍यो एमहर एबे ने करैत। तेसर पहाड़सँ खाधियो भरि गेलै आ अपनो समतल भऽ गेल। खाधिसँ लऽ कऽ पहाड़ धरिक जगह उपजाउ बनि गेलै। खेती-बाड़ी करैले लोकक आवाजाही दिन-राति भऽ गेलै।
तेसर पहाड़क नाओंपर क्षेत्रक नामकरण करैत देवता कहलखिन- यएह पहाड़ अपन अस्तित्व समाप्त कऽ खाधियोकेँ अपना हृदेमे लगौलक। जइसँ ई क्षेत्र उपजाउ बनि गेल। तँए अहिक नाओंपर ऐ क्षेत्रक नाओं राखब उचित


खजाना

एकटा इलाकामे रौदी भऽ गेलै। सभ तरहक परिवारकेँ सभ तरहक जीबैक रास्ता छलैक। मुदा एकटा दशे कट्ठाबला किसान मजदूर छल। जे अपने खेतमे मेहनत कऽ गुजर करैत छल। रौदी देख बेचारा सोचए लगल जे जाबे पानि‍ नै हएत ताबे खेती केना करब? जँ खेती करब तँ खएब की? तँए अनतै चलि जाइ, जे काज लागत तँ गुजरो चलत। जब बरखा हेतै तँ धुरि कऽ चलि अाएब आ खेती करब। ई सोचि सभ तूर नुआ-वस्तु लऽ विदा भऽ गेल।
जाइत-जाइत दुपहर भऽ गेलै। भूखे-पियासे बच्चा सभ लटुआए लगलै। छोटका बच्चा ठोहि फाड़ि-फाड़ि कानए लगलै। रास्ता कातमे एकटा झमटगर गाछ देख सभकेँ छाहैरिक आशा भेलै। सभ तूर गाछतर पड़ि रहल। छोटका बेटा माएकेँ कहलक- माए! भूखे परान निकलैए, कुछो खाइले दे
बेटाक बात सुनि माएक करेज पघिलए लगलै मुदा करैत‍ की, खाइले तँ किछु रहबे ने करै। मुदा तैयो बेचारी कहलकै- बौआ, कनी काल बरदास करु। खाइक जोगार करै छी
सभ तूर जोगारमे जुटि गेल। कि‍यो माटिक गोलाक चुल्हि बनबए लगल, तँ कि‍यो जारन आनए गेल। कि‍यो पानि अानए इनार दिस विदा भेल। गाछक उपरसँ एकटा चिड़ै कहलकै- ऐ मूर्ख! पकबैक तँ सभ जोगार सभ करै छह मुदा पकेब कथी? जखन पकबैक कोनो चीज छहे नै तँ छुछे चुल्हि जरेबह
बड़का बेटा यएह सोचैत छल जे कतौसँ किछु कन्द-मूल आनि उसनि कऽ खाएब। मुदा तही बीच चिड़ैक मजाक सुनि खिसिया कऽ कहलकै- तोरे सभ परिवारकेँ पकड़ि आनि पका कऽ खेबौ
चिड़ैक मुखिया डरि गेल। मने-मन सोचए लगल जे परस्पर सहयोगक पुरुषार्थ किछु कऽ सकैत अछि। तँए झगड़ब उचित नै। मिलान स्वरमे बाजल- भाय! हमरा परिवारकेँ किएक नाश करबह। तोरा गारल खजाना देखा दै छिअह। ओकरा लऽ आबह आ चैनसँ जिनगी बितबि‍हह
ओ चिड़ै खजाना देखा देलकै। सभ मिल ओइ खजानाकेँ लऽ घर दिस घुरि गेल।
ओकरा घरक बगलेमे दोसरो ओहने परिवार छलै। जकरा सभ बात ओ कहि देलकै। मुदा ओइ परिवारक सभ कोढ़ि‍ आ झगड़ाउ। खजानाक लोभे ओहो सभ-तूर विदा भेल। जाइत-जाइत ओइ गाछ तर पहुँचल। पहिलुके जकाँ भानस करैक नाटक सभ करए लगल। गारजन जकरा जे अढ़बै से करैक बदला झगड़े करए लगै। गाछपर सँ वएह चिड़ै कहलकै- भोजनक जोगारे करैमे तँ सभ कटौज करै छह तखन पकेबह कथी?”
पहिलुके जकाँ परिवारक मुखिया कहलकै- तोरे पकड़ि कऽ पकेबह?”
हँसैत चिड़ै उत्तर देलकै- हमरा पकड़ैबला कि‍यो आओर छल जे सभ धन लऽ चलि गेल। तोरा बुते किछु ने हेतह?”


उग्रघारा

द्वापर युगक संध्याकालीन कथा थिक। महाभारतक लड़ाइ सम्पन्न भऽ गेल छल। एक दिन एकांतमे बैस अर्जुन त्रेताक राम-रावणक लड़ाइ आ द्वापरक कौरब-पाण्डबक लड़ाइक तुलना मने-मन करैत रहथि। अनायास मोनमे उठलनि जे लंका जेबा काल रामक सेना एक-एक पाथरक टुकड़ाकेँ जोड़ि‍ जे समुद्रमे पुल बनौलनि, ओ तँ एक तीरोमे बनि सकै छल। ऐ प्रश्नपर जत्ते सोचति तत्ते शंका बढ़ले जाइन। अंतमे, यएह सोचलनि जे पम्पापुरमे हनुमान तपस्या कऽ रहल छथि तँए हुनकेसँ किएक ने पूछि लेल जाए।
हनुमानकेँ भजियबैले अर्जुन विदा भेला। जाइत-जाइत हनुमानक कुटीपर पहुँचलथि। हनुमान तपस्यामे लीन रहथि। कुट्टीक आगूमे बैस अर्जुन हनुमानक धि‍यान टूटैक प्रतीक्षा करए लगलथि। जखन हनुमानक धि‍यान टूटलनि तँ अर्जुनकेँ देखलखिन। आसनसँ उठि अतिथि-सत्कार करैत हनुमान अर्जुनकेँ पूछलखिन- अहाँ के छी, कोन काजे ऐठाम एलौंहेँ?”
अपन परिचए दैत अर्जुन कहए लगलखिन- अपने त्रेताक महावीर छी तँए एकटा शंकाक समाधानक लेल एलौंहेँ।
पुछू।
लंका जेबा काल जे समुद्रमे एक-एकटा पाथरक टुकड़ा जोड़ि जे पुल बनाओल, ओ तँ एक तीरोमे बनि सकैत छल?”
अर्जुनक बात सुनि किछु काल गुम्म भऽ हनुमान उत्तर देलखिन- हँ, मुदा ओ ओते मजगूत नै होइतै जते एक-एक पाथरक टुकड़ा जोड़ि कऽ भेलै
हनुमानक उत्तरसँ अर्जुन असहमत होइत कहलखिन- तीरोक बनल पुल तँ ओहने मजगूत भऽ सकैत छलै
ऐ प्रश्नपर दुनूक बीच मतभेद भऽ गेलनि। अंतमे परीक्षाक नौबत आबि गेलै। दुनू गोटे समुद्रक कात पहुँचलाह। तरकशसँ तीर निकालि अर्जुन धनुषपर चढ़ा, समुद्रमे छोड़लनि। पुल बनलै। अपन विकराल रुप बना हनुमान पुलपर कुदैक उपक्रम केलनि। अन्तर्यामी कृष्ण सभ देखैत रहथि। मने-मन सोचलनि जे महाभारतक नायक अर्जुन हारि रहल छथि। हुनक हारब हमर हारब हएत। संगहि महाभारतक लड़ाइ सेहो झूठ भऽ जेतैक। तँए प्रतिष्ठा बँचबैक घड़ी आबि गेल अछि। जै सोझे हनुमान पुलपर खसितथि तै सोझे कृष्ण अपन कन्हा पुलक तरमे लगा देलखि‍न। हनुमान कुदलाह। पुल तँ टूटैसँ बचि गेल मुदा कृष्णक करेज चहकि गेलनि। जइसँ पानिमे खून पसरए लगलै। खूनसँ रंगाइत पानि देख हनुमान धि‍यान करए लगलथि जे एना किएक भऽ रहल छै। भजियबैत ओ ओइ जगहपर पहुँच कृष्णकेँ देखलखिन।
अचेत कृष्णकेँ देख, दुनू हाथ जोड़ि हनुमान क्षमा मंगलखिन।



