बाल कविता @ (मेघक चोर)
माँ गैऽ तूँ ई कहलें हमरा
मेघ में नै छै पोखरि-डबरा !
झम-झम मेघ अतेऽ बरसै छै
कहै कतऽ सँ पाइन अबै छै ?
घैलक-घैल जे उझलि रहल छै
मेघ में चोरबा टहलि रहल छै !
माँ गै माँ ई बात बता तूँ
सुरुज जनै की कोनो जादू ?
पूब सँ उगलै पश्चिम डुबलै
पूबे सँ फेर कोना निकललै ?
वैह चोरबा ई काज करै छै
सुरुज उठा कऽ पूब धरै छै !
माँ गैऽ चानक गोल कटोरी
कियो करै छै राइत कऽ चोरी
किछ दिन पहिने सउँसे देखल
आ
इ राइत में अदहा भेटल माँ गैऽ तूँ ई कहलें हमरा
मेघ में नै छै पोखरि-डबरा !
झम-झम मेघ अतेऽ बरसै छै
कहै कतऽ सँ पाइन अबै छै ?
घैलक-घैल जे उझलि रहल छै
मेघ में चोरबा टहलि रहल छै !
माँ गै माँ ई बात बता तूँ
सुरुज जनै की कोनो जादू ?
पूब सँ उगलै पश्चिम डुबलै
पूबे सँ फेर कोना निकललै ?
वैह चोरबा ई काज करै छै
सुरुज उठा कऽ पूब धरै छै !
माँ गैऽ चानक गोल कटोरी
कियो करै छै राइत कऽ चोरी
किछ दिन पहिने सउँसे देखल
आ
मेघो में बड्ड चोर रहै छै
चोरा-चोरा जे चान कटै छै !
कतेक तरेगन संग उगै छै
चोरबा के नै कियो धरै छै
भरिसक सभ अपने लेल जागल
मनुखक आदत ओकरो लागल
छोड़ की ककरो मुँह लागब हम
आ
इ राइत अपने जागब हम !!! चोरा-चोरा जे चान कटै छै !
कतेक तरेगन संग उगै छै
चोरबा के नै कियो धरै छै
भरिसक सभ अपने लेल जागल
मनुखक आदत ओकरो लागल
छोड़ की ककरो मुँह लागब हम
आ
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२१.०७.२०१२)
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