Saturday, September 29, 2012

करुण हृदयक मालिक महाराज रणजीत सिंह


पंजाब प्रान्तक राजा महाराजामे सँ महाराज रणजीत सिंहक नाम हुनक न्यायप्रियता एवं सुशासनक लेल पसिद्ध छनिएक समयक गप अछिमहाराज रणजीत सिंहजी अपन प्रजाक सुख दुख देखै लेल घोड़ापर सबार अपन सिपाही संगे राज भ्रमपर निकलल रहथि |महाराज सेना सहित रस्तापर आगू  बढ़ैत रहथि की कतौसँ एकटा पाथर उड़ि कआबि महाराजकेँ बिच्चे माथपर लगलनिपाथर लगिते हुनकर माथसँ सोनितक टघार बहए लगलनिमहाराज अपन एक हाथसँ घोड़ाक लगाम पकड़ने, दोसर हाथे चट कपारकेँ दाबि लेलनि |सिपाही सभ पाथरक दिसामे  दौड़लकिछु घड़ी बाद ओ सभ एकटा नअ-दस बरखक फाटल चेथड़ी पहिरने, गरीब नेनाकेँ लेने आएल|महाराजकेँ पुछला उत्तर एकटा सिपाही बाजल जे ई नेना पाथर मारि-मारि कए आम तोड़ै छलओहे पाथर आबि कमहाराजक माथपर लागल महाराज रणजीत सिंह ओ डरैत नेनाकेँ अपना लग बजास्नेहसँ ओकर माथपर हाथ फेरैत एगो सिपाहीकेँ आज्ञा देलनि - "पाँच पथिया आमदू जोड़ी नव कपड़ा आ सटा असरफी लए क नेनाकेँ आदर सहित एकर घर छोड़ि आएल जा|
महाराजक आज्ञाक तुरंत पालन भेल मुदा महाराजक निर्णयकेँ नै बुझि सेनापति, सहास कए क तरहक फैसलाक कारण पुछिए लेलक|सेनापतिक प्रश्नक उत्तर दैत महाराज बजलाह -"जखन एक गोट निरीह गाछ पाथर माला उत्तर फल दरहल छै तखन हम तँ ऐप्रान्तक राजा छीहमर प्रजा हमर पुत्र तुल्य अछि, एहन ठाम हम कोना फल देबसँ वंचित रहि जाइ गाछ अपन सामर्थे फल दै छै, हम अपन सामर्थे, मे अजगुतक कोन गप|
एहन उदारन्यायप्रियवात्सल्य आ करुण ह्रदयक मालिक छलाह महाराज रणजीत सिंह |   
            

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