व्यवहारिक

जीवनी आ अनाड़ी माने व्‍यवहारि‍क आ अव्यवहारिकक प्रश्न असान नै। ऐ विशाल संसारमे लाखो-करोड़ो ढंगक जिनगी बना लोक जीबैत अछि। एकक जिनगी दोसरसँ मिलबो करैत आ भिन्नो होइत। तँए एकक व्यवहारिक ज्ञान दोसराक लेल नीको होइत आ अधलो।
चारि गोट स्नातक महाविद्यालयसँ निकलि घर (गाम) जाइत रहथि। चारुकेँ अपन-अपन ज्ञानपर गर्व। दुपहर भऽ गेल। सभकेँ भुखो लगलनि। रास्तामे रुकि खाइक ओरियानमे चारु गोटे जुटि गेलाह। तर्कशास्त्री आँटा अानए दोकान गेल। पोलीथीनक झोरामे आँटा कीन अबैत छल। मनमे फुड़लै जे झोरा मजबुत अछि की नै। तथ्य जनैक लेल झोराकेँ हाथसँ दबलक। झोरा फाटि गेल। आँटा छिड़िया कऽ माटिमे मिल गेल। फेर घुरि कऽ चाउर कीन ओरिया कऽ नेने आएल।
कलाशास्त्री जारन अानए गेल। हरियर-हरियर सुन्दर गाछ देख मुग्ध भऽ गेल। गाछसँ सुखल जारन नै तोड़ि काँचे झाड़ी काटि कऽ नेने आएल। कहुना-कहुना कऽ तेसर पाक-शास्त्री वएह कँचका जारन पजारि बटलोही चढ़ौलक। अदहन जखन भेलै तँ चाउर लगौलक। कनियेँ कालक बाद बटलोहीमे चाउरो आ पानियो खुद-बुद करए लगल। बटलोहीमे खुद-बुद करैत देख पाक-शास्त्री मग्न भऽ गेल। चारिम जे व्याकरण जननिहार छल बटलोहीक खुद-बुद अवाज देख-सुनि व्याकरणक उच्चारणक हिसाबसँ गलत बुझि, तमसा कऽ ओकरा उल्टा देलक। भात चुल्हिमे चलि गेल। एक गोटे सभ तमाशा देखैत छल। चारुकेँ भुखल देख दया लगलै। ओ अपन मोटरीसँ नोन-सत्तू निकालि चारु गोटेकेँ खाइले दैत कहलक- किताबी ज्ञानसँ व्यवहारिक अनुभवक मूल्य अधिक होइत


समर्पण

समुद्रसँ मिलैक लेल धार विदा भेल। रास्तामे बलुआही इलाका पड़ैत छल। जुआनीक जोशमे धार विदा तँ भेल मुदा रास्ताक बालू आगू बढ़ै ने दैत। सभ पानि‍ सोंखि लैत। धारक सपना टूटए लगलैक। मुदा तैयो साहस कऽ धार अपन उद्गम स्रोतसँ जल लऽ लऽ दौड़ कऽ आगू बढ़ए चाहैत मुदा धारक सभ पानि बालू सोंखि लैत। जइसँ धार आगू बढ़ैमे असफल भऽ जाइत। झुंझला कऽ निराश भऽ धार बालूकेँ पूछलकै- समुद्रमे मिलैक हमर सपना अहाँ नै पूर हुअए देब?”
बालू उत्तर देलकै- बलुआही इलाका होइत जाएब संभव नै अछि। अगर अहाँ अपना प्रियतमसँ मिलए चाहैत छी तँ अपन सम्पत्ति बादलकेँ सौंपि दियौक, तखने पहुँच पाएब।
अपन अस्तित्वकेँ समाप्त करैक अद्भुत समरपनक साहस हेबे ने करै। मुदा बालूक विचारमे गंभीरता छलैक। किछु काल विचारि धार समरपनक लेल तैयार भऽ गेल। तखन ओ पानिक बुन्नक रुपमे अपनाकेँ बदलि बादलक सवारीपर चढ़ि समुद्रमे जा मिलल।



स्रष्टाक समग्र रचना

सृष्टि निर्माणक काज सम्पन्न भऽ गेल। प्राणी सभकेँ बजा ब्रह्मा अपन-अपन कमीक पूर्ति करा लइले कहलखिन। सभ प्राणी अपन-अपन कमीक चरचा करए लगल। मुदा एक्के बेर जे सभ बाजए लगल तँ हल्लामे कि‍यो ककरो बात सुनबे ने करैत। तखन सभकेँ शान्त करैत ब्रह्मा बेरा-बेरी बजैले कहलखिन। सबहक बात सुनि ब्रह्मा ककरो अठन्नी ककरो चौबन्नी, ककरो दस पैसी सुधार कऽ देलखिन।
अखन धरि मनुक्ख पछुआएले छल। पहिने ब्रह्मा नारीकेँ पूछलखिन- अहाँमे की कमी रहि गेल अछि, बाजू?”
तमतमाइत नारी कहलकनि- हमरा तँ बड़ सुन्नर बनेलौं मुदा अपना सन दोसर नारीकेँ देख मनमे जलन हुअए लगैत अछि। तँए एक रंग दूटा नारी नै बनबयौक।
मुस्कुराइत ब्रह्माजी एकटा अएना आनि नारीक हाथमे दऽ देलखिन आ कहलखिन- बस, एक्केटा सहेली अहाँ सन बनेलौं। जखन मन हुअए तखन आगूमे अएना रखि देख लेब। जँ सेहो देखैक मन नै हुअए तँ अएना देखबे ने करब।











देवता

मनुक्खक रोम-रोममे इश्वर परब्रह्म समाएल छथि। ककरो अहित करैक इच्छा करब अपना लेल पापकेँ बजाएब थिक। दधीचिक पुत्र पिप्लाद अपन माइक मुँहे अपन पिताक हड्डी देवता द्वारा मांगब आ ओइसँ बनाओल बज्रसँ अपन परान बचाएब सुनलनि। सुनिते पिप्लादकेँ देवताक प्रति असीम घृणा मनमे उठलनि। मने-मन सोचए लगलथि जे अपन स्वार्थ साधैले दोसरक प्राण हरब, कत्ते नीचता थिक। मनमे क्रोध जगलनि। पिताक बदला लेबा लेल पिप्पलाद तप करैक विचार केलनि।
पिप्पलाद तप शुरु केलनि। तप शुरु करिते मनक ताप कमए लगलनि। बहुत दिनक उपरान्त भगवान शिव प्रकट भऽ कहलखिन- वर मांगू?”
प्रणाम कऽ पिप्पलाद शिवकेँ कहलखि‍न- अपने अपन रुद्र रुप धारण कऽ ऐ देवता सभकेँ जरा भस्म कऽ दियौक।
पिप्पलादक वर (बात) सुनि शिव स्तब्ध भऽ गेलाह। मुदा अपन वचन तँ पूरब पड़तनि। तँए देवताकेँ जरबैक लेल तेसर आँखि खोलैक उपक्रम करए लगलथि। ऐ उपक्रमक आरंभेमे पिप्पलादक रोम-रोम जरए लगल। अपन अंगकेँ जरैत देख जोरसँ हल्ला करैत शिवकेँ कहए लगलखिन- भगवान! ई की भऽ रहल अछि? देवताक बदला हम खुदे जरि रहल छी।
मुस्की दैत शिव कहलखिन- देवता अहाँक देहमे सन्हियाएल छथि। अवयवक शक्ति हुनके सामर्थ्‍य छियनि। देवता जरता आ अहाँ बँचल रहब से केना हएत? आगि लगौनिहार स्वयं सेहो जरैत अछि।
पिप्पलाद अपन याचना घुमा लेलनि। तखन भगवान शिव कहलखिन- देवता सभ त्यागक अवसर दऽ अहाँ पिताक काजकेँ गौरवान्वित केलनि। मरब तँ अनिवार्य थिक। ऐसँ ने अहाँक पिता बँचितथि आ ने वृत्तासुर राक्षस।
पिप्पलादक भ्रम टूटि गेलनि। ओ आत्म कल्याण दिस मुड़ी गेलाह।
पाप आ पुण्य

अपन पोथी-पतरा उनटबैत चित्रगुप्त आसनपर बैसल छलाह। तै बीच दू गोटेकेँ यमदूत हुनका लग पेश केलक। पहिल व्यक्तिक परिचए दैत यमदूत कहलकनि- ई नगरक सेठ छथि। हिनका घनक कोनो कमी नै छन्‍हि‍। खूब कमेबो केलनि आ मंदिर, धरमशाला सेहो बनौलनि।
कहि यमराज सेठकेँ कातमे बैसाए देलक। दोसरकेँ पेश करैत बाजल- ई बड़ गरीब छथि। भरि पेट खेनाइयो ने होइत छन्‍हि। एक दिन खाइत रहथि‍ कि एकटा भूखल कुत्ता लगमे आबि ठाढ़ भऽ गेलनि। भूखल कुत्ताकेँ देख थारीमे जे रोटी बँचल रहनि ओ ओकरा आगूमे दऽ देलखिन। अपने पानि पीब हाथ धोय लेलनि। आब अपने जे आज्ञा दिऐक
यमदूतक ब्‍यान सुनि चित्रगुप्त पोथिओ देखैत आ विचारबो करथि। बड़ी काल धरि सोचैत-विचारैत निर्णए देलखिन- सेठकेँ नरक आ गरीबकेँ स्वर्ग लऽ जाउ
चित्रगुप्तक निर्णए सुनि यमराजो आ दुनू व्यक्तियो अचंभित भऽ गेल। तीनू गोटेकेँ अचंभित देख अपन स्पष्टीकरणमे चित्रगुप्त कहए लगलखिन- गरीब आ निःसहाय लोकक शोषण सेठ केने अछि। ओइ निःसहाय लोकक विवशताक दुरुपयोग केने अछि। जइसँ अपनो एश-मौज केलक आ बचल सम्पत्तिक नाओं मात्र लोकेषणक पूर्ति हेतु व्यय केलक। तइमे लोकहितक कोन काज भेलै? ओइ मंदिर अा धरमशल्ला बनबैक पाछू ई भावना काज करै छलै जे लोक हमर प्रशंसा करए। मुदा पसेना चुबा कऽ जे गरीब कमेलक आ समए एलापर ओहो कुत्तेकेँ खुआ देलक। जँ ओकरा आरो अधिक धन रहितै तँ नै जानि कत्ते अभाव लोकक सेवा करैत



परख

एकटा किसानकेँ चारिटा बेटा रहए। बेटा सबहक बुद्धि परखैले किसान सभकेँ बजा एक-एक आँजुर धान दऽ कहलक- तूँ सभ अपन-अपन विचारसँ एकरा उपयोग करह
धानकेँ कम बुझि जेठका बेटा आंगनमे छिड़िया देलक। चिड़ै सभ आबि बीछ-बीछ खा गेल। ओइ धानकेँ माझिल बेटा तरहत्थीपर लऽ-लऽ रगड़ि-रगड़ि, भुस्साकेँ मुँहसँ फूकि, खा गेल। बापक देल धानकेँ सम्पत्ति बुझि साँझिल बेटा कोहीमे रखि लेलक, जे जँ कहियो बाबू मंगताह तँ निकालि कऽ दऽ देबनि। छोटका बेटा, ओइ धानकेँ खेतमे बाउग कऽ देलक। जइसँ कएक बर बेसी धान उपजलै।
किछु दिनक बाद चारु बेटाकेँ बजा किसान पूछलक- धान की भेल?”
चारु बेटा अपन-अपन केलहा काज कहलकनि। चारु बेटाक काज देख किसान छोटका बेटाकेँ बुद्धियार बुझि परिवारक भार दैत कहलक- परिवारमे एहने गुण अपनबए पड़ैत छै। एहने गुण अपनौलासँ परिवार सुसम्पन्न बनैत छै।



आलसी

एकटा गाछपर टिकुली आ मधुमाछी रहैत छलि। दुनूक बीच घनिष्ठ दोस्ती छलै। भरि दिन दुनू अपन जिनगीक लीलामे लागल रहैत छलि। अकलबेरामे दुनू आबि अपन सुख-दुखक गप-सप्प करैत छलि।
बरसातक समए एलै। सतैहिया लाधि देलकै। मधुमाछीले तँ अगहन आबि गेलै मुदा टिकुलीक लेल दुरकाल। भूखे-पियासे टिकुली घरक मोख लग मन्हुआएल बैसल छलि। मुँह सुखाएल आ चेहरा मुरुझाएल छलै। चरौर कए कऽ आबि मधुमाछी टिकुलीकेँ पूछलकै- वहिन! एहेन सुन्नर समैमे एत्ते सोगाएल किएक बैसल छी?”
मधुमाछीक बात सुनि कड़ुआएल मने टिकुली उत्तर देलकै- वहिन! मौसमक सुन्नरतासँ पेटक आगि थोड़े मिझाइ छै। तीन दिनसँ कतौ निकलैक समैये ने भेटल, तँए भूखे तबाह छी।
उपदेश दैत मधुमाछी कहलकै- कुसमए लेल किछु बचा कऽ राखक चाही
कहलौं तँ वहिन ठीके मुदा बचा कऽ रखलासँ आलसियो भऽ जैतौं आ भूखलक नजरिमे चोरो होइतौं


प्रेम

जखन परिवारमे पति-पत्नी आ बच्चा सबहक बीच सि‍नेह रहैत छै तखन परिवार स्वर्गोसँ सुन्दर बुझि पड़ैत छै। नमहरसँ नमहर विपत्ति परिवारमे किएक ने आबए मुदा ढंगसँ चललापर ओहो आसानीसँ निपटि जाइत छै
एकटा छोट-छीन गरीब परिवार छल। दुइये परानी घरमे। सभ साल दुनू परानी -सुनिता आ सुशील- अपन विवाहोत्सव मनबैत। गरीब रहने तँ बहुत ताम-झामसँ उत्सव नै मनबैत मुदा मनबैत सभ साल छल। छोट-मोट उपहार एक-दोसरकेँ, यादि‍ स्वरुप दैत छल। साले-साल ऐ परम्पराकेँ निमाहैत।
अहू बर्ख ओ दिन एलै। उत्सवक दिनसँ किछु पहिनहिसँ उपहारक योजना दुनू मने-मन बनबए लगल। मुदा दुनूक हाथ खाली। भरि पेट खेनाइयो ने पूरै तखन जमा कऽ की रखैत। मने-मन सुशील योजना बनौने जे पत्नीक केशमे लगबैले क्लीप नै छै तँए ऐ बेर वएह (क्लीप) उपहार देबैक। तहिना सुनितो सोचैत जे पति हाथक घड़ीक चेन पुरान भऽ गेल छन्‍हि तँए ऐ बेर चेन कीन कऽ देबनि। दुनू अपन-अपन जोगारमे। मुदा नाजायज कमाइ नै रहने जोगारे ने बैसै। उत्सवक दिन अबैमे एक दिन बाकी रहलै। अंतिम समैमे सुशील सोचलक जे आइ साँझमे घड़ी बेच क्लीप कीन लेब। सुनि‍तो सोचलि‍ जे अपन केश कटा कऽ बेच लेब तइमे घड़ीक चेन भऽ जाएत। साँझू पहर दुनू गोटे- फुट-फुट बाजार गेल। सुशील घड़ी बेच क्लीप कीन लेलक आ सुनिता केश बेच चेन कीन लेलक। खुशीसँ दुनू गोटे घर आबि अपन-अपन वस्तु -चेन आ क्लीप- ओरिया कऽ रखि लेलक।
सबेरे सुति उठि कऽ दुनू परानी हँसैत एक-दोसरकेँ उपहार दइले आगू बढ़ल। सुनिता टोपी पहिरने छलि। क्लीप निकालि सुशील सुनिताक टोपी हटा क्लीप लगबए चाहलक मुदा केशे नै। तहिना चेन निकालि सुनिता घड़ीमे लगबए चाहलनि तँ हाथमे घड़िये नै।
आमने-सामने दुनू ठाढ़। दुनूक मुँहसँ तँ किछु नै निकलैत मुदा दुनूक हृदेमे हर्ष-विस्मयक बीच घमासान लड़ाइ छिड़ गेल। अंतमे हृदए बाजल- जे सिनेह दूधक समुद्रमे झिलहोरि खेलैत अछि ओकरा लेल क्लीप आ चेनक कोन महत्व छै


हैरियट स्टो

अमर लेखिका हैरियट एलिजाबेथ स्टो विश्व-विख्यात पोथी, टाम काकाक कुटिया लिखने छथि। जै समए ओ पोथी लिखैत रहथि‍‍‍ ओइ समए ओ कठिन परिस्थितिमे जिनगी बितबैत रहथि। ओना अकसरहाँ लोक ऐ पोथीकेँ अमेरिकाक दास प्रथाक विरोधमे लिखल मानैत छथि।
अपना परिस्थितिक संबंधमे अपन भौजीकेँ कहलखिन- चुल्हि-चाैकाक काज, नुआ-बस्तर धोनाइ, सिआइ केनाइ, जूता-चप्पल पॉलिस आ मरम्मत करब जिनगीक मुख्य काज अछि। बच्चा आ परिवारक सेवामे भरि दिन सिपाही जकाँ खटै छी। छोटका बच्चा लगमे सुतैत अछि तँए जाधरि ओ सुति नै रहैत अछि ताधरि किछु ने सोचि सकै छी आ ने लि‍ख पबै छी। गरीबी आ परिवारक काज ऐ रुपे दबने अछि जइसँ समैये कम बँचैत अछि। मुदा तैयो एक-दू घंटा सुतैक समए काटि, अपने सन लोकक लेल, जनिका परिवारक अंग बुझैत छियनि, ति‍नकाले किछु लि‍ख-पढ़ि लैत छी।
हुनके लिखल पोथीसँ उत्तरी अमेरिका आ दछिनी अमेरिकामे दास प्रथाक खिलाप क्रान्ति भेल।


बुझैक ढंग

एकटा यात्री वृन्दावन विदा भेल। किछु दूर गेलापर रास्ताक बगलमे मीलक पत्थरपर नजरि पड़लै। ओइ मीलक पत्थरमे वृन्दावनक दूरी आ दिशा लिखल छलै। ओ यात्री ओतै अटकि बैस रहल आ बजए लगल- पाथरक अंकन तँ गल्ती नै भऽ सकैत अछि किएक तँ विश्वासी लोकक लिखल छिऐक। वृन्दावन तँ आबिये गेल छी, आगू बढ़ैक की प्रयोजन?”
थोड़े कालक बाद एकटा बुझनिहार आदमी ओइ रस्ते कतौ जाइत रहथि तँ सुनलखिन। मने-मन खूब हँसलथि। कनी-काल ठाढ़ भऽ हँसैत ओइ यात्रीकेँ कहलखिन- पाथरपर सिरिफ संकेतमात्र  अछि। ऐठामसँ वृन्दावन बहुत दूर अछि। जँ अहाँ ओतए जाए चाहै छी तँ तुरनते सभ सामान समेट‍ विदा भऽ जाउ नै तँ नै पहुँचब
भोला-भाला यात्री अपन भूल मानि विदा भेल।
एहेन बहुतो लोक छथि जे शास्त्रो पढ़ैत छथि, शास्त्रीय बातो सुनै छथि मुदा धरम धारण करैक रास्ता पकड़बे ने करैत छथि तखन ओ धर्म केना बुझथिन। जे धर्म की थिकैक?










श्रमिकक इज्जत

अपन संगी-साथीक संग नेपोलियन टहलैले जाइत रहथि। जेरगर रहने सौंसे रास्ता छेकाएल छलै। दोसर दिससँ एकटा घसबहिनी माथपर घासक बोझ नेने अबैत छलि। ओइ घसबहिनीपर सभसँ पहिल नजरि नेपोलियनक पड़लैक। ओ पाछू घुरि कऽ देखल। सौंसे रास्ता घेराएल छलै। अपन पैछला संगीक हाथ पकड़ि खिंचैत कहलखिन- श्रमिकक सम्मान करु। एक भाग रास्ता खाली कऽ दियौ। यएह देशक अमूल्य संपत्ति थिक। एकरे बले कोनो देशक उन्नति होइत छै।
घसबहिनी टपि गेलि। थोड़े आगू बढ़लापर पुनः नेपोलियन संगी सभसँ कहलखिन- सद्प्रवृत्तिकेँ बढ़ेबाक चाही। ओकरा जत्ते महत्व देबै ओत्ते जन-उत्साह जगतै। जइसँ देशक कल्याण हेतै




वंश

एक दिन महान् विचारक सिसरोकेँ एकटा धनिक सरदारसँ कोनो बाते कहा-सुनी हुअए लगलनि। ने ओ धनिक पाछू हटैले तैयार आ ने सिसरो। दुनूक बीच पकड़ा-पकड़ीक नौबत अाबए लगलै। खिसिया कऽ ओ धनिक सिसरोकेँ कहलक- तूँ नीच कुलक छेँ, तँए तोरा-हमरा कथीक बराबरी?” ऐ बातसँ सिसरो बिचलित नै भऽ साहससँ उत्तर देलखिन- हमरा कुलक कुलीनता हमरासँ शुरु हएत जबकि तोरा कुलक कुलीनता तोरासँ अंत हेतौ
सभ्यता आ कुलीनता जन्मसँ नै बल्कि चरित्र आ कर्तव्यसँ पैदा लैत अछि।







तियाग

सत्संग, भागवत आ प्रवचनमे बेर-बेर तियागक महिमाक चर्चा होइत। त्यागकेँ इश्वर प्राप्तिक रास्ता बताओल जाइत। बेर-बेर जरायुध ऐ चरचाकेँ सुनथि‍। तँए मनमे बिसवास भऽ गेलनि जे सत्ते तियागसँ इश्वर प्राप्ति होइत। जरायुध अपन सभ सम्पत्ति दान कऽ देलखिन। मुदा दान केलो उपरान्त हुनका ने मनमे शान्ति एलनि आ ने इश्वर भेटलनि। निराश भऽ जरायुध महाज्ञानी शुकदेव लग पहुँच पूछल- जनक तँ संग्रही छलाह मुदा तैयो हुनका ब्रह्मज्ञान प्राप्ति भऽ गेल छलनि आ हम सभ कुछ तियागियोकेँ ने ब्रह्मज्ञान पाबि सकलौं आ ने शान्ति भेटल। एकर की कारण छै?”
धि‍यानसँ जरायुधक बात सुनि सुकदेव उत्तर देलखिन- आवश्यक वस्तुकेँ परमार्थमे लगा देब तँ नैतिक आ सामाजिक कर्तव्य बुझल जाइत। आध्यात्मिक स्तरक त्यागमे सभ वस्तुक ममत्व छोड़ि ओकरा इश्वरक घरोहर बुझए पड़त। शरीर आ मन सेहो सम्पदा छी। ओकरा इश्वरक अमानत मानि हुनके इच्छानुसार केलापर बुझबै जे सही त्याग भेल आ मोक्षक रास्ता भेटत।




सद्वि‍चार

एकटा न्यायप्रिय राजा साधुक भेषमे अपन प्रजाक कुशल-क्षेम बुझैक लेल निकललथि। जहिया कहियो ओ राजा साधुक भेषमे निकलथि तहिया सिर्फ एकटा मंत्रीक चेलाक रुपमे संग कऽ लथि। ने अंगरक्षक रहनि आ ने अमिला-फमिला। आ ने ककरो जानकारी देथिन।
बहुतो गोटेसँ सम्पर्क करैत राजा एकटा बगीचामे पहुँचलाह। ओइ बगीचामे एकटा वृद्ध किसान नवका -बच्चा- गाछ रोपैत रहथि‍। गाछ देख राजा किसानकेँ पूछलखिन- ई तँ अखरोटक गाछ बुझि पड़ैत अछि।
मुस्कुराइत किसान कहलकनि- हँ भैया! अहाँक अनुमान बिलकुल ठीक अछि।
बीस-पच्चीस बर्खक गाछ भेलापर अखरोट फड़ैत छै, ताधरि अहाँ जीबते रहब?”
ऐ बगीचाकेँ हमर बाप-दादा लगौने छथि। खून-पसीना एक कए कऽ एकरा पटौलनि, देखभाल केलनि। जेकर फड़ हम सभ खाइ छी। तँए आब हमरो कर्तव्य बनैत अछि जे ओते हमहूँ रोपि दिऐक। अपनेटा लऽ गाछ लगौनाइ तँ स्वार्थक बात भऽ जाइत छै। हम ई नै सोचै छी जे आइ ऐ गाछक उपयोगिता की छै? भविष्यमे दोसरकेँ फल दै वस यएह इच्छा अछि।
किसानक विचार सुनि राजा मंत्रीकेँ कहलखिन- जँ एहि‍ना सभ बुझए लगै जे हमरा लगबैसँ मतलब अछि तँ समाजो आ परिवारोमे सद्ि‍वचार पसरि जाएत। जाधरि समाजमे सद्-वृत्ति‍क प्रसार नै हएत ताधरि नीक समाज बनब, मात्र कल्पना रहत।



साहस

सोवियत संघक नेता लेनिनपर, एकटा सिरफिरा पेस्तौल चला देलकनि गोली तँ निकलि गेलनि मुदा छर्रा गरदनिमे फँसले रहि गेलनि। तै बीच देशमे एकटा पुल टुटि गेलै। पुल मुख्य मार्गमे छलै। तँए जत्ते जल्दी भऽ सकैत ओते जल्दी पुल बनाएब छलैक। आपात् स्थिति घोषित कऽ ओइ पुलक मरम्मत युद्धस्तरपर हुअए लगलैक। देशप्रेमी जनता ओइ काजमे लगि गेल। लेनिन सेहो ओइ काजमे जुटल। श्रमिके जकाँ लेनिनो काज करैत रहथि। गरदनिमे गोली रहनौ ओ बीस-बीस घंटा काज करैत रहथि। काज करैत देख एकटा श्रमिक पूछलकनि तखन ओ कहलखिन- अगर हम अगुआ भऽ काजमे पाछू रहब तखन जन उत्साह केना बढ़तै? जकर जरुरत देशमे अछि।





बरदास्त

अब्राहम लिंकन अमेरिकाक राष्‍ट्रपति रहथि। हुनक पत्नी चिड़चिड़ा आ कठोर स्वभावक छेलखि‍न। जइसँ लिंकनक परिवारिक जीवन दुःखमय छलनि। कएक दिन एहेन होइत छलै जे जखन परिवारक सभ सुति रहैत छल तखन लिंकन चुपचाप पैछला दरवाजासँ आबि सुइत रहैत छलाह। आ सुरुज उगैसँ पहिनहि तैयार भऽ निकलि आॅफिस चलि जाइत छलाह। दिन भरि अपन कार्यमे मस्त भऽ बीता लैत छलाह। संगी-साथीक संग हँसी-मजाक कऽ मन बहला लैत छलाह।
एक दिन परिवारक एकटा नोकरकेँ हुनक पत्नी गारिओ पढ़लखिन आ फटकारबो केलखिन। ओइ नोकरकेँ बड़ दुख भेलै। ओ कोठीसँ निकलि सोझे लिंकनक आॅफिस जा सभ बात कहलकनि। नोकरक सभ बात सुनि लिंकन कहलखिन- ऐ भले आदमी! पनरह बर्खसँ हम ऐ परिस्थितिसँ मुकाबला करैत शान्तिसँ रहैत एलौं। आ अहाँ एक्के दिनक फटकारमे एत्ते दुखी भऽ गेलौं। बरदास्त कऽ लिअ।
अचताइत-पचताइत बेचारा नोकर लिंकनक बात मानि लेलक।







भूल

प्रख्यात दार्शनिक वरटेªण्ड रसेल अपन जीवनीमे लिखने छथि, जे हमर पहिल स्त्री सचमुच विचारवान छलीह। जखन ओ मन पड़ै छथि तखन हृदए दहकि जाइत अछि। दुनू गोटेक बीच अगाध प्रेम छल। एक दिन कोनो बाते दुनू गोटेक बीच अनबन भऽ गेल। खिसिया कऽ हम बिनु खेनहि आॅफिस विदा भऽ गेलौं। रास्तामे एकाएक मनमे उपकल जे अपन क्रोधक बात पत्नीकेँ कहि दिअनि। रस्तेसँ घुरि गेलौं। घुरि कऽ घर एलापर पत्नी घुरैक कारण पूछलनि। हमर क्रोध आरो उग्र भऽ गेल। हम कहलियनि- आब अहाँले हमरा हृदेमे मिसिओ भरि जगह नै अछि।
पतिक बात सुनि पत्नी स्तब्ध भऽ गेल मुदा किछु बाजलि नै। बेचारीक हृदेमे ई बात जरुर पकड़ि लेलकनि जे हमरा ओ -पति- कपटी बुझैत छथि। आइ धरि हम भ्रममे छलौं। दुनूक बीच खाइ बढ़ैत गेलै। होइत-होइत पति पत्नीकेँ तलाक दऽ देलक। बेचारी रसेलक घरसँ सदा-सदाक लेल चलि गेल।








धैर्य

इंग्लैंडक प्रसिद्ध विद्वान टामस कूपर अंग्रेजीक शब्दकोष तैयार करैत रहथि। काजमे कूपर तेना ने लीन भऽ गेल रहथि जे घरक कोनो सुधिये-बुधिये ने रहनि। पत्नीकेँ घरक सरंजाम जुटबैमे परेशानी होइन, तँए ओ पतिपर खूब बिगड़थि। मुदा तकर कोनो असरि कूपरकेँ नै होइन। एक दिन कूपर कतौ गेल रहथि, तै बीच पत्नी खिसिया कऽ शब्दकोषक सभ काॅपी जरा देलकनि। जखन ओ घुरि कऽ एलाह तँ देखलखिन जे बरसोक मेहनत जरि गेल। मुदा धैर्य एत्ते प्रबल रहनि जे एको मिसिया तामस नै उठलनि। ने एकोरत्ती पत्नीपर बिगड़लखिन आ ने अफसोस केलनि। मुस्कुराइत सिर्फ एतबे कहलखिन- आठ बर्खक काज अहाँ आरो बढ़ा देलौं।








मनुष्यक मूल्य

एक दिन सिकन्दर आ अरस्तू कतौ जाइत रहथि। रास्तामे एकटा नदी छल। जै नदीमे नाहपर पार हुअए पड़ै छलै। पहिने अरस्तू पार हुअ चहै छलाह मुदा सिकन्दर हुनका रोकि अपने पार भेलाह। जखन सिकन्दर दोसर पार गेलाह तखन अरस्तूकेँ पार होइले कहलखिन। पार भेलापर अरस्तू सिकन्दरकेँ पूछलखिन- पहिने हमरा पार होइसँ किएक मना केलौं?”
हँसैत सिकन्दर उत्तर देलखिन- अगर हम नदीमे डूबि जैतौं तैयो अहाँ हमरा सन-सन दशो सिकन्दर पैदा कऽ सकै छी मुदा जँ अहाँ डूबि जैतौं तँ हमरा सन-सन दशोटा सिकन्दर बुत्ते एकटा अरस्तू नै बनाओल भऽ सकैत अछि।
सिकन्दरक वि‍चार सुनि अरस्तू अपन जिनगीक मूल्य बुझलनि।




मदति नै चाही

मिश्रमे एकटा किलेन्थिस नाओंक लड़का एथेंसक तत्वबेत्ता जीनोक पाठशालामे पढ़ैत छल। किलेन्थिस बड़ गरीब छल। ने खाइक कोनो ठेकान आ ने देह झॅपैक लेल वस्त्रक। मुदा पाठशालामे सही समैपर फीस दऽ दैत। पढ़ैमे चन्सगर रहने सुभ्यस्त परिवार सबहक विद्यार्थी ओकरासँ इर्ष्‍या करैत। किलेन्थिसकेँ दबबैले एकटा षड्यंत्र ओ सभ रचलक। षड्यंत्र यएह जे किलेन्थिस पाठशालामे जे फीस दैत अछि ओ चोरा कऽ अनैत अछि। चोरीक मुकदमा किलेन्थिसपर भेलै। पुलिस पकड़ि कऽ जहल लऽ गेलै। जखन ओकरा न्यायालयमे हाजिर कएल गेलै तखन ओ जजकेँ कहलक- हम निरदोस छी। हमरा फँसाओल गेल अछि। तँए हम अपन बयानक लेल दूटा गवाही न्यायालयमे देब।
जजक आदेशसँ दुनू गवाही बजाओल गेल। पहिल गवाही एकटा माली छल आ दोसर वृद्धा औरत। मालीसँ पूछल गेल। माली कहलकै- सभ दिन ई लड़का हमरा बगीचामे आबि इनारसँ पानि‍ भरि-भरि गाछ पटा दैत अछि। जकरा बदलामे हम मजूरी दैत छिऐक।
तखन वृद्धासँ पूछल गेल। ओ वृद्धा कहलकै- हम वृद्धा छी। हमरा परिवारमे कि‍यो काज करैबला नै अछि। सभ दिन ई बच्चा आबि गहूम पीस दैत अछि, जकरा बदलामे मजूरी दैत छिऐक।
गवाहीक बयान सुनि जज मुकदमा समाप्त करैत सरकारी सहायतासँ पढ़ैक लेल सेहो आदेश देलक। परन्तु किलेन्थिस सरकारी सहायता लइसँ इनकार करैत कहलक- हम स्वयं मेहनत कऽ पढ़ब तँए हमरा दान नै चाही। हमरा माता-पिता कहने छथि जे मनुष्यकेँ स्वावलंबी बनि जीबाक चाही।



मेहनतक दरद

एकटा लोहार छल। मेहनत आ लूरिसँ परिवार नीक-नहाँति चलबैत छल। मुदा बेटा जेहने खरचीला तेहने कामचोर छलैक। बेटाक चालि-चलनि देख लोहारकेँ बड़ दुख होय। सभ दिन दशटा गारि आ फज्झति बेटाकेँ करए मुदा तैयो बेटा लेल धनि सन। कोनो गम नै। लोहार सोचलक जे ई एना नै मानत। जाबे एकरा खर्च करैले पाइ देनाइ नै बन्न कऽ देबै ताबे एहिना करैत रहत। दोसर दिनसँ पाइ देब बन्न कऽ कहलकै- अपन मेहनतसँ चारियोटा चौबन्नी कमा कऽ ला तखन खर्च देबौ। नै तँ एक्को पाइ देखब सपना भऽ जेतौ।
बापक बात सुनि बेटा कमाइक प्रयास करए लगल। मुदा लूरिक दुआरे हेबे ने करै। अपन पैछला रखल चारिटा चौबन्नी नेने पिता लग आबि कऽ देलक। पिता भाथी पजारि हँसुआ बनबैत छल। चारु चौबन्नीकेँ आगिमे दऽ कहलकै- ई पाइ तोहर कमाएल नै छियौ।
पिताक बात सुनि बेटा लजाइत ओतएसँ ससरि गेल।
दोसर दिन बेटाकेँ कमाइक हिम्मते ने होय। चुपचाप माएसँ चारिटा चौबन्नी मंगलक। माए देलकै। चारु चौबन्नी नेने बेटा बाप लग पहुँचल। बेटाक मुँहे देख बाप बुझि गेल। चारु चौबन्नी बेटा बापकेँ देलक। भीतरसँ बापकेँ तामस रहबे करै। ओ चारु चौबन्नी हाथमे लऽ पुनः आगिमे फेक देलक।
पि‍ताक काज देख‍ बेटा बुझलक जे बि‍ना कमेने काज नै चलत। तखन ओ मेहनत करए लगल। तेसर दि‍न चारि‍टा चौबन्नी बापक हाथमे देलक। चारू चौबन्नीकेँ लोहार पहि‍लुके जकाँ आगि‍मे फेकए लगल। आकि हल्ला करैत बेटा बापक हाथ पकड़ि कहलक- बाबू ई हमर मेहनतक पाइ छी। एकरा किअए बेदरदी जकाँ नष्ट करैत छिऐ?”
बाप बुझि गेल। मुस्कुराइत बेटाकेँ कहए लगल- बेटा! आब तूँ बुझलेँ जे मेहनतक कमाइक दरद केहेन होइ छै। जाधरि अन्ट-सन्टमे हमर कमेलहा खरच करै छलेँ ताबे हमरो एहने दरद होइ छलए।
पिताक बात बेटा बुझि गेल। तखने सप्‍पत खेलक जे एक्को पाइ फालतू खर्च नै करब।









मैक्सिम गोर्की

बच्चेसँ मैक्सिम गोर्की निराश्रित भऽ गेल रहथि। ओइ दशामे जीबैक लेल झाड़ू लगौनाइसँ लऽ कऽ चौका-बरतन, चौकीदारी सभ केलनि। कएक दिन तँ कूड़ा-कचड़ाक ढेरीसँ काजक वस्तु ताकि-ताकि निकालि, बेच कऽ अपनो आ बूढ़ि‍ नानीक पेटक आगि मुझबथि। एहेन परिस्थितिमे पढ़ब-लिखब असाघ्य कार्य थिक। एहेन असाध्य परिस्थितिसँ मुकाबला कऽ अनुकूल बनौनिहार मैक्सिम गोर्कीयो भेलाह।
रद्दी-रद्दी पत्रिका, फाटल-पुरान अखबार सभ एकत्रित कऽ पढ़नाइ सिखलनि। जखन पढ़ैक जिज्ञासा बढ़लनि तखन समए बचा कऽ वाचनालय जाए लगलाह। रसे-रसे लिखैक अभ्यास सेहो करए लगलथि। कोनो-कोनो बहाना बना साहित्यकार सभसँ संबंध बनबए लगलथि। जे किछु ओ -गोर्की- लिखथि ओकरा साहित्यकार सभसँ सुधार करबथि।
वएह मैक्सिम गोर्की रुसक महान् साहित्यकार भेलाह। अन्यायी शासनक विरुद्ध जनताक अधिकारक लेल सिर्फ लिखबे टा नै करथि बल्कि हुनका सबहक बीच जा संगठित आ संघर्षक नेतृत्व सेहो करथि। जखन हुनकर लिखल किताब तेजीसँ बिकए लगल तखन ओ अपन खर्च निकालि बाकी सभ पाइ संगठन चलबैले दऽ देथिन।






मूलधन

एकटा बृद्ध पिता, तीन बरखक लेल तीर्थाटन करए निकलए चाहथि। निकलैसँ पहिने चारु बेटाकेँ बजा अपन सभ पूँजी बरोबरि कऽ बाँटि कहलखिन- तीन सालक लेल हम तीर्थाटन करए जा रहल छी। अगर जीबैत घुमलौं तँ अहाँ सभ पूँजी घुरा देब, नै तँ कोनो बाते नै।
अपन हिस्सा रुपैयाकेँ जेठका बेटा सुरक्षित रखि पिताक प्रतीक्षा करए लगल। मझिला बेटा सूदपर लगा देलक। सझिला एश-मौजमे फूँकि देलक। छोटका ओकरा पूँजी बुझि व्यवसाय -कारोवार- करए लगल।
तीन सालक बाद पिता आएल। चारुसँ पूँजी आपस मंगलक। घरसँ आनि जेठका ओहिना रुपैया घुरा देलक। मझिला सूद सहित मूलधन घुरौलक। सझिला तँ खर्च कऽ नेने छल तँए अगर-मगर करैत चुप भऽ गेल। छोटका व्यवसायसँ खूब कमेने छल तँए चारि गुणा घुमौलक।
चारिम माने छोटका बेटाकेँ प्रशंसा करैत पिता कहलक- रुपैया तँ वियाजोपर लगा बढ़ाओल जा सकैत अछि मुदा एहेन काज अधिक पूँजीबलाक छिऐ। मुदा जे अपने पूँजी दुआरे बेरोजगार अछि, ओकराले नै। ओकरा तँ जएह पूँजी छै ओइमे अपन श्रमक संग जोड़ि जिनगीकेँ ठाढ़ करए पड़तै। ताहूमे परिवारक दायित्वबलाकेँ आरो सोचि-विचारि इमनदारीसँ चलए पड़तै। तखने परिवार चैनसँ चलि सकै छै




कपटी दोस्त

एकटा सज्जन खढ़िया छल। ओ खढ़ि‍या कतेकोसँ दोस्ती केलक। दोस्ती ऐ दुआरे करैत जे बेरपर हमहूँ मदति करबै आ हमरो करत। एक दिन शिकारीक कुत्ता ओकरा पकड़ैले खेहारलक। खढ़िया भागल। भागल-भागल अपन दोस्त गाए लग पहुँच, कहलकै- अहाँ हमर पुरान दोस छी। कुत्ता हमरा रबारने अबैए। अहाँ ओकरा अपन सींगसँ मारि कऽ भगा दियौ, जइसँ हमर जान बचि जाएत
खढ़ियाक बात सुनि गाए कहलकै- हमरा घरपर जाइक समए भऽ गेल। बच्चा डिरियाइत हएत। आब एक्को क्षण ऐठाम नै अँटकब।
गाएक बात सुनि खढ़िया निराश भऽ गेल। कुत्ता सेहो पाछूसँ अबिते रहए। ओ खढ़िया ओइठामसँ पड़ाएल घोड़ा लग पहुँचल। घोड़ो पुरान दोस्त खढ़ियाक छलैक। घोड़ा लग पहुँच खढ़िया कहलकै- दोस अहाँ अपना पीठपर बैसाए लिअ। जइसँ हमरा ओइ कुत्तासँ जान बँचि जाएत
घोड़ा कहलकै- हमरा पीट्ठीपर केना बैसब? हम तँ बैसबे बिसरि गेलौं।
घोड़ाक बात सुनि खढ़िया निराश भऽ पड़ाएल। जाइत-जाइत गदहा लग पहुँच कहलकै- दोस! हम मुसीबतमे पड़ि गेल छी। अहाँ दुलकी चलब जनै छी। कुत्ताकेँ मारि कऽ भगा दियौ, जइसँ हमर जान बँचि जाएत
खढ़ियाक बात सुनि गधा कहलकै- घरपर जाइमे देरी हएत तँ मालिक मारत। तँए हम जाइ छी।
फेर खढ़िया भागल। जाइत-जाइत बकरी लग पहुँच कहलकै- दोस! हम मरि रहल छी। अहाँ जान बचाउ।
अपन ओकाइत देखैत बकरी उत्तर देलकै- दोस! झब दे ऐठामसँ दुनू गोटे भागू नै तँ हमहूँ खतरामे पड़ि जाएब।
बकरीक बात सुनि खढ़िया आरो निराश भऽ गेल। मनमे एलै जे अनका भरोसे जीब बेकार छी। अपने बूत्ते अपन दुख मेटा सकै छी। भलहिं मन-मुताबिक जिनगी नै जीब सकी। तखन खढ़िया छाती मजगूत कऽ पड़ाएल। पड़ाएल-पड़ाएल एकटा झारीमे नुका रहल। कुत्ता देखबे ने केलकै। दौड़ल आगू बढ़ि गेल। खढ़ियाक जान बँचि गेलै।







भीख

एकटा मच्छर मधुमाछी छत्ता लग पहुँचल। छत्तामे ढेरो माछी छलै। छत्ता लग बैस मच्छर माछीकेँ कहलकै- हम संगीत विद्यामे निपुण छी। अहूँ सभ संगीत सीखू। हम सिखा देब। बदलामे थोड़े-थोड़े मधु देब जइसँ हमरो जिनगी चलत।
मधुमाछी सभ अपनामे वि‍चार करए लगल। मुदा बिना रानी माछीक वि‍चारसँ कि‍यो किछु नै कऽ सकैत, तँए रानीसँ पूछब जरुरी छलै। सभ वि‍चारि‍ एकटा माछीकेँ रानी लग पठौलक। रानी माछी सभ बात सुनि कहलकै- जहिना संगीत-शास्त्रक ज्ञाता मच्छर भीख मंगैले अपना ऐठाम आएल अछि तहिना जँ हमहूँ सभ मेहनत छोड़ि देब तँ ओकरे जकाँ दशा हएत। तँए मेहनतक संस्कार छोड़ि सस्ता संस्कार अपनौनाइ मुरुखपना हएत। अगर अहूँ सभकेँ संगीतक सख होइए तँ मेहनतो करु आ बैसारीमे संगीतों सीखू।




भगवान

सिद्ध पुरुष भऽ कबीर प्रख्यात भ गेल छलाह। दूर-दूरसँ जिज्ञासु सभ आबि-आबि दर्शनो करैत आ उपदेशो सुनैत। मुदा कबीर अपन व्यवसाय- कपड़ा बुनब नै छोड़लनि। कपड़ो बुनथि‍ आ सत्संगो करथि। एकटा जिज्ञासु कबीरक व्यवसाय देख पूछलकनि- जाधरि अपने साधारण छलौं ताधरि कपड़ा बुनब उचित छल मुदा आब तँ सिद्ध-पुरुष भऽ गेलिऐक तखन कपड़ा किएक बुनै छी?”
जिज्ञासुक विचार सुनि मुस्कुराइत कबीर उत्तर देलखिन- पहिने पेटक लेल कपड़ा बुनैत छलौं। मुदा आब जन-समाजमे समाएल भगवानक देह ढकैक लेल आ अपन मनोयोगक साधनाक लेल बुनैत छी।
एक्के काज रहितो दृष्टिकोणक भिन्नताक उत्पन्न होइबला अंतरकेँ बुझलासँ जिज्ञासुक समाधान भऽ गेलनि।





एकाग्रचित

इंग्लैडक इतिहासमे अल्फ्रेडक नाअो इज्जतक संग लेल जाइत अछि‍। ओ अनेको साहसी काज प्रजाले केलनि। तँए हुनका महान् अल्फेड, अल्फ्रेड द ग्रेट नाओंसँ इतिहासमे चरचा अछि।
शुरुमे अल्फ्रेड साधारण राजा जकाँ क्रिया-कलाप करैत छलाह। जहिना बाप-दादाक अमलदारीमे चलैत छल तहिना। खेनाइ-पीनाइ, एश-मौज केनाइ यएह जिनगी छलनि। जइसँ एक दिन एहेन भेलै जे हुनकर कोढ़िपना दुश्मनक लेल बरदान भऽ गलैक। दुश्मन आक्रमण कऽ अल्फ्रेडकेँ सत्तासँ भगा देलक। नुका क ओ एकटा किसानक ऐठाम नोकरी करए लगल। बरतन माँजब, पानि भरब आ चौकाक काज अल्फ्रेड करए लगल। नमहर किसान रहने अल्फ्रेडक देख-रेख हुनकर पत्नी करैत छलीह।
एक दिन ओ कोनो काजे बाहर जाइत छलीह। बटलोहीमे दालि चुल्हिपर चढ़ल छलै। औरत अल्फ्रेडकेँ कहि देलक जे दालिपर धियान राखब। अल्फ्रेड चुल्हि लग बैस अपन जिनगीक संबंधमे सोचए लगल। सोचैमे एत्ते मग्न भऽ गेल जे बटलोहीक दालिपर धियाने ने रहलै। बटलोहिक सभ दालि जरि गेलै। जखन ओ औरत घुरि क अएलि‍ तँ देखलक जे बटलोहिक सभ दालि जरि गेल अछि।
क्रोधसँ अल्फ्रेडकेँ कहलक- अरे मुर्ख युवक! बुझि पड़ैए जे तोरापर अल्फ्रेडक छाप पड़ल छौ। जहिना ओकर दशा भेलै तहिना तोरो हेतौ। जे काज करैछेँ ओकरा एकाग्रचित भऽ कर।
बेचारी औरतकेँ की पता जे जकरा कहै छिऐ ओ वएह छी। मुदा अल्फ्रेड चौंक गेल। अपन गलतीक भाँज लगबए लगल। मने-मन ओ संकल्प केलक जे आइसँ जे काज करब ओ एकाग्रचित भऽ करब। सिर्फ कल्पने केलासँ नै हएत। अल्फ्रेड नोकरी छोड़ि देलक। पुनः आबि अपन सहयोगी सभसँ भेँट कऽ धनो आ आदमियोक संग्रह करए लगल। शक्ति बढ़लै। तखन ओ दुश्मनपर चढ़ाइ केलक। दुश्मनकेँ हरौलक। पुनः सत्तासीन भेल। सत्तसीन भेलापर पैघ-पैघ काज कऽ महान भेल।







सीखैक जिज्ञासा

महादेव गोविन्द रानाडे दछिन भारतक रहथि। ओ बंगला भाषा नै जनैत रहथि। एक दिन रानाडे कलकत्ता गेलाह। कलकत्तामे अपन काज-सभ निपटा आपस होइले गाड़ी पकड़ए स्टेशन एलाह तँ एकटा बंगला अखवार कीन लेलनि। बंगला अखवार देख आश्चर्यसँ पत्नी कहलकनि- अहाँ तँ बंगला नै जनै छी तखन अनेरे ई अखवार किएक कीन लेलौंहेँ?”
मुस्कुराइत रानाडे जबाब देलखिन- दू दिनक गाड़ी यात्रा अछि। आसानीसँ बंगला सीख लेब।
नीक-नहाँति रानाडे बंगला लिपि आ शब्द गठनपर धि‍यान दऽ सीखए लगलथि। पूना पहुँच पत्नीकेँ धुर-झार अखवार पढ़ि क सुनबए लगलखिन। एहन छलनि साठि वर्षीए रानाडेक मनोयोग। तँए अंतिम समए धरि हर मनुष्यकेँ सीखैक जिज्ञासा रहक चाही।




अनुभव

व्यक्ति अपन अनुभवसँ सीखबो करैत अछि आ दोसरोक लेल दिशा निर्धारित करैत अछि। एक दिन झमझमौआ बरखा होइत रहए। मेधो गरजै। बिजलोको चमकै। तेज हवो बहै। ओइ समए रास्तापर भगैत एक आदमीक मृत्यु भ गेलै। बरखा छुटलै। लग-पासक लोक जखन निकलक तँ रास्तापर ओइ आदमीकेँ देखलक। चारु भरसँ लोक जमा भऽ कि‍यो कहै- बादलक आवाजसँ मृत्यु भेलै। तँ कि‍यो किछु कहै आ कि‍यो किछु।
ओइ समए एक अनुभवी आदमी सेहो पहुँचलथि। ओ कहलखिन- जँ आवाजसँ मृत्यु होइत तँ बहुतो लोक आवाज सुनलक। सबहक होइतै। तँए मृत्यु आवाजसँ नै लगमे ठनका गिरलासँ भेल।






असिरवादक विरोध

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर अभाव आ गरीबीक बीच पढ़ि पचास टाकाक मासिक नोकरी शुरु केलनि। हुनक सफलता देख कुटुम्ब-परिवार सभ असिरवाद देमए पहुँचए लगलनि। एकटा कुटुम्ब कहलकनि- भगवानक दयासँ अहाँक दुख मेटा गेल। आब आरामसँ रहू आ चैनसँ जिनगी बिताउ।
ई असिरवाद सुनिते विद्यासागरक आखिसँ नोर खसए लगलनि। नोर पोछैत कहलखिन- जै अध्यवसायिक बले हम ओहन भीषण परिस्थितिक मुकावला केलौं ओकरे छोड़ि दइले कहै छी। अहाँकेँ ई कहैक चाहै छल जे जै गरीबीक कष्ट स्वयं अनुभव केलौं ओइ परिस्थितिकेँ बिसरु नै। अपन असाध्य श्रमसँ ओइ अवरुद्ध रास्ताकेँ साफ करु।






धर्मक असल रुप

श्रावस्तीक सम्राट चन्द्रचूड़केँ अनेक धर्म आ ओकर प्रवक्ता सभसँ नीक लगाव छलनि। राज-काजसँ जे समए बचनि ओकरा ओ धर्मेेक अध्ययनो आ सत्संगेमे बितबथि। ई क्रम बहुत दिनसँ चलि अबैत छल। एक दिन ओ असमंजसमे पड़ि गेलाह। मोनमे एलनि जे जखन धर्म मनुक्खक कल्याण करैत अछि तखन एतेक मतभेद एक दोसर प्रवक्तामे किएक अछि?
अपन समस्याक समाधानक लेल चन्द्रचूड़ भगवान बुद्ध लग पहुँचलाह। ओइठाम ओ अपन बात बुद्धकेँ कहलखिन। चन्द्रचूड़क बात सुनि बुद्धदेव हँसए लगलखिन। सत्कारपूर्वक हुनका ठहरै लऽ कहि दोसर दिन भिनसरे समाधानक बचन देलखिन। एकटा हाथी आ पाँचटा आन्हर ओ जुटौलनि।
दोसर दिन भिनसरे तथागत -वुद्धदेव- चन्द्रचूड़केँ संग केने ओइ हाथी आ अन्हरा लग पहुँचलथि। एकाएकी ओइ अन्हरा सभकेँ हाथी छुबि ओकर स्वरुप बुझबैले कहलखिन। बेरा-बेरी ओ अन्हरा सभ हाथीकेँ छुबि-छुबि देखए लगल। जे जे अंग हाथीक छुलक ओ ओहने स्वरुप हाथीक बतबए लगलनि। कि‍यो खूटा जकाँ तँ कि‍यो सूप जकाँ तँ कि‍यो डोरी जकाँ तँ कि‍यो टीला जकाँ कहलकनि।
सबहक बात सुनि तथागत चन्द्रचूड़केँ कहलखिन- राजन! सम्प्रदाय अपन सीमित क्षमताक अनुरुप धर्मक एकांकी व्याख्या करैत अछि‍। अपन-अपन मान्यताक प्रति जिद्द धऽ अपनेमे सभ लड़ैत छथि। जहिना एक्केटा हाथीक स्वरुप पाँचो अन्हरा पाँच रंगक कहलक, तहिना धरमोक व्याख्या करैबला सभ करैत छथि। धर्म तँ समता, सहिष्णुता, उदारता आ सज्जनतामे सन्निहित अछि।



सौन्दर्य

संगीतकार गाल्फर्ड लग पहुँच एकटा शिष्या अपन मनक व्यथा कहए लगलनि। कुरुपताक कारणे संगीतक मंचपर पहुँचते मनमे अाबए लगैत अछि जे आन लड़कीक अपेक्षा दर्शक हमरा नापसन्द कऽ हँसी उड़बैत अछि। जइसँ सकपका जाइ छी। गबैक जे तैयारी केने रहै छी ओ नीक जकाँ नै गाबि पबै छी। वएह गीत घरपर बढ़ियाँ जकाँ गबै छी मुदा मंचपर पहुँचते की भऽ जाइत अछि जे हक्का-बक्का भ जाइ छी।
ओइ शिष्याक बात सुनि गाल्फर्ड एकटा नमगर-चौड़गर अएना ल, आगूमे रखि, गबैक विचार दैत कहलखिन- अहाँ कुरुप नै छी, जेना मनमे होइए। गीत गौनिहारिकेँ स्वरक मिठास हेबाक चाही। जकरा कुरुपतासँ कोनो संबंध नै छै। जखन भाव-विभोर भऽ गाएब तखन अहाँक आकर्षण बढ़ि जाएत। कि‍यो सुनिनिहार कुरुपतापर धि‍यान नै स्वरपर धि‍यान देत। जइसँ मनक हीनता समाप्त भऽ जाएत आ आत्म-विश्वास बढ़ि जाएत
फ्रान्सक वएह गायिका मेरी वुडनाल्ड नाओंसँ प्रख्यात भेलीह।




स्तब्ध

दोसर विश्वयुद्ध समाप्त भ गेल। इंगोएशियन माने आंग्ल-रुसी संधिपर हस्ताक्षर करैले चर्चिल मास्को एलाह। संधिपर हस्ताक्षरो भऽ गेल। मास्को छोड़ैसँ एक दिन पहिने, अनायास स्तालिन आ मोलोटोव चर्चिल लग पहुँच कहलकनि- लड़ाइ-उड़ाइ तँ बहुत भेल। नीक समझौतो भऽ गेल। काल्हि अहाँ जेबो करब तँए आइ थोड़े मौज-मस्ती क लिअ। हमरा ऐठाम चलि भोजन करु।
स्तालिनक आग्रह सुनि चर्चिल मने-मन सोचए लगलथि जे महान् तानाशाह स्तालिन नत देबए एलाह, आइ जरुर किछु अद्भुत वस्तु देखैक मौका भेटत। चर्चिल नत मानि स्तालिनक संग विदा भेलाह। रास्तामे सिपाही सभ अभिवादन करनि। थोड़े दूर गेलापर एकटा पीअर रंगक दु-महला मकानक आगूमे कार रुकल। सभ कि‍यो उतड़लथि। स्तालिनक संग चर्चिल मकानक भीतर गेलाह। भीतर जा चर्चिलकेँ बैसबैत स्तालिन कहलखिन- ऊपरका तल्लामे लेनिन रहैत छलाह। ओ गुरु छथि तँए ओइ तल्लाक उपयोग हम नै करै छी। ओ म्युजियम बनल अछि। निच्चाँमे तीनटा कोठरी अछि एकटामे दुनू परानी रहै छी। दोसरमे बेटी रहैत अछि आ तेसरमे पार्टी सदस्यक लेल बैठकी बनौने छी।
स्तालिनक बात सुनि चर्चिल छगुन्तामे पड़ि गेलाह जे जै तानाशाहक डरे पूँजीवादी जगत थरथराइत अछि ओइ तानाशाहक रहैक व्यवस्था एहने छै। मने-मन सोचैत चर्चिल गुम्म रहथि अाकि स्तालिन कहलकनि- थोड़े काल हमरा छुट्टी दिअ। भोजन बनबए जाइ छी।
ई सुनि चर्चिल अचंभित होइत पूछलखिन- अपने भानस करै छी, भनसिया नै अछि?”
मुस्कुराइत स्तालिन उत्तर देलखिन- नै। अपने दुनू परानी मिल भानस करै छी।
स्तालिनक बात सुनि चर्चिल हतप्रभ होइत कहलखिन- बड़ बढ़ियाँ। आइ घरेवालीकेँ भानस करए कहिअनु। अहाँ गप-सप्‍प करु।
हम लाचार छी। पत्नी घरपर नै छथि। ओ पाँच बजे कपड़ा मिलसँ औतीह।
चर्चिल स्तब्ध भऽ गेलाह।




एकता

एकटा पैघ भवनक निर्माण होइत छलैक। निर्माणस्थल लग एक भाग पजेबा, दोसर भाग बालू, तेसर लकड़ी, सीमेंट, चून इत्यादि जमा छल। ढेरीसँ पजेबा बाजल- अकास ठेकल कोठा हमरेसँ बनत, तँए कोठाक श्रेह हमरे भेटक चाही।
पजेबाक बात सुनि सिमटी आ बालू प्रतिवाद करैत कहलकै- तोँ झूठ बजैछेँ। तोरा ई नै बुझल छौ जे एकसँ दोसर पजेबाक बीच जँ हम नै रहबौ तँ तूँ ढनमनाइते रहमे। संगे तोरा इहो नै बुझल छौ जे जत्ते दूर तक तोँ जेमे तत्ते दूर तक हमहूँ संगे जेबौ आ तोरोसँ ऊपर हमहीं सुइत क रक्षो करबौ।
बालू आ सिमटीक बात सुनि खिड़की आ केवाड़िक लकड़ी तामसे थरथराइत कहलकै- तोरा तीनू बूत्ते बर हेतौ तँ देबाल बनि जेमे, मुदा बिना हमरे ने छत बनि सकमे आ ने मुँह-कान चिक्कन हेतौ। जाबे हम नै रहबौ ताबे कुत्ता-बिलाइक घर रहमे।
सभ सामानक बीच कटौज चलैत छल। कारीगर चाह पीब बीड़ी सुनगेलक। बिड़ियो पीबैत छल आ मने-मन हँसबो करैत छल। जखन भरि मन बीड़ी पीलक, मूड साफ भेलै, तखन तीनूकेँ चुप करैत कहलक- अगर तूँ सभ मिलाने क लेमे, तइमे की हेतौ? जाबे हम नै इलमसँ तोरा सभकेँ बनेबौ ताबे ओहिना माटिपर पड़ल रहमे। कौआ-कुकुड़ आबि-आबि गंदा करैत रहतौ।
सबहक विचार सुनि निर्णए करैत भवन कहलकै- अपना-अपना जगहपर सबहक महत्व छौ। मुदा जाबे एक-दोसरसँ मेल कए कऽ नै रहमे ताबे भवन नै कहेमे। अोहिना पजेवा, सिमटी, चून, लकड़ी रहमे। तँए अपन-अपन बड़प्पन छोड़ि मिलानक रास्ता पकड़ जइसँ कल्याण हेतौ।


विधवा विवाह

राजस्थानक इतिहासमे हठी हम्मीरक विशेष स्थान अछि। ओ एहेन जिद्दी छल जे जकरा उचित बुझैत छलैक, ओ वएह करैत छल। भलहिं कतबो विरोध आ निन्दा किएक ने होय। जखन हम्मीर वियाह करै जोकर भऽ गेल तखन वियाहक चरचा शुरु भेल। विद्यार्थिये जीवनमे हम्मीर विधवाक दुर्दशाकेँ गहराइसँ अध्ययन केने छल। पढ़ैऐक समए संकल्प क नेने छल जे हम विधवे औरतसँ वियाह करब। हम्मीरक वियाहक चरचा पसरलै। मुदा हम्मीर एकदम संकल्पित छल जे विधवेसँ वियाह करब। कुटुम परिवार सभ हम्मीरपर बिगड़ै मुदा तकर एक्को पाइ गम नै। पंडित सबहक माध्यमसँ परिवारबला कहबौलक जे विधवा अमंगल सूचक होइत तँए एहेन काज नै करक चाही। मुदा हम्मीर ककरो बात सुनैले तैयारे नै।
एकटा बाल-विधवाकेँ हम्मीर देखलक। विधवाकेँ देख हृदए पसीज गेलै। तखने ओइ विधवाकेँ हम्मीर कहलक- हम अहाँसँ वियाह करब। भलहिं परिवारक कतबो विरोध हुअए।
हम्मीरक बात सुनि विधवा खुशीसँ अह्लादित भ उठल। हम्मीर वियाहक दिन तँइ क कुटुम्ब-परिवार आ पुरहित-पंडितकेँ छोड़ि अपन संगी-साथी आ सैनिक सभकेँ संग केने जा वियाह कऽ लेलक।
जखन हम्मीर मेवाड़क शासक बनल तखन सभ विरोधी सहयोगी बनि गेलै। पंडित सभ घोषणा केलक- विधवा नास्ति अमंगलम्।





देश सेवाक व्रत

सुभाषचन्द्र बोस बच्चे रहथि। एक दिन, रातिमे माए लगसँ उठि निच्चाँमे सुतए लगला। बेटाकेँ निच्चाँमे सुतैत देख माए पुछलखिन जे एना किएक करै छी?
सुभाष जबाब देलखिन- माए! आइ स्कूलमे मास्टर साहेब कहने छेलखिन जे हमर पूर्वज ऋृषि, मुनि जमीनेपर सुतबो करथि आ कठिन मेहनतो करैत छलाह। हमहूँ ऋृषि बनब। तँए कठिन जिनगी जीबैक अभ्यास शुरु कऽ रहल छी।
सुभाषचन्द्रक पिता जगले रहथिन। सभ बात सुनि सुभाषकेँ पिता कहलखिन- बेटा! जमीनेपर सुतब टा पर्याप्त नै होइत। एहिक संग ज्ञानोक संचय आ मनुक्खोक सेवा आवश्यक अछि। आइ माइये लग सुति रहू, जखन नमहर हएब तखन तीनू काज संगे करब।
सिर्फ शिक्षकेक बात नै पितोक बातकेँ सुभाष गिरह बान्हि लेलनि। आई.सी.एस. केलाक उपरान्त जखन नोकरीक बात सोझामे एलनि तखन ओ कहलखिन- हम जिनगीक लक्ष्य तँइ कऽ नेने छी। नोकरी नै करब। मातृभूमिक सेवा करब